इलाहाबाद। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार के वित्त विभाग से पूछा है कि वह बताये कि सरकार एक ही आवास में रह रहे पति-पत्नी दोनों को आवास भत्ता कैसे दे रही है।
कोर्ट ने सरकार से एक जनहित याचिका में वित्त विभग से ऐसा प्रश्न किया है। न्यायालय ने पूछा है कि पहले नियम यह था कि एक आवास में रहने पर पति-पत्नी दोनों को आवास भत्ता नहीं मिलेगा तो सरकार ने किन कारणों से इस प्रावधान में संशोधन कर दिया तथा एक ही आवास में रहने के बाद भी पति एवं पत्नी दोनों को आवासीय भत्ता देने का नया शासनादेश जारी कर दिया। सचिव वित्त को 21 जुलाई तक इस मामले में कोर्ट को बताना है।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चन्द्रचुड व न्यायमूर्ति एम.के.गुप्ता की खण्डपीठ ने यह आदेश भीम सिंह सागर की जनहित याचिका पर दिया है। याचिका में प्रदेश सरकार द्वारा अभी हाल ही मे 11 फरवरी 15 को जारी उस शासनादेश को चुनौती दी गयी है जिसके द्वारा यह प्रावधानित कर दिया गया है कि पति पत्नी भले ही एक आवास मे रह रहे हैं।
दोनों को आवासीय भत्ता (हाउस रेंट एलाउंस) मिलेगा। जबकि प्रदेश सरकार के 28 अप्रैल 2000 के शासनादेश में यह प्रावधान था कि एक ही आवास में रहने पर पति एवं पत्नी दोनों को आवासीय भत्ता नहीं दिया जायेगा।
कोर्ट ने यही कारण है कि सरकार के वित्त विभाग से पूछा है कि पुराने शासानादेश में संशोधन कर नये शासनादेश से पति एवं पत्नी दोनों को आवासीय भत्ता देने के पीछे सरकार की मंशा क्या है?