नई दिल्ली। भारतीय बैंकों के नॉन पर्फामिंग एस्टेट (एनपीए) याने बुरे कर्ज में तेजी आई है। एनपीए वो कर्ज होता है, जिसकी बैंक को वापस मिलने की उम्मीद कम होती है। पिछले एक साल में देश की सरकारी बैंकों के एनपीए में 56 फीसदी का इजाफा देखा गया है।
एक निजी वित्तीय एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय सरकारी बैंकों का एनपीए 6 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा हो गया है। पांच बैंकों का एनपीए तो आरबीआई की तय सीमा 15 फीसदी से ज्यादा हो गया है।
आरबीआई के नियमों के मुताबिक किसी भी बैंक का एनपीए कुल दिए कर्ज का 15 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, यूनाइटेड बैंक, आईडीबीआई और बैंक ऑफ महाराष्ट्र का एनपीए कुल दिए कर्ज के 15 फीसदी से ज्यादा है।
मतलब इन बैंकों को मालूम है कि 15 फीसदी से ज्यादा कर्ज वापस नहीं होगा। बैंकिंग सेक्टर के जानकार इसके लिए 8 नवंबर, 2016 को घोषित नोटबंदी को भी जिम्मेदार मान रहे हैं।
उनका कहना है कि नोटबंदी के कारण लघु और मध्यम स्तर के उद्योग बैंकों का अपना कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गए, जिसके चलते भी बैंकों का एनपीए बढ़ा है।