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ब्यावर बादशाह मेले में छाया रहा गुलाल का गुबार - Sabguru News
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ब्यावर बादशाह मेले में छाया रहा गुलाल का गुबार

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ब्यावर बादशाह मेले में छाया रहा गुलाल का गुबार
badshah on his rath during procession in badshah mela.
badshah mela in beawer
badshah mela in beawer

सबगुरु न्यूज-ब्यावर। गुलालों के गुबार की बीच बिना रुके नृत्य करता बीरबल और उसके पीछे ट्रकों में सवार बादशाह पर गुलाल बरसाते लोग। गुलाल से धुंधलाए इस नजारे के बीच हजारों की तादाद में शहरी और ग्रामीणों के बीच से शुक्रवार को बादशाह की सवारी निकली।
धुलंडी के दूसरे दिन लगने वाला ब्यावर का बादशाह मेले की ख्याति दुनियाभर में है। शुक्रवार शाम को भैरूजी के खेजड़े के पास से बादशाह की सवारी रवाना हुई। ट्रक में सवार बादशाह की सवारी निकालते ही पांच बत्ती से अजमेरी गेट, उपखण्ड अधिकारी कार्यालय के दोनों और सड़कों व भवनों पर खड़े हर वर्ग और उम्र के लोग बादशाह पर गुलाल की बौछार करते दिखे। वहीं बादशाह भी पुडिय़ा में बांधकर गुलाल अपनी प्रजा पर फेंकते रहे।

badshah on his rath during procession in badshah mela.
badshah on his rath during procession in badshah mela.

भीड़ का अंदाजा और बादशाह मेले के प्रति लोगों का उत्साह इसी से पता लग सकता है कि शहर की करीब साठ फीट से भी ज्यादा और सबसे चौड़ी सड़क पर करीब साढे सात सौ मीटर की दूरी तय करने में बादशाह को तीन से चार घंटे लग गए। सूरज ढलने के बाद परम्परानुसार बादशाह की सवारी उपखण्ड अधिकारी कार्यालय पहुंची जहां पर ब्यावर के उपखण्ड अधिकारी के साथ परम्परानुसार होली खेली। इसके बाद बादशाह की सवारी भगत चौराहा, हलवाई गली, स्थानक चौराहा, महावीर बाजार की ओर से होते हुए फिर से भैरूजी के खेजड़े पर विसर्जन के लिए प्रस्थान कर गई।

badshah3
-अकबर के काल में ले जाता है ये मेला
बादशाह मेले का इंतिहास अकबर से जुड़ा है। यह एक वास्तविक घटना है, 1851 में जब अकबर ने अपने नौ रत्नों में से एक टोडरमल को एक दिन का बादशाह बनाया था। इसी दिन को याद करते हुए ब्यावर के अग्रवाल समाज के लोगों की बादशाह मेला समिति प्रत्येक वर्ष धुलंडी के दूसरे दिन बादशाह मेले का आयोजन करती है। माना जाता है कि टोडरमल खुद अग्रवाल समुदाय से जुड़े हुए थे, इसलिए बादशाह भी अग्रवाल समाज का व्यक्ति ही बनता है। इसके लिए बाकायदा बोली लगती है। बादशाह के आगे बीरबल नृत्य करते हुए चलता है। वह ब्राह्मण समुदाय का होता है। कई किलोमीटर तक बिना रुके नृत्य करते हुए बादशाह की सवारी के आगे बीरबल चलता रहता है। माना जाता है कि हिन्दू शासक बनने पर बीरबल ने उत्साह में उस समय बहुत नृत्य किया था।
-एसडीएम को दिया सांकेतिक आदेश
यह परम्परा और इसके निर्वहन के प्रति समर्पण भी विशेष है। बादशाह जब उपखण्ड अधिकारी के यहां पहुंचते हैं तो बादशाह के रूप में उपखण्ड अधिकारी को शहर की किसी एक समस्या के निराकरण के लिए सांकेतिक रूप से आदेश भी देते हैं। यह समस्याएं भी सिविक समस्याएं होती हैं, जिसे उपखण्ड अधिकारी प्राथमिकता से निराकरण भी करते हैं। राजतंत्र और लोकतंत्र का यह फ्यूजन शनिवार को भी देखने को मिला। बादशाह ने परम्परानुसार ब्यावर उपखण्ड अधिकारी को शुक्रवार को बादशाह ने ऐसी जनसमस्या के निराकरण के लिए सांकेतिक आदेश दिया।

birbal dancing befor badshah rath and peoples playing holi with badshah in beawer.
birbal dancing befor badshah rath and peoples playing holi with badshah in beawer.

-मांगते हैं खर्ची
बादशाह खर्ची, बादशाह खर्ची… यह शब्द बादशाह के रथ के आसपास गूंजते रहते हैं। बादशाह एक पुडिया में बांधकर गुलाल भीड में उछालता है, यही पुडिया में भरी गुलाल बादशाह की खर्ची होती है। स्थानीय लोग इसे अपने गल्ले और तिजोरी में रखते हैं।
-आसमान और जमीन पर सिर्फ गुलाल ही गुलाल
ब्यावर का बादशाह मेला अपने आप में वाकई अद्भुत है। इस मेले के दौरान शुक्रवार को पूरे शहर में टनों गुलाल उड़ती दिखी। आसमान गुलाल से लाल और सड़कें भी। ब्यावर शहर की करीब साढ़े तीन लाख की अपनी आबादी के अलावा अजमेर, भीलवाड़ा, राजसमंद, नागौर और पाली जिले के हजारों लोग इस मेले में पहुंचते हैं। यह सभी सिर्फ गुलाल का ही इस्तेमाल करते हैं। बादशाह से गुलाल खेलने के बाद लोग अपने इष्ट-मित्रों के यहां पर भी बादशाह खेलने के लिए पहुंचे। देर रात तक बादशाह मेला चला।