नई दिल्ली। कंट्रोलर एंड ऑडिटर ज़रनल ऑफ़ इंडिया (कैग) की रिपोर्ट के मुताबिक सेना में युद्ध सामग्री की भारी कमी गंभीर चिंता का कारण है जिससे बल की अभियान से जुड़ी तैयारियां सीधे तौर पर प्रभावित हो रही हैं।
भारतीय सेना के पास युद्ध लड़ने के लिए ज़रूरी गोला-बारूद नहीं है, सिर्फ़ 50 प्रतिशत सेना के पास ही वार रिज़र्व है। थलसेना को युद्ध की परिस्थिति में करीब 40 दिनों के वॉर-रिज़र्व की जरूरत है। लेकिन उसके पास सिर्फ़ तीन सप्ताह का ही गोला-बारूद मौजूद है, वहीं इस कमी के चलते सेना की तैयारियों और ट्रेनिंग भी प्रभावित हो रही है।
रिपोर्ट में कैग ने रक्षा मंत्रालय और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (ओएफबी) के काम करने के तरीकों पर भी सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सेना के पास पर्याप्त मात्रा में युद्ध सामग्री हो यह सुनिश्चित करना रक्षा मंत्रालय काम है और ओएफबी इसका स्रोत केंद्र है।
बोर्ड की जिम्मेदारी सेना को प्रचुर सप्लाई मुहैया कराना होती है। गौरतलब है कि चूंकि ओएफबी पर्याप्त गोला-बारूद की सप्लाई नहीं कर पा रहा था। इसी के चलते रक्षा मंत्रालय ने सेना के लिए गोला-बारूद आयात करने की भी योजना बनाई थी। लेकिन यह प्रक्रिया भी कारगर साबित नहीं हो पा रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक लगातार होती जा रही कमी से निजात पाने के लिए थलसेना मुख्यालय ने 1999 में एक न्यूनतम स्वीकार्य जोखिम का स्तर (एमएआरएल) 20 (आई) दिन तय किया था। लेकिन 15 साल के बाद भी एमएआरएल का स्तर नहीं हासिल किया जा सका और स्थिति जस की तस बनी हुई है। इसकी भारी कमी गंभीर चिंता का कारण है जिससे थलसेना की अभियान से जुड़ी तैयारियां सीधे तौर पर प्रभावित हो रही हैं।
वहीं कैग की रिपोर्ट पर आपत्ति जताते हुए कांग्रेस नेता पीसी चाको ने कहा है कि इस तरह के रिपोर्ट से लोगों में डर का माहौल पैदा होगा। सरकार को इस पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
ग़ौरतलब है कि,मौजूदा विदेश राज्यमंत्री वी के सिंह जब थलसेना प्रमुख थे तो उन्होनें भी सेना के तोपखाने में गोला बारूद की कमी का मुद्दा उठाया था।