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Anandi Ben patel will do a second woman governor of Madhya Pradesh?
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आनंदी बेन होंगी मध्यप्रदेश की दूसरी महिला राज्यपाल?

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आनंदी बेन होंगी मध्यप्रदेश की दूसरी महिला राज्यपाल?
Anandi Ben patel will second woman governor of Madhya Pradesh?
Anandi Ben patel will second woman governor of Madhya Pradesh?
Anandi Ben patel will second woman governor of Madhya Pradesh?

मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव का कार्यकाल 9 सितंबर को खत्म हो जाएगा, यूं तो उनके जाने और बदलने के किस्से उनके कार्यकाल के दौरान अक्सर सुर्खियां बटोरते रहे लेकिन राम नरेश यादव राज्यपाल की कुर्सी से टस से मस न हुए।

केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद भी अनेक राज्यो के राज्यपाल तो बदले गए लेकिन हृदय प्रदेश के महामहिम अपने पद पर बरकरार बने रहे। अधिक उम्र और खराब स्वास्थ्य होने के बावजूद प्रदेश सरकार की परस्ती ने उन्हे बचाए रखा तो राजनीतिक हल्कों में ये भी चर्चा भी गर्म रही कि वो मीसा बंदी है और भाजपा की केंद्र सरकार भी मीसा बंदी होने की दुहाई देकर उन्हे हटाना नहीं चाहती।

अब जब उनका कार्यकाल स्वतः ही समाप्त हो रहा है तो प्रदेश की राजनैतिक गलियारो में ये चर्चा भी जोरों पर है कि प्रदेश का अगला राज्यपाल कौन होगा?

हाल ही में केंद्र सरकार की अनुशंसा पर राष्ट्रपति ने अंडमान निकोबार के लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ तीन राज्यों पंजाब, असम और मणिपुर में नए राज्यपालो की नियुक्ति की है, इन चारों नए नामो में ध्यान देने वाली बात ये रही कि इसमें आनंदी बेन का नाम नहीं है।

पिछले दिनों जिस प्रकार गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदी बेन ने पार्टी लाइन पर चलते हुए अधिक उम्र की वजह से अपना इस्तीफा दिया तो बाज़ार में ये हवा बन चुकी थी कि आनंदी जल्द ही किसी राज्य कि राज्यपाल नियुक्त कर दी जाएगी।

इस खबर को ज़ोर इसलिए भी दिया जा सकता है कि अभी हाल ही में मोदी सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान ये देखा गया कि 75 वर्ष से अधिक उम्र होने के चलते नज़मा हेप्तुल्लाह से अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री के पद से इस्तीफा मांगा गया था और उन्हे अब मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया है, ऐसे में आनंदी कहां की राज्यपाल बनती है ये देखना बाकी है परंतु जैसे समीकरण अभी बने हुए हैं उसमें ये माना जा रहा है कि गुजरात से लगे मध्यप्रदेश का उन्हें राज्यपाल बनाया जा सकता है।

प्रदेश में राज्यपाल की नियुक्ति को लेकर कुछ राजनीतिक समीकरण देखे जाए तो राज्य और केंद्र दोनों जगह भाजपा की सरकार है, एक तरफ केंद्र में भाजपा के सबसे सशक्त मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री है तो वही मध्यप्रदेश में 10 साल से ज्यादा का समय बतौर मुख्यमंत्री बिता चुके शिवराज अब भी राज्य के मुखिया के पद पर काबिज है।

अटल आडवाणी के करीबी रहे शिवराज, वर्ष 2014 के केंद्रीय चुनाव के पूर्व मोदी के एक विकल्प के तौर पर भी देखे गए कि अगर एनडीए के दल नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद पर स्वीकार नहीं करते तो शिवराज का नाम आगे बढ़ाया जाएगा।

बस यहीं कुछ खटास नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के बीच देखने को जरूर मिली मगर दोनों नेताओं ने कभी एक दूसरे पर न तो प्रत्यक्ष और न ही अप्रत्यक्ष तौर पर कुछ बोला या कहा होगा, लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद जरूर राजनैतिक गलियारो में शोर रहा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह मध्यप्रदेश में नेत्रत्व परिवर्तन कर शिवराज को केंद्र में बुला सकते है।

व्यापमं मामले को लेकर जब शिवराज ने सीबीआई द्वारा जांच कराने की घोषणा की तो ये माना जाने लगा कि केंद्र की मोदी सरकार इस बार शिवराज को प्रदेश से अलग कर ही मानेंगी, लेकिन यहां भी शिवराज अपने व्यवहार, प्रदेश के विकास और संवेदनशीलता से मोदी के विश्वास को जीतने में कामयाब हुए।

मोदी के इस साल अब तक प्रदेश के चार दौरे हो चुके हैं और उन्होंने हर मंच से शिवराज की खुलकर प्रशंसा ही की, कही ऐसा देखने को नहीं मिला कि इन दोनों नेताओं के बीच कोई मतभेद है और हाल ही में केंद्र में हुआ मंत्रिमंडल विस्तार में शिवराज को केंद्रीय कृषि मंत्री के तौर पर नाम न होना, जिसकी चर्चाए बहुत जोरों पर थी तो इस खबर को भी विराम दिया जा सकता है कि हाल फिलहाल शिवराज केंद्र में नहीं जा रहे और वे बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल जारी रखेंगे।

ऐसे में जब शिवराज मोदी के लोकप्रिय मुख्यमंत्री में शुमार हो चुके हैं और आनंदी जो उनकी विश्वासपात्र मुख्यमंत्री रही है, तो प्रधानमंत्री भी चाहेंगे कि आनंदी पटेल को मध्यप्रदेश भेजकर शिवराज को फ्रीहैंड दिया जाए। हालांकि आनंदी बतौर मुख्यमंत्री तो कुछ खासा कमाल नहीं कर पायी लेकिन जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो राज्य की सफल योजनाओं के पीछे आनंदी ही हुआ करती थी।

ऐसे में जब उनके कार्यकाल के दौरान भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले गुजरात में पटेल आंदोलन, ऊना की घटना और दलितो द्वारा बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन होना प्रारम्भ हो गए तो उन्होने अचानक इस्तीफे की पेशकश कर केंद्रीय नेत्रत्व को सकते में ला दिया।

ये बात भी हमेशा स्पष्ट रही कि नरेंद्र मोदी के खास रहे अमित शाह जो अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष है, गुजरात में जब वे मंत्री और भाजपा संघठन में रहे तब भी आनंदी की उनसे कभी पटरी नहीं बैठी और अब बतौर मुख्यमंत्री आनंदी के कार्यकाल के दौरान पटेल आंदोलन ने राज्य में ज़ोर पकड़ा तो केन्द्रीय नेत्रत्व की ओर से उन पर इस्तीफा देने का अप्रत्यक्ष दवाब बनाया गया।

इस दौरान आनंदी का मध्यप्रदेश से भी कनेक्शन देखने को मिला, उज्जैन में सिंहस्थ कुम्भ का आयोजन चल रहा था और गुजरात में पटेल आंदोलन का शोर। आनंदी का उज्जैन में महाकालेश्वर के दर्शन और कुम्भ स्नान में आना तय हुआ तो इसी दौरान भाजपा के केंद्रीय नेत्रत्व में ठीक-ठाक दखल रखने वाले और प्रदेश के भइयू महाराज जो कि एक दुर्घटना मे थोड़ा चोटिल हुए थे।

इंदौर में उनकी कुशलक्षेम पूछने के लिए उनसे मिलने आनंदी बेन पहुंची और ऐसा माना गया कि उन्होने भइयू महाराज से आग्रह भी किया कि पटेल आंदोलन के चलते उनके इस्तीफे की अफवाह को रोकने में वो केंद्र के नेत्रत्व में दखल दे। इसके साथ आनंदी का प्रदेश से दूसरा कनेक्शन राज्य में गुजराती समुदाय का बहुतायत में होना है।

पटेल आंदोलन के दौरान ही भाजपा के गढ़ गुजरात में सेंध लगना शुरू हो गई थी और इसे ऊना की घटना ने और ज़ोर दे दिया, ऐसे में बात ये सामने आने लगी कि क्या प्रधानमंत्री अपना किला ही नहीं बचा पाएंगे? इन सब के बीच जो समीकरण गुजरात में बदले उनसे मध्यप्रदेश को प्रभावित भी होना था क्यूंकि गुजरात से लगे मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड में एक अच्छी जनसंख्या गुजराती लोगों की है।

आने वाले समय में आनंदी अगर प्रदेश की राज्यपाल बनती है तो 2018 में गुजरात विधानसभा चुनाव की दृष्टि से भी ये उचित रहेगा और 2019 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में मालवा निमाड अंचल में गुजराती समुदाय का समर्थन भी भाजपा को आसानी से मिल सकेगा।

मोदी अगर आनंदी का नाम मध्यप्रदेश के राज्यपाल के नाम पर आगे बढ़ाते हैं तो एक पंथ दो काज को महत्ता मिल जाएगी और प्रदेश में 1989-90 में रही सरला अग्रवाल के बाद दूसरी महिला राज्यपाल मिलना तय हो जाएगा, बस इंतज़ार है तो 8 सितंबर 2016 का।

सत्येंद्र खरे