Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
at its NSG bid fails, india says paris climate agreement ratification may be delayed
Home Breaking एनएसजी पर निर्णय के बाद पेरिस समझौते की पुष्टि करने में हो सकती है देरी

एनएसजी पर निर्णय के बाद पेरिस समझौते की पुष्टि करने में हो सकती है देरी

0
एनएसजी पर निर्णय के बाद पेरिस समझौते की पुष्टि करने में हो सकती है देरी
at its NSG bid fails, india says paris climate agreement ratification may be delayed
at its NSG bid fails, india says paris climate agreement ratification may be delayed
at its NSG bid fails, india says paris climate agreement ratification may be delayed

नई दिल्ली। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की सदस्यता न मिलने से निराश भारत सरकार ने संकेत दिए हैं कि पेरिस में हुए ऐतिहासिक जलवायु समझौते की पुष्टि करने में देरी हो सकती है।

सियोल में एनएसजी के 48 देशों की हुई समग्र बैठक में भारत की सदस्यता पर कोई निर्णय न लेने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि भारत के आवेदन पर शीघ्र निर्णय वैश्विक हित में होता। एनएसजी में भारत की सदस्यता को लेकर लिया गया सकारात्मक निर्णय जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते को आगे बढ़ने के लिए सहायक सिद्ध होता।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत का आवेदन इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि 2030 तक भारत गैर-जीवाश्म से 40 प्रतिशत तक बिजली उत्पादन क्षमता हासिल करने की परिकल्पना करा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर भारत को इस विशिष्ट समूह का हिस्सा बना लिया जाता तो इससे ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने में मदद तो मिलती ही साथ ही जलवायु परिवर्तन से मुकालबा करने में भी भारत खुद को सक्षम कर पाता।

एनएसजी के अधिकांश सदस्य देशों ने भारत का समर्थन किया परन्तु मुख्य तौर पर चीन के नेतृत्व में कुछ देशों के विरोध से एनएसजी में शामिल होने का भारत का सपना टूट गया। जहां एक तरफ अमेरिका एनएसजी में भारत के प्रवेश का लगातार समर्थन कर रहा है वहीं परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का हवाला देते हुए चीन भारत की सदस्यता का विरोध कर रहा है।

अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जलवायु परिवर्तन पर भारत का भरपूर समर्थन पाने की कोशिश में हैं।वहीं प्रधानमंत्री मोदी भी एनएसजी की सदस्यता के लिए अमरीका से पूर्ण सहायता प्राप्त करने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। पेरिस जलवायु समझौता और एनएसजी को लेकर भारत और अमरीका के बीच पिछले कई महीनों से बातचीत चल रही थी।

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत को एनएसजी की सदस्यता हासिल करने में भरपूर सहयोग का वादा उस उम्मीद पर किया था कि भारत इस साल के आख़िर तक पेरिस में हुए जलवायु समझौते को औपचारिक तौर से अपना लेगा।

भारत ने 170 से अधिक देशों के साथ मिलकर ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते पर इस साल के अप्रैल माह में हस्ताक्षर किए थे और इसे जल्द से जल्द लागू करने पर प्रतिबद्धता जताई थी। पेरिस जलवायु समझौता ओबामा शासनकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है।

माना जा रहा है कि अगर भारत जल्द ही इसमें शामिल हो जाता है तो राष्ट्रपति ओबामा के शासनकाल के दौरान ही ये समझौता लागू हो जाएगा। लेकिन एनएसजी में भारत को शामिल न करने के बाद अब जलवायु समझौते को लागू करने की राह भी इतनी आसान नहीं रह गई है।

प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका दौरे के दौरान व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जोश अर्नेस्ट ने कहा था कि पेरिस में ऐतिहासिक जलवायु परिवर्तन समझौता संभव नहीं होता अगर भारत कुछ महत्वपूर्ण प्रतिबद्धताएं व्यक्त करने में नेतृत्व नहीं दिखाता।

भारत को अमरीका और चीन के बाद सबसे ज़्यादा ग्रीनहाउस गैस प्रसार करने वाला देश माना जाता है। भारत सरकार ने 2022 तक अपनी नवीकरणीय विद्युत क्षमता को चार गुणा बढ़ाकर 175 गिगावाट करने की योजना की घोषणा की है।

वित्त मंत्री अरुण जेटली कह चुके हैं कि धनी देशों के दशकों के औद्योगिक विकास के बाद जलवायु परिवर्तन से लड़ने का बोझ गरीब देशों के कंधों पर नहीं डाला जा सकता।

उन्होंने कहा कि अपनी विकास जरूरतों के बावजूद भारत जलवायु की सुरक्षा के लिए पूरी तरह कटिबद्ध है। हमें और मकानों, बिजली, शौचालयों, सड़कों और फैक्टरियों की जरूरत है। इसलिए ईंधन की हमारी आवश्यकता निश्चित ही बढ़ने जा रही है। इन सभी के बावजूद पर्यावरण को बचाने के हमारे अपने मापदंड बड़े कठोर हैं। उन्होंने कहा, हम अपनी जिम्मेदारियों को लेकर सजग हैं।