गुवाहाटी। परंपरा के नाम पर पशुओं की लड़ाई को लेकर देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाने के बावजूद असम के विभिन्न हिस्सों में भैंसों की लड़ाई और मुर्गों की लड़ाई का खेल आयोजित किया गया।
हालांकि इन आयोजनों को औपचारिक रूप से आयोजित नहीं किया गया, बावजूद कुछ लोगों ने परंपरा की दुहाई देकर इसका आयोजन किया। प्रशासन इस पर रोक लगाने में पूरी तरह से विफल रहा।
मिली जानकारी के अनुसार प्रत्येक वर्ष माघ बिहू यानि 14 जनवरी के दिन असम में विभिन्न हिस्सों में भैंसों की लड़ाई, मुर्गों की लड़ाई और बुलबुल की लड़ाई का खेल आयोजित किया जाता रहा है। इसे देखने के लिए राज्य ही नहीं देश के अन्य हिस्सों से लोग आते रहे हैं।
लेकिन पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाने के बाद इस तरह के आयोजनों पर रोक लग गई। बावजूद इसके कुछ लोगों ने छुपे तौर पर इन खेलों का आयोजन परंपरा की दुहाई देकर किया।
इसी कड़ी में बीते शनिवार को भी इसका आयोजन किया गया। मिली जानकारी के अनुसार राज्य के लाहरीघाट, मोरीगांव और रोहा में जहां पर भैंसों की लडाई का आयोजन किया गया। होजाई जिले में मुर्गों की लड़ाई का खेल हुआ। जिसको देखने के लिए काफी संख्या में स्थानीय लोग मौजूद थे।
जबकि सुप्रीम कोर्ट ने माघ बिहू के अवसर पर आयोजित होने वाले इन खेलों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि कामरूप (ग्रामीण) जिले के हाजो में आयोजित होने वाले प्रसिद्ध बुलबुल युद्ध को पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी आयोजित नहीं किया गया। इसको लेकर लोगों में भारी रोष व्याप्त है।
उन्होंने कहा कि यह निर्णय हमारी ऐतिहासिक परंपरा के विरूद्ध है। बावजूद लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान करते हुए इसके आयोजन को रद्द कर दिया।