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why does balochistan want freedom from pakistan
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क्या अब तीन टुकडे होगा पाकिस्तान

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क्या अब तीन टुकडे होगा पाकिस्तान
why does balochistan want freedom from pakistan
why does balochistan want freedom from pakistan

कहते हैं कि जो लोग शीशे के घरों में रहते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बलों की कथित ज्यादतियों के विरोध में बंद का आहवान किया था।

हालांकि कश्मीरियों का अपने को प्रवक्ता होने का दावा करने वाला पाकिस्तान यह भूल गया कि खुद उसके देश में कई जगहों पर जोरदार पृथकतावादी आंदोलन चले रहे हैं। सिंध की राजधानी कराची में मुहाजिर यानी उर्दू बोलने वाले अपनी ही पाकिस्तानी सरकार की ज्यादतियों के विरोध में सड़कों पर उतर चुके हैं।

बीते शनिवार को वाशिंगटन में व्हाइट हाऊस के बाहर इन्होंने मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के बैनर तले प्रदर्शन किया। मुहाजिर उन्हें कहा जाता है जो देश के विभाजन के समय मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश तथा बिहार से सरहद के उस पार चले गए थे।

व्हाइट हाऊस के बाहर प्रदर्शन करने वालों का वहां पर मौजूद अपने ही मुल्क के पंजाबी लोगों से हाथा-पाई भी हुई। ये प्रदर्शन इसलिए कर रहे थे ताकि अमेरिकी सरकार उनके हित में पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाए। एमक्यूएम के प्रदर्शनकारियों को इनके लंदन में निर्वासित जीवन व्यतीत करने वाले नेता अल्ताफ हुसैन ने संबोधित भी किया।

अल्ताफ हुसैन से पाकिस्तान सरकार थर्राती है। उसका नाम सुनते ही पाकिस्तान सरकार और सेना के आला अफसरों के हाथ-पांव फूलने लगते हैं। बीते साल एमक्यूएम की तरफ से संयुक्त राष्ट्र, अमरीका, नाटो और यहां तक की भारत से मदद मांगी थी, ताकि उनके वजूद (मुहाजिरों) को खत्म होने से बचाया जा सके।

मुहाजिर अरबी शब्द है। इसका अर्थ है अप्रवासी। यानी जो किसी दूसरी जगह से आकर बसे हों। बलूचिस्तान में भी सघन पृथकतावादी आंदोलन चल रहा है। नवाज शरीफ के लिए सिरदर्द बना हुआ है बलूचिस्तान।

चीन की मदद से बन रहे ग्वादर पोर्ट के इलाके में पिछले कुछ सालों से चल रहा पृथकतावादी आंदोलन अब बेकाबू होता जा रहा है। आंदोलन इसलिए हो रहा है क्योंकि स्थानीय जनता का आरोप है कि चीन जो भी निवेश कर रहा है उसका असली मकसद बलूचिस्तान का नहीं बल्कि चीन का फायदा करना है।

बलूचिस्तान के प्रतिबंधित संगठनों ने धमकी दी है कि चीन समेत दूसरे देश ग्वादर में अपना पैसा बर्बाद ना करें, दूसरे देशों को बलूचिस्तान की प्राकृतिक संपदा को लूटने नहीं दिया जाएगा। इन संगठनों ने बलूचिस्तान में काम कर रहे चीनी इंजीनियरों पर हमले बढ़ा दिए हैं।

आपको बता दें कि 790 किलोमीटर के समुद्र तट वाले ग्वादर इलाके पर चीन की हमेशा से नजर रही है। बलूचिस्तान की अवाम का कहना है कि जैसे 1971 में पाकिस्तान से कटकर बांग्लादेश बन गया था उसी तरह एक दिन बलूचिस्तान अलग देश बन जाएगा।

बलूचिस्तान के लोग किसी भी कीमत पर पाकिस्तान से अलग हो जाना चाहते हैं। आपको बता दें कि बलूचिस्तान पाकिस्तान के पश्चिम का राज्य है जिसकी राजधानी क्वेटा है। बलूचिस्तान के पड़ोस में ईरान और अफगानिस्तान है।

1944 में ही बलूचिस्तान को आजादी देने के लिए माहौल बन रहा था। लेकिन, 1947 में इसे जबरन पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया। तभी से बलूच लोगों का संघर्ष चल रहा है और उतनी ही ताकत से पाकिस्तानी सेना और सरकार बलूच लोगों को कुचलती रही है।

आजादी की लड़ाई के दौरान भी बलूचिस्तान के स्थानीय नेता अपना अलग देश चाहते थे। लेकिन, जब पाकिस्तान ने फौज और हथियार के दम पर बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया तो वहां विद्रोह भड़क उठा था। वहां की सड़कों पर अब भी ये आंदोलन जिंदा है।

बलूचिस्तान में आंदोलन के चलते पाकिस्तान ने विकास की हर डोर से इस इलाके को काट रखा है। लोगों के दिन की शुरुआत दहशत के साथ होती है।

इस बीच, अल्ताफ हुसैन पूरी दुनिया में पाकिस्तान सरकार के मुहाजिर विरोधी चेहरे को बेनकाब करने में लगे हुए हैं। उनका एक मात्र एजेंडा पाकिस्तान सरकार की जनविरोधी करतूतों को दुनिया के सामने लाना है।

पिछले साल जब नवाज शरीफ संयुक्त राष्ट्र में राग कश्मीर छेड़ रहे थे तब अल्ताफ हुसैन के बहुत से साथी संयुक्त राष्ट्र सभागार के बाहर मुहाजिरों पर पाकिस्तान सरकार के जुल्मों-सितम के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे।

दरअसल, पाकिस्तान की एक कोर्ट में अल्ताफ हुसैन को राष्ट्र विरोधी तकरीरें करने के आरोप में 81 सालों की सजा सुनाई चुकी। उनकी संपत्ति को जब्त करने के भी आदेश दिए गए हैं। सिंध पुलिस को आदेश दिए कि वे उन्हें कोर्ट में पेश करें।

पाकिस्तान में तब से भूचाल सा आया हुआ है जब से अल्ताफ हुसैन ने संयुक्त राष्ट्र, अमरीका, नाटो और भारत से मदद मांगी थी। अब एमक्यूएम ने व्हाइट हाऊस के बाहर प्रदर्शन कर दिया।

पिछले साल एमक्यूएम के अमरीका के शहर डलास में हुए सम्मेलन को वीडियो लिंक से संबोधित करते हुए अल्ताफ हुसैन ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान की पंजाबी बहुमत वाली आर्मी मुहाजिरों का कत्लेआम कर रही हैं। सेना वहां पर हजारों मुहाजिरों को मार चुकी है। वहां पर सरकार उन्हें उनके वाजिब हक भी नहीं देती।

व्हाइट हाऊस के बाहर हुए प्रदर्शन को संबोधित करते हुए अल्ताफ हुसैन ने अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से अपील की कि वे पाकिस्तान के सिंध सूबे और कराची में मुख्य रूप से रहने वाले मुजाहिरों को बचाए।

उन्होंने ये भी कहा कि पाकिस्तान में मुहाजिर वह कौम है, जो एक तरह से धरती पुत्र नहीं हैं। वे तो भारत के बहुत से सूबों से जाकर मुख्य रूप से सिंध के शहर कराची में जाकर बसे थे।

मुहाजिरों का कराची और सिंध में हमेशा से तगड़ा प्रभाव रहा है। ये आमतौर पर पढ़े-लिखे हैं। इनमें मिडिल क्लास काफी हैं। ये सिंध की सियासत को तय करते रहे हैं। अभी इनकी आबादी पाकिस्तान में करीब दो करोड़ मानी जाती है।

बेहद प्रखर वक्ता अल्ताफ हुसैन ने डलास की सभा में दी अपनी तकरीर में बार- बार भारत का जिक्र किया था। कहा था, मुहाजिरों का संबंध भारत से है। इसलिए भारत को उनके पक्ष में खड़ा होना चाहिए।

भारत को मुहाजिरों के कत्लेआम को सहन नहीं करना चाहिए। उन्होंने अपनी तकरीर में पाकिस्तान आर्मी की 1971 की भारत से जंग में हारने पर खिल्ली उड़ाई। पाकिस्तान आर्मी पर की गई इस कठोर टिप्पणी से तो वहां सरकार और सेना को आग लग गई है।

अगर मुहाजिरों के संघर्ष के पन्नों को पलटें तो पाकिस्तान में मुहाजिरों ने अयूब खान के दौर में सबसे पहले 1959 में अपने हकों के लिए आवाज बुलंद करनी चालू कर दी थी। उसके बाद मुहाजिर युवाओं ने अपना 1978 में स्टुडेंट विंग खड़ा किया। फिर एमक्यूएम पार्टी की स्था पना 1984 की गई।

पाकिस्तान की नेशनलएसेंबली में एमक्यूएम चौथी बड़ी पार्टी है। पहले इसका नाम मुहाजिर कौमी मूवमेंट था। बाद में इसे कर दिया गया मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पार्टी। अल्ताफ हुसैन के पास भी भारत-पाकिस्तान के संबंधों को सुधारने का नुस्खा है। भारत-पाकिस्तान के संबंध कैसे सुधरे?

इस सवाल पर अल्ताफ हुसैन ने एक बार कहा था कि मेरा तो फोकस रहेगा कि दोनों मुल्कों के आम अवाम को सरहद के आर-पार आवाजाही के लिए दिक्कत ना हो। वे एक-दूसरे के मुल्क में मजे-मजे में आ जा सकें। अगर हम यह कर पाए तो भारत-पाकिस्तान अमन से रह सकेंगे।

मैं जब दोनों देशों के अवाम के इधर-उधर आवाजाही को आसान करने की बात कर रहा हूं तो मैं बात कर रहा हूं इंडिया के पार्टिशन की वजह से बंटे खानदानों की। उन्हें बंटवारे ने कहीं का नहीं छोड़ा। वे बंटवारे की वजह से नुकसान में रहे। एक और सवाल के जवाब में अल्ताफ हुसैन कहने लगे कि देश का बंटवारा ना होता तो मुसलमानों की भारत में हैसियत बेहतर होती।

क्या सरहद पार मुहाजिरों पर हो रहे कत्लेआम के खिलाफ कभी भारत आवाज उठाएगा? क्या कभी अंतरराष्ट्रीय बिरादरी पाकिस्तान सरकार से पूछेगी कि वह अपने ही मुल्क के खास तबके के साथ इतना अन्याय क्यों कर रही है?

एक बात बहुत साफ है कि भारत को मुहाजिरों की लड़ाई में उन्हें अपना नैतिक समर्थन देने के संबंध में सोचना चाहिए। जब पाकिस्तान हमारे आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है, तो हमें मुहाजिरों के हक में बोलने में क्या बुराई हैं। वे तो भारत से ही तो नाता रखते थे। और फिर सवाल मानवीय भी तो है। कश्मीर मसले पर पंगेबाजी करने वाला पाकिस्तान में आने वाले समय में फिर बंट जाए तो हैरान मत होइये।
: आर. के. सिन्हा
( लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)