भोपाल। भाई दूज का त्योहार देश भर के साथ प्रदेश में भी उत्साह और उमंग के साथ मनाया जा रहा हैं। पांच दीवसीय दीपोत्सव के आखिरी दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता हैं।
दीपावली के एक दिन बाद भाई दूज (भैया दूज) आता है। यह त्योहार भाई के प्रति बहन के स्नेह को दर्शाता है। बहनें अपने भाई की खुशहाल जीवन के लिए कामना करती हैं। इस दिन हर बहन रोली और अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं और भाई बहन को कुछ उपहार देता है। यह त्योहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इसे यम द्वितीया भी कहते हैं।
दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। मान्यता है कि आज के दिन बहन के घर भोजन करने से भाई की उम्र बढ़ती है। भाई दूज का यह पर्व गोधन के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व को लेकर कई तरह की पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
यम द्वितीया के दिन यमुना नदी में स्नान करने और वहीं यमुना तथा यमराज की पूजा करने का बड़ा महात्म्य माना जाता है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी लंबी उम्र के लिए यमराज से प्रार्थना करती है। स्कंद पुराण में लिखा है कि इस दिन यमराज को प्रसन्न करने से पूजन करने वालों को मनोवांछित फल मिलता है।
क्या है मान्यता
इस त्योहार के पीछे मान्यता है कि इसी दिन यम (यमराज) देवता ने अपनी बहन यमी (यमुना) को दर्शन दिया था, जो बहुत समय से अपने भाई से मिलने के लिए व्याकुल थी। अपने घर में भाई यम के आने पर यमुना बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने भाई के लिए एक से बढक़र एक स्वादिष्ट व्यंजन बनाए और खूब आदर सत्कार किया। यमराज ने अपनी बहन के सेवा-सत्कार से काफी खुश हुए और यमुना को वरदान मांगने के लिए कहा। इस पर यमी ने कहा, ‘भैया, यदि आप मुझे वर देना ही चाहते हैं तो वर दीजिए कि आज के दिन प्रतिवर्ष आप मेरे यहां आया करेंगे और मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगे।’ इसके बाद भाई यम ने अपनी बहन का आशीर्वाद दिया और उपहार भेंट किए।
कैसे मनाया जाता है भाई दूज ?
पौराणिक कथा के अनुसार यमुना ने इसी दिन अपने भाई यमराज की लम्बी आयु के लिये व्रत रखा था और यमराज को अन्नकूट का भोजन कराया था। मिथिला में इस दिन चावल का लेप भाईयों के दोनों हाथों में लगाया जाता है। कुछ जगहों पर हाथ में सिंदूर लगाने की भी परंपरा है। भाई के हाथों में सिंदूर और चावल का लेप लगाने के बाद उस पर पान के पांच पत्ते, सुपारी और चांदी का सिक्का रखा जाता है।
फिर उस पर जल की धार गिराते हुए भाई की दीर्घायु के लिये मंत्र पढ़ा जाता है। इस दिन सिर्फ बहनें ही नहीं बल्कि भाई भी बहनों को उपहार देते हैं। भाई दूज मनाने की परंपरा भी अलग अलग तरह से है। कहीं तिलक लगाकर आरती उतारी जाती है तो कहीं भाई का मुहं माखन मिसरी से मीठा कराया जाता है। शाम के समय कुछ जगहों पर बहनें घर के बाहर चार बाती वाली दिया जलाती हैं।
भाई दूज के दिन यमुना और यम की पूजा का है बड़ा महत्व
उसी समय से यम द्वितीया के दिन यमुना और यमराज की पूजा करने का बड़ा महत्व है। इस दिन बहन अपने भाई को तिलक कर उसकी दीर्घायु और अपने सुहाग की रक्षा के लिए हाथ जोडक़र यमराज से प्रार्थना करती है। जानकार मानते हैं कि इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य भाई और बहन के बीच प्रेम और बंधन का प्रवाह रखना है।