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'भारत रत्न' अटल जिनका विरोधी भी करते हैं सम्मान - Sabguru News
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‘भारत रत्न’ अटल जिनका विरोधी भी करते हैं सम्मान

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bharat ratna for atal bihari vajpayee
bharat ratna for atal bihari vajpayee

भोपाल/लखनऊ। बहुआयामी व्यकितत्व के धनी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिए से उनके संसदीय जीवन के प्रथम और अंतिम पडाव के गवाह रहे उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश समेत देशभर के बाशिन्दे फूले नहीं समा रहे हैं।

अटलजी का जन्म तो मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को हुआ था लेकिन उनके संसदीय जीवन की शुरूआत उत्तर प्रदेश से हुई। छात्र जीवन का अधिकांश हिस्सा कानपुर में बिताने वाले वाजपेयी 1957 में पहली बार उत्तर प्रदेश की बलरामपुर सीट से लोकसभा पहुंचे थे। वह लखनऊ से पांच बार सांसद बने।

सन् 1991 से 2004 तक लगातार लोकसभा चुनाव लखनऊ से जीतकर वह तीन बार प्रधानमंत्री बने। उत्तर प्रदेश से लम्बी राजनीतिक पारी खेलने वाले वाजपेयी ने इस सूबे के लोगों को हमेशा अपना माना। राज्य के लोग भी उनसे बेहद लगाव रखते हैं। इतना ही नहीं राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, स्वदेश और वीर अर्जुन का सम्पादन करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी में राज्य के पत्रकार भी अपनापन देखते हैं।

प्रधानमंत्री बनने से पहले और बाद में भी पत्रकारों को देख उनका तपाक से बोल उठना.. हां भई क्या बात है, आज कैसे, क्या हो गया.. याद आता है। वरिष्ठ पत्रकार कामना हजेला माथुर कहती हैं कि प्रधानमंत्री अटलजी में कोई औपचारिकता नहीं है।

प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कभी कभी वह सुरक्षा घेरे से बाहर आकर यहां पत्रकारों से मिल लेते थे। गंभीर से गंभीर मुद्दों पर भी सामान्य से दिखने वाले वाजपेयी लखनऊ प्रवास के दौरान अदने कार्यकर्ता को भी नाम से ही पुकारते थे।

अटलजी के साथ साये की तरह रहने वाले शिवकुमार कहते हैं कि बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी वाजपेयी में राम का आदर्श, कृष्ण का सम्मोहन, बौद्ध का गाम्भीर्य, चाणक्य की राजनीति और कर्ण की ओजस्विता है। प्रखर राजनेता और वकता होने के साथ ही वह उच्चकोटि के कवि भी हैं।

वह जिस पद पर बैठे उस पद का मान बढ़ा। लखनऊ के सांसद रहने के दौरान उनके प्रतिनिधि रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता लालजी टण्डन ने पूर्व प्रधानमंत्री के कई संस्मरण सुनाये। टण्डन कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुडे रहे वाजपेयी ने कभी सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया।

टंडन के अनुसार वाजपेयी भारतीय जनसंघ के संस्थापक, भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य, कवि और 11 भाषाओं के ज्ञाता हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी हिन्दी एवं ब्रज भाषा के कवि थे तथा गांव के ही स्कूल में शिक्षक का कार्य करते थे इसलिए उनको काव्य विरासत में मिली।

कुशाग्र बुद्धि के छात्र रहे वाजपेयी ने कानपुर के डीएवी कालेज से राजनीति शास्त्र में प्रथम स्थान के साथ एमए की उपाधि प्राप्त की। संघ से जुड़ने के बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की, मगर बीच में ही उसे छोड़ पत्रकारिता में आ गए। पत्रकारिता का चुनाव करना उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है, क्योंकि उस समय पूरे देश में आजादी की लहर चल रही थी।

1951 में श््री वाजपेयी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई जिसमें हालांकि वह राजनीति में 1942 में ही आ गए थे। सन् 1968 में वह जनसंघ के अध्यक्ष बने। उनके असाधारण व्यक्तित्व को देखकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा।

1975-77 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्य नेताओं के साथ आपातकाल में जेल गए। सन 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वह मोरारजी देसाई सरकार में विदेश मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऎसे नेता हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासंघ को हिन्दी में संबोधित किया। उनका वह भाषण ऎतिहासिक रहा।

1980 में वाजपेयी भाजपा के पहले अध्यक्ष बने। इसके बाद वह कांग्रेस सरकार के सबसे बडे आलोचक बनकर उभरे। सन् 1994 में कर्नाटक तथा 1995 में गुजरात और महाराष्ट्र में पार्टी जब चुनाव जीतते ही तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया।

वाजपेयी 1996 से लेकर 2004 तक तीन बार प्रधानमंत्री बने। सन् 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और वह पहली बार प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार 13 दिनों में संसद में बहुमत हासिल नहीं कर पाने के कारण गिर गई। मात्र एक वोट से उनकी सरकार तो गिर गई लेकिन वाजपेयी द्वारा उस समय स्थापित लोकतांत्रिक मूल्यों को आज भी याद किया जाता हैं।

1998 के दुबारा लोकसभा चुनाव में पार्टी को ज्यादा सीटें मिलीं और कुछ अन्य पार्टियों के सहयोग से वाजपेयी ने एनडीए का गठन किया और फिर प्रधानमंत्री बने। यह सरकार 13 महीनों तक चली।

1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर से सत्ता में आई और इस बार उनकी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया। उदारवादी विचारों के वाजपेयी के शासनकाल में कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं जिसमें कारगिल युद्ध, दिल्ली- लाहौर बस सेवा शुरू करना, संसद पर आतंकी हमला, गुजरात दंगे आदि प्रमुख हैं।

अपने दूसरे प्रधानमंत्रित्वकाल में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु संगठन की रोक के बावजूद राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण किया जिसका पाकिस्तान सहित कई देशों में विरोध किया लेकिन रूस और फ्रांस ने भारत का समर्थन किया। यह उनकी कूटनीतिक सफलता मानी गई।

वाजपेयी को 1992 में पkविभूषण, 1993 में कानपुर विश्वविद्यालय से डीलिट की उपाधि, 1994 में लोकमान्य तिलक अवार्ड, 1994 में बेस्ट सांसद और 1994 में पंडित गोविंद वल्लभ पंत अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

उनकी 2003 में ट्वेंटी वन कविताएं, 1999 में क्या खोया क्या पाया, 1995 में मेरी इक्यावन कविताएं हिन्दी, 1997 में श्रेष्ठ कविताएं तथा 1999 और 2002 में जगजीत सिंह के साथ दो एलबम नई दिशा और संवेदना काफी लोकप्रिय हैं।

वाजपेयी को भारत रत्न दिए जाने पर खुशी जाहिर करते हुए उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रामनाईक ने कहा कि वाजपेयी सर्वमान्य नेता हैं जिनका सम्मान और प्रशंसा विरोधी दल के लोग भी करते हैं। उनका संसदीय प्रणाली में दृढविश्वास है। वह अत्यंत ही दूरदर्शी हैं।