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मैं और मेरी के चक्कर में जीवन हुआ दुखमय : पूर्णमति माताजी - Sabguru News
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मैं और मेरी के चक्कर में जीवन हुआ दुखमय : पूर्णमति माताजी

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मैं और मेरी के चक्कर में जीवन हुआ दुखमय : पूर्णमति माताजी
Aryika Ratnpuarnmti addresing at living skills camp in ashoknagar
Aryika Ratnpuarnmti addresing at living skills camp in ashoknagar
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अशोकनगर। हमें सुख नहीं सुविधाएं मिली है, सुविधाओं को हम सुख न समझे सुविधा कब दुविधा में बदल जाए कह नहीं सकते आपके कमरे का एसी चलते-चलते कब बंद हो जाए और जहां बैठकर ठण्डी फुहार ले रहे थे उसी स्थान पर घुटन महसूस होने लगे यह सब देखने में आता है।

यह सुख नहीं है सुखाभाव है बल्कि सुविधाएं है। इन्हें सुविधाओं तक ही सीमित रहने है। उक्त आशय के उदगार जीवन जीने की कला शिविर में आर्यिका रत्नपूर्णमति माताजी ने व्यक्त किए वह सुभाषगंज में धर्मसभा को संबोधित कर रहीं थी।
उन्होंने कहा कि जो सुख का स्थान है जहां सच्चा सुख मिलने वाला है उसका तो हमें ज्ञान हीं नहीं है जब ज्ञान ही नहीं है तो ढूंढेंगे कैसे। सुख को ढूढने के लिए सच्चे सुख को जानना जरूरी है। जिसे हम क्षणिक सुख मानते है वह तो सुखाभास है वास्तव में तुम भी संसार के दुखों को ही सुख मान लिया है बहुत-बहुत कष्ट, तकलीफ और दुख उठाने पर यदि कोई सुविधा मिल जाए तो हम उसमें खुश हो जाते है और उसे ही सुख मान  लेते है जबकि यह जीव जानता है कि जिस क्षण सुख जाएगा, अगले क्षण ही दुख आने वाला है।
माताजी ने कहा कि जितना मैं और मेरा होगा उतना ही टेंशन होगा। मैं और मेरे के चक्कर में हमने अपनी शांति भंग कर रखी है, एक मकान, दो मकान, दस मकान, यहां जमीन, वहां जमीन, यह बंगला वो गाडी जितना आप परिगृह एकत्रित कर रहे है उसकी संभाल में ही पूरा जीवन व्यतीत होता जा रहा है। हम साधनों के दास बनकर रह गए है, बडे बंगले में रहने का सुख कुछ ही पल में रात्रि में चूहे की फुदगन की आहट होते ही दुख में बदल जाता है। घबराहट होने लगती है यहां कौन घुस आया। पूरी रात भयभीतता में व्यतीत होती है।

यह सब क्यों, क्योंकि हमने अत्याधिक परिगृह एकत्रित कर रखा है उसकी चिंता में पुण्य के योग से जो साधन मिले थे उनका भी सदुपयोग नहीं कर पा रहे। घर में सुविधाएं आ गई है यह सुविधाएं, सुविधाएं नहीं बीमारी की जननी है जिस घर में सूर्य का प्रकाश न हो शुद्घ वायु न बह रही हो वहां जीवन भी दुश्कर हो जाता है।

आपके किचिन में सूर्य का प्रकाश नहीं पहुच रहा तो भोजन विषैला होने लगता है जिसको लोग सुविधा का साधन मानते है ऐसा डिब्बा आप उसे ठण्डे-ठण्डे पानी पीने का साधन फ्रिज मानते है उसमें जो भी सामान रहता है वह तरह-तरह की गैसों से प्रभावित होता है और आपके शरीर को हानि पहुचाता है। यह बहुत धीमी प्रक्रिया है जो आपको पता ही नहीं ।
प्रकृति से जो मिला है वही सबसे उपयुक्त
माताजी ने कहा कि प्रकृति से हमें जो भी मिला है वह हमारे शरीर के लिए सबसे उपयोगी है इस शरीर की आवश्यकता के अनुरूप ही प्रकृति ने वातावरण बनाया है और शरीर भी प्रकृति के वातावरण के अनुरूप $ढल जाता है किन्तु हम सुविधा का बगैर विवेक के छो$ड दे तो इस शरीर को वह कष्टप्रद बना देती है।

उदाहरण के लिए आप ऐसी रूम से बाहर निकलकर धूप में चले जाएं तो अस्वस्थ हो जाएंगे। सुख को पाना चाहते है तो सुविधाओं की ओर ध्यान न लगाएं सुविधाएं शरीर के लिए होती है, आनंद आत्मा में आता है और सुख आत्मज्ञ को मिलेगा। जीवन की इस आपाधापी से अपने आप को बचाएं और सच्चे सुख को पाने का प्रयास करें ऐसी मंगल भावना है।

 

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