पटना। बिहार में वैशाली जिले के राघोपुर दियारा में रविवार रात से सोमवार सुबह तक 45 लोगों ने बाढ़ के पानी में नाव पर बिताई। इन लोगों को ले जा रही नाव का इंजन खराब हो गया और 25 स्कूली छात्रों व तीन शिक्षकों ने आपदा प्रबंधन विभाग से गुहार लगाई लेकिन कोई बचाने नहीं आया।
पटना से थोड़ी दूरी पर हुई इस घटना की जानकारी पत्रकारों के वाट्सएप ग्रुप से मिली। इसके बाद सुधी पत्रकारों ने आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव व्यासजी को देनी चाही लेकिन तब तक रात के 12 बज चुके थे। न तो व्यासजी और न ही उनके विभाग के टोल फ्री नम्बर पर कोई फोन उठाने को तैयार था।
इस बीच नदी की तेज धार में फंसे मनोज कुमार के फोन की बैट्री भी ख़त्म हो गयी। पूरी रात बच्चे और बूढ़े जोर-जोर से आवाज लगाते रहे कि कहीं कोई उनकी आवाज सुन कर उनके लोकेशन को समझ सके लेकिन ऐसा संभव नहीं हुआ।
जब सरकारी राहत की सारी उम्मीदें टूट गई तो नाव पर सवार सुरेंद्र कुमार ने अपने मोबाइल से अपने गांव के साथियों को फोन किया। इतना सुनते ही गांव में हाहाकार मच गया और वहां से लोगों ने तेज रोशनी वाले टार्च के साथ नाव का काफिला ले कर चल पड़े ।
उनके लिए सबसे कठिन बच्चों को ढाढस बंधाना था। बच्चे चीख-चीख कर रो रहे थे। उनके चीखने से बड़े लोगों का भी मनोबल टूटता जा रहा था। इसी बदहवाशी में पूरी रात कटी। उधर गांव के लोग नाव का काफिला ले कर दियारा में फंसे लोगों को खोजने तो निकल पड़े थे लेकिन अंधेरे में उनका कोई अता पता नहीं चल पा रहा था।
रात आठ बजे से ले कर चार बजे सुबह तक गांव वालों से उनका टेलीफोनिक सम्पर्क तो बना रहा लेकिन वे एक दूसरे को खोज नहीं पा रहे थे। जब सुबह पौ फटी और कुछ दिखाई पड़ने लगा तो उन्हें अचानक फंसी नाव पर नजर आ गई और उन सभी को बचा लिया गया ।
इस पूरे घटनाक्रम के लिए अफसोसनाक पहलू ये रहा कि आपदा की घड़ी में अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन दे कर आपदा प्रबंधन विभाग अपनी तत्परता का बखान करता है लेकिन वहां की हालत यह है कि टोल फ्री नम्बर पर फोन रिसीव करने वाला तक कोई नहीं था।