मुंबई। छोटी-छोटी रकम को मिलाकर देश भर में बैंकों और वित्तीय संस्थानों के कम से कम 1.86 लाख करोड़ रुपए फंसे हुए हैं, जिन्हें वापस हासिल करने के लिए वे अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक ने कर्ज नहीं चुकाने वालों यानी डिफॉल्टरों की फेहरिस्त सीलबंद लिफाफे में उच्चतम न्यायालय को सौंपी थी। साथ ही उसने अदालत से गुजारिश की थी कि उनके नामों का खुलासा नहीं किया जाए।
गौरतलब है कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों का हजारों करोड़ रुपये का बकाया नहीं चुकाना अक्सर सुर्खियां बन जाता है और उस फंसे कर्ज को हासिल करने के लिए बैंकों या वित्तीय संस्थानों के मुकदमे भी जगजाहिर हो जाते हैं, लेकिन उन मुकदमों पर कभी चर्चा नहीं होती, जिनमें 1 करोड़ रुपए का ही कर्ज फंसा होता है।
बताया जाता है कि देश भर में बैंकों और वित्तीय संस्थानों के कम से कम 1.86 लाख करोड़ रुपए फंसे हुए हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि ऐसे ही डिफॉल्ट मामलों में बैंक और संस्थान पहले ही मुकदमे दायर कर चुके हैं।
सबसे बड़ी कंपनी सिबिल में उपलब्ध जानकारी पर नजर डाली गई तो पता चला कि दिसंबर 2015 तक डिफॉल्ट करने वालों के नाम थे। सिबिल के अलावा तीन अन्य मान्यता प्राप्त क्रेडिट इन्फॉर्मेशन कंपनियां हैं।
वित्तीय संस्थान उनमें से किसी एक के या तीनों के सदस्य हो सकते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि सिबिल और वैसी ही अन्य कंपनियां केवल इकट्ठे आंकड़े ही नहीं देती हैं, बल्कि हरेक मुकदमे में शामिल कंपनी और उसके निदेशकों के नाम भी बताती हैं।
रिजर्व बैंक ने खुलासे के बारे में अपने मुख्य निर्देश में कहा है कि कर्ज देने से पहले बैंकों को इस फेहरिस्त पर नजर दौड़ानी चाहिए।