Warning: Undefined variable $td_post_theme_settings in /www/wwwroot/sabguru/sabguru.com/news/wp-content/themes/Newspaper/functions.php on line 54
बस्तर का अनूठा दशहरा: यहां रावण नहीं मारा जाता - Sabguru News
Home Chhattisgarh बस्तर का अनूठा दशहरा: यहां रावण नहीं मारा जाता

बस्तर का अनूठा दशहरा: यहां रावण नहीं मारा जाता

0
बस्तर का अनूठा दशहरा: यहां रावण नहीं मारा जाता
Bastar's unique Dussehra: Even Ravana is killed
Bastar's unique Dussehra: Even Ravana is killed
Bastar’s unique Dussehra: Even Ravana is killed

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के आदिवासी वनांचल बस्तर के दशहरा का राम-रावण युद्घ से कोई सरोकार नहीं है। यह ऐसा अनूठा पर्व है जिसमें रावण नहीं मारा जाता, अपितु बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी सहित अनेक देवी-देेवताओं की तेरह दिन तक पूजा अर्चनाएं होती हैं।

बस्तर दशहरा विश्व का सर्वाधिक दीर्घ अवधि वाला पर्व माना जाता है। इसकी संपन्न्ता अवधि पचहत्तर दिवसीय होती है।

रियासत बस्तर में पितृ पक्ष मोक्ष हरेली अमावस्या अर्थात 3 माह पूर्व  से दशहरा की तैयारियां शुरू हो जाती है। बस्तर दशहरा के ऐतिहासिक संदर्भ में किवदंतियां हैं कि, यह पर्व 500 से अधिक वर्षों से परंपरानुसार मनाया जा रहा है। दशहरा की काकतीय राजवंश एवं उनकी इष्टïदेवी मां दंतेश्वरी से अटूट प्रगाढ़ता है।

इस पर्व का आरंभ वर्षाकाल के श्रावण मास की हरेली अमावस्या से होता है। रथ निर्माण के लिए प्रथम लकड़ी का पट्टï विधिवत काटकर जंगल से लाया जाता है, इसे पाट जात्रा विधान कहा जाता है। पट्टï पूजा से ही पर्व के महाविधान का श्रीगणेश होता है। तत्पश्चात स्तंभ रोहण के अंर्तगत बिलोरी ग्रामवासी सिरहासार भवन में डेरी लाकर भूमि में स्थापित करते हैं। इस रस्म के उपरंात रथ निर्माण हेतु विभिन्न गांवों  से लकडिय़ां लाकर कार्य प्रारंभ किया जाता है।
पचहत्तर दिनों की इस लम्बी अवधि में प्रमुख रूप से काछन गादी, पाट जात्रा, जोगी बिठाई, मावली जात्रा, भीतर रैनी, बाहर रैनी तथा मुरिया दरबार मुख्य रस्में होती हैं, जो धूमधाम व हर्षोल्लास से बस्तर के संभागीय मुख्यालय में संपन्न होती हैं। रथ परिक्रमा प्रारंभ करने से पूर्व काछनगुड़ी में कुंवारी हरिजन कन्या को कांटे के झूले में बिठाकर झूलाते हैं तथा उससे दशहरा की अनुमति व सहमति ली जाती है।

भादों मास के पन्द्रहवें अर्थात अमावस्या के दिन यह विधान संपन्न होता है। जोगी बिठाई परिपाटी के पीछे ग्रामीणों का योग के प्रति सहज ज्ञान झलकता है, क्योंकि दस दिनों तक भूमिगत होकर बिना मल-मूत्र त्यागे तप साधना की मुद्रा में रहना इतना आसान या सामान्य भी नहीं है।

बस्तर दशहरा का सबसे आकर्षण का केंद्र होता है, काष्ठï निर्मित विशालकाय दुमंजिला भव्य रूप से सजा-सजाया रथ, जिसे सैकड़ों ग्रामीण आदिवासी उत्साहपूर्वक खींचते हैं और रथ पर सवार होता है, बस्तर का सम्मान, ग्रामीणों की आस्था, भक्ति का प्रतीक-माई दंतेश्वरी का छत्र। जब तक राजशाही जिंदा थी, राजा स्वयं सवार होते थे।

बिना किसी आधुनिक तकनीक व औजारों की सहायता से एक निश्चित समयावधि में विशालकाय अनूठे रथ का निर्माण जहां आदिवासियों की काष्ठï कला का अद्वितीय प्रमाण है, वहीं उनमें छिपे सहकारिता के भाव को जगाने का श्रेष्ठï कर्म भी है। बिना जाति वर्ग भेद के इस अवसर पर समान रूप से सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित कर सम्मानित करना भी एकता-दृढ़ता का ही प्रतीक है।

पर्व के अंत में सम्पन्न होने वाला मुरिया दरबार इसे प्रजातांत्रिक पर्व के ढांचे में ला खड़ा करता है। पर्व के सुचारू संचालन के लिए दशहरा समिति गठित की जाती है, जिसके माध्यम से बस्तर के समस्त देवी-देवताओं, चालकों, मांझी, सरपंच, कोटवार, पुजारी सहित ग्राम्यजनों को दशहरा में सम्मिलित होने का आमंत्रण दिया जाता है।