अजमेर। आधुनिक समय में वृद्धजन समाज को बोझ की तरह लगने लगे है। जिनकी उंगली पड़कर चलना था सीखा, आज वही बच्चे मां के दूध का ऐसा कर्ज़ चुकाते हैं, अपने मां-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं। जिनके कंधे पर बेठकर देखा था मेला, जिसने तुम्हारी खातिर सारा दुख था झेला, ऐसे मां-बाप को वे खुशियां नहीं दे पाते। जिसने हर दुख-सुख में तुम्हारा साथ नहीं छोड़ा, जिसने कभी अपने कर्तव्यो से मुंह नहीं मोड़ा, आज अपने मां-बाप का वे हाथ ऐसे ही छोड़ चले जाते हैं, अपने मां-बाप को वो वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं।
आजाद पार्क में चल रही रूणिचा वाले बाबा रामदेव की कथा के आठवें दिन रविवार को कथा के दौरान संत स्वामी मूल योगीराज ने कहा कि बुजुर्ग हमारी धरोहर हैं, यदि समाज या घर में आयोजित धार्मिक कार्यक्रम में कुछ गलत हो रहा है तो इसे बताने के लिए इन बुजुर्गों के अलावा कौन है, जो हमें सही बताएगा?
शादी के ऐन मौके पर जब वर या वधू पक्ष के गोत्र बताने की बात आती है, तो घर के सबसे बुजुर्ग की ही खोज होती है। आज की युवा पीढ़ी भले ही इसे अनदेखा करती हो, पर यह भी एक सच है, जो बुजुर्गों के माध्यम से सही साबित होता है।
स्वामी मूल योगीराज ने कहा कि दान आवश्यकता का होता है। जब कोई किसी को आवश्यकता के वक्त उसके आवश्यकता की वस्तु उपलब्ध करवा दें उसी दान के पुण्य का फल प्राप्त होता है। दान से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है और साथ ही जाने-अनजाने में किए गए पाप कर्मों के फल भी नष्ट हो जाते हैं।
शास्त्रों में दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस पुण्य कर्म में समाज में समानता का भाव बना रहता है और जरुरतमंद व्यक्ति को भी जीवन के लिए उपयोगी चीजें प्राप्त हो पाती है। भी धर्मों में सुपात्र को दान देना परम् कर्तव्य माना गया है। हिन्दू धर्म में दान की बहुत महिमा बताई गई है। आधुनिक सन्दर्भों में दान का अर्थ किसी जरूरतमन्द को सहायता के रूप में कुछ देना है।
मूल योगीराज ने कहा कि हमारा प्रिय शगल है दूसरों की निंदा करना। सदैव दूसरों में दोष ढूंढते रहना मानवीय स्वभाव का एक बड़ा अवगुण है। दूसरों में दोष निकालना और खुद को श्रेष्ठ बताना कुछ लोगों का स्वभाव होता है। परनिंदा में प्रारंभ में काफी आनंद मिलता है लेकिन बाद में निंदा करने से मन में अशांति व्याप्त होती है और हम हमारा जीवन दुःखों से भर लेते हैं।
प्रत्येक मनुष्य का अपना अलग दृष्टिकोण एवं स्वभाव होता है। संसार में प्रत्येक जीव की रचना ईश्वर ने किसी उद्देश्य से की है। हमें ईश्वर की किसी भी रचना का मखौल उड़ाने का अधिकार नहीं है। इसलिए किसी की निंदा करना साक्षात परमात्मा की निंदा करने के समान है। किसी की आलोचना से आप खुद के अहंकार को कुछ समय के लिए तो संतुष्ट कर सकते हैं किन्तु किसी की काबिलियत, नेकी, अच्छाई और सच्चाई की संपदा को नष्ट नहीं कर सकते।
संत स्वामी ने कहा कि गरीबों ओर दलितों के मसीहा, सच्चे समाज सुधारक, अंधविश्वास को खत्म करने वाले, जाति व्यवस्था मे व्याप्त भेदभाव को मिटाने वाले बाबा रामदेव राजस्थान ही नहीं वरन सम्पूर्ण भारत मे पूजे जाने वाले देवता हैं। आज के वैज्ञानिक युग में भी बाबा के चमत्कार देखे जाते हैं। बाबा रामदेव ने भी समाज को यही संदेश दिया था कि जात-पात से ऊंचा मानव धर्म है, उन्होंने समाज के निम्न वर्ग को गले लगाकर जात-पात का भेद मिटाया।
उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि बाबा रामदेव के मानव धर्म को सर्वोपरि मानने के कारण ही सर्वजातीय लोग उन्हें पूजने लगे हैं। बाबा रामदेव ने अंधविश्वास और सामाजिक बुराइयों को मिटाने का काम किया, पहले लोग महिलाओं को विधवा होने पर पूरी जिंदगी वैरागी जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य करते थे। पति के मृत्यु का कलंक उसे जीवनभर भोगना पड़ता था, लेकिन कुछ बुद्धिजीवियों ने अभियान चलाया और आज उच्च जाति में भी समाज विधवाओं के पुनर्विवाह को मान्यता देने लगा है। उन्होंने कहा कि जिस समाज, घर में महिलाओं का अपमान होता है वहां कभी सुख और शांति नहीं हो सकती।
कथा के मध्य मे साध्वी शशि गौतम ने अपनी सुमधुर आवाज़ मे प्रभु तुम अंतर्यामी, लागी तुमसे लगन पारस प्यारा, रानी सती दादी जी का भजन सर्व सुहागन वही ने मंदिरिये में आयी, श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी, भक्त-भगवान् का क्या अजब रिश्ता है, भगवान् से मिलना सहज नहीं बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है, करलो शुभ काम यहाँ चंद रोज का बसेरा है, ज़िन्दगी ये मिली चार दिन के लिए और रामचरितमानस की चौपाइयों सहित अनेक भजन प्रस्तुत किये। पूर्ण लय-ताल और वाद्य यंत्रों की ध्वनि के साथ प्रस्तुत भजनों पर कथा मंडप में विराजित श्रोतागण भाव-विभोर होकर नाच उठे।
कथा आयोजक संस्था बाबा श्रीरामदेव कथा समिति के प्रमुख कार्यकर्ता महेंद्र मारु ने बताया कि रविवार की कथा में भाभी के मरे हुए बछड़े को पुनः जीवित करना, डालीबाई को इच्छा वरदान प्रदान करना, रुणेचा से प्रस्थान कर रामसरोवर पर डाली को समाधी देने के बाद जीवित समाधी लेना और पुनः हरबुजी से मिलान सहित अन्य प्रसंग प्रस्तुत किए गए। `सोमवार की कथा में पुनः समाधि खोदने पर कुछ नहीं मिलना, घोडा आदृश्य होना, समाधि की पूजा प्रारम्भ होना, बीज उपासना की विधि बताना और चमत्कार दिखाना आदि प्रसंगों की प्रस्तुति दी जाएगी।
रविवार की कथा में अजमेर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष शिवशंकर हेड़ा, राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव महेंद्र सिंह रलावता, नारीशाला बोर्ड की चेयरमेन भारती श्रीवास्तव, अशोक टांक, जीतेन्द्र धारू, महेन्द्र मारू, अमरचंद भाटी, बनवारी गाछा आदि विशेष रूप से पूजा और आरती मे उपस्थित थे।