![अशोक सिंहल को भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति था अगाध प्रेम अशोक सिंहल को भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रति था अगाध प्रेम](https://www.sabguru.com/wp-content/uploads/2015/11/singhli.jpg)
![Ashok Singhal had deep interest in hindustani classical music](https://www.sabguru.com/wp-content/uploads/2015/11/singhli.jpg)
लखनऊ। अशोक सिंघल को भारतीय शास्त्रीय संगीत में गहरी रुचि थी। वह हिन्दुस्तानी संगीत के गायक भी थे। परिवार का वातावरण धार्मिक होने के कारण उनके मन में बचपन से ही हिन्दू धर्म के साथ-साथ भारतीय संगीत के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया था।
आजीवन अविवाहित रहे अशोक सिंहल ने भारतीय संगीत की शिक्षा पंडित ओमकारनाथ ठाकुर से ली थी। बचपन में ही उन्होंने खुद को देश, समाज, धर्म और संस्कृति की रक्षा के प्रति समर्पित कर देने का संकल्प ले लिया था।
संकल्प के प्रति उनकी प्रतिबद्धता इस कदर थी कि उन्होंने गंभीर रूप से अस्वस्थ पिता के इलाज के लिए उनके साथ अमेरिका जाने से इंकार कर दिया था। तब उन्होंने दो टूक कहा था कि मैं राष्ट् सेवा में व्यस्त हूं, इसलिए किसी और भाई को पिताजी के साथ भेज दो।
अपने संकल्प के प्रति न्योछावर हो चुके अशोक सिंहल मृत्युशैया पर लेटी अपनी माताजी को भी समय नहीं दे पाए। इस दौरान जब वह घर पहुंचे तो इसके आधे घंटे के बाद ही माताजी स्वर्ग सिधार गईं।
बतौर प्रचारक अशोकजी ने कानपुर में महज 5 फुट चौड़े और 8 फुट लंबे कमरे में बिना किसी शिकायत के बरसों बिताए। एक बार कोट पेंट पहनने पर रज्जू भैया के सुनहरे लग रहे हो संबंधी स्नेहपूर्ण व्यंग्य के बाद दुबारा कोट पेंट नहीं पहना।
पिताजी से मिली थी घर से निकाल देने की धमकी
अशोक सिंहल ने जब अपने प्रशासनिक अधिकारी पिता को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में पूर्णकालिक सेवा देने के अपने फैसले से अवगत कराया तो वह नाराज हो गए थे। उन्होंन पहले तो सिंहल को अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया और कहा कि बिना प्रचारक बने भी देश सेवा की जा सकती है।
इसके बाद उन्होंने न केवल डराया धमकाया, बल्कि घर से बाहर निकालने तक की धमकी दी। इसके बावजूद जब पिता सिंहल को उनके दृढ़ निश्चय ने नहीं डिगा पाए तो न केवल अपना आशीर्वाद दिया, बल्कि यह भी नसीहत दी कि जब प्रचारक बनना तय कर ही लिया है तो इसे पूरे मन, आत्मा और विवेक से पूर्ण करो।