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Allahabad HC stalls inclusion of 17 OBC sub castes in SC list
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ओबीसी की 17 जातियां एससी में नहीं, हाईकोर्ट की रोक

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ओबीसी की 17 जातियां एससी में नहीं, हाईकोर्ट की रोक
Allahabad HC stalls inclusion of 17 OBC sub castes in SC list
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लखनऊ। सूबे की अखिलेश यादव सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ओबीसी की सत्रह जातियों को एससी कैटेगरी में शामिल करने के मामले में बड़ा झटका दिया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के इस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इस पर तत्काल रोक लगा दी है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश भी जारी किए है।

गौरतलब है कि अखिलेश यादव सरकार ने कुछ समय पहले 17 अतिपिछड़ी जातियों कहार, कश्यप, केवट, निषाद, बिंद, भर, प्रजापति, राजभर, बाथम, गौर, तुरा, मांझी, मल्लाह, कुम्हार, धीमर, गोडिया और मछुआ को अनुसूचित जाति में शामिल करने का जीओ जारी किया था।

गोरखपुर की एक संस्था ने प्रदेश सरकार के इस फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें सरकार के आदेश को रद्द किये जाने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया कि सरकार को इस तरह के आदेश देने का अधिकार ही नहीं है, सिर्फ संसद में क़ानून बनाकर ही किसी जाति को एससी कैटेगरी में शामिल किया जा सकता है।

याचिका पर सुनवाई करते हुए हाइकोर्ट ने सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिया इन जातियों के जाति प्रमाण पत्र जारी करने पर तत्काल रोक लगाई जाएं। साथ ही इस संबंध में सभी जिलों के जिलाधिकारियों को तत्काल सर्कुलर जारी करने का भी आदेश दिया है।

खास बात है कि अखिलेश यादव सरकार से पहले वर्ष 2004 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने भी 17 पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने के सम्बन्ध में प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र के पास भेजा था।

इसी तरह अखिलेश यादव सरकार ने भी 22 मार्च 2013 को विधानसभा में यह प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र को प्रेषित किया था। प्रस्ताव में कहा गया था कि उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा किए गए विस्तृत अध्ययन के अनुसार इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना चाहिए।

वहीं संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक किसी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिये संसद में प्रस्ताव पारित कराना अनिवार्य है। राज्य सरकार इस सिलसिले में सिर्फ सिफारिश ही कर सकती है।

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती सहित अन्य सियासी दलों ने अखिलेश यादव सरकार के इस फैसले को चुनावी स्टंट बताया था। सभी दलों ने कहा था कि इस सम्ब्न्ध में निर्णय लेने का अधिकार केन्द्र सरकार को है।