इलाहाबाद। बहन का साथ छूटने के बाद जीवन साथी के रूप में दुन बहादुर मिले, वे भी छोड़कर चले गए। अब किसके सहारे शहर में रहेगी बेसहरा 55 वर्षीय बसन्ती। यह कहानी दारागंज थानान्तर्गत हनुमान मंदिर के पास शुक्रवार को मृत मिले लावारिस वृद्ध की शिनाख्त होने के बाद शनिवार को पता चला।
मूलरूप से मुगल सराय की रहने वाले बसन्ती 55 वर्ष शहर के जार्जटाउन थाना क्षेत्र के रहने वाले एक मिश्र परिवार के बंगले में रहती है। शनिवार को अपने पति को खोजते हुए स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय परिसर में स्थित चीरघर पर पहुंची बसन्ती ने अपनी दुःख भरी कहानी को बयां की।
लगभग दस वर्ष की थी उसके पिता गंगा राम भी साथ छोड़कर चले गए। उसकी मां की पहले ही मौत हो चुकी थी। उसके बाद वह अपनी बड़ी बहन शांती के साथ मिर्जापुर उसके ससुराल चली गई। उसके बाद वह भी इलाहाबाद शहर लेकर आई और उसके बाद से वह यहीं की होकर रह गई।
पीडब्लूडी कार्यालय के समीप उसने जीवन यापन करने के लिए एक चाय की दुकान खोली, जिसके सहारे जीने लगी। इस बीच उसकी मुलाकात लगभग 35 वर्ष पहले दुनबहादुर से हुई। दुन बहादुर उस समय पीडब्लूडी में चैकीदारी का काम करता था।
चाय की दुकान पर आए दिन उठना बैठना और फिर एक दूसरे के काम में हाथ बटाने लगे और फिर धीरे-धीरे एक दूसरे के बन गए। इस बीच दोनों ने घर बसा लिया। नौकरी के वक्त दुनबहादुर की संगत कुछ गलत लोगों से हो गई और वह शराब का लती हो गया।
शराब की लत ने उसे इस मोड़ पर लेजाकर खड़ा कर दिया कि उसे दुनबहादुर को पीडब्लूडी की नौकरी से बाहर कर दिया गया। जिससे दुनबहादुर की दिमागी हालत खराब हो गई और वह इधर-उधर घूमने लगा। लेकिन बसन्ती ने उसका साथ नहीं छोड़ा। इसके बाद बसन्ती चूल्हा चैका करके किसी तरह जीवन यापन करने लगी।
लेकिन कोई संतान नहीं हुए। जार्जटाउन थाना क्षेत्र में रेलवे लाइन की पटरी के किनारे झोपड़ी बनाकर दोनों रहते थे। विगत तीन से दुनबहादुर भीख मांगने लगा। वह संगम के किनारे हनुमान मंदिर के पास कई वर्षो से मांगता खाता था। समय मिलने में बसन्ती उसके पास जाती रहती थी।
किसी तरह दोनों का जीवन कट रहा था। लेकिन वह विगत तीन वर्ष से बसन्ती के पास घर आना-जाना बन्द कर दिया और हनुमान मंदिर ही उसका सहारा बन गया। दिन पे दिन उसके हालत विगड़ते गए। बसन्ती किसी तरह से अपने पति का साथ नहीं छोड़ा।
गुरूवार को वह अपने पति के पास नहीं जा सकी और दुनबहादुर की तबीयत खराब हुई और उसकी अचानक मौत हो गई। शुक्रवार की सुबह सूचना पर पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर अन्त्य परीक्षण के लिए भेज दिया।
जब बसन्ती हनुमानमंदिर पहुंची तो उसका पति नहीं मिला। इसके बाद उसने वहां मौजूद लोगों से पूंछ-तांछ करने लगी। इस बीच उसे लोगों ने बताया कि दुनबहादुर की मौत हो गई। इसके बाद वह अपने पति की फोटो लेकर शनिवार को चीरघर पहुंची और शिनाख्त किया। हालत यह थे कि उसके पास अपने पति के क्रिया कर्म के लिए भी पैसे नहीं थे।
हालांकि पड़ोसियों एवं दारागंज थाने की पुलिस ने उसे आश्वासन दिया कि शव को शवदाह गृह में जलवा दिया जाएगा। बसन्ती इसके बाद चीरघर रोने लगी और बोली सड़क पर 35 वर्ष पहले मिली थी और अब जाते समय सड़क पर ही अकेला छोड़कर चला गया। शनिवार को उसके पति का पोस्टमार्टम किया गया। पुलिस ने शव को दारागंज भेजवा दिया।