bihar cm jitan ram manjhi says i will not take anybody’s advice
पटना। जनता दल यूनाईटेड इन दिनों राजनीतिक संक्रामक रोग से ग्रसित नजर आ रहा है। पार्टी के सभी आला नेता इस रोग के निदान के लिए जो सोचते हैं, उसका उल्टा प्रभाव पार्टी के सेहत पर पड़ रहा है।
दूसरी ओर मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के मुंह से निकले तीर जदयू नेताओं को घायल करते हुए कार्यकर्ताओं तक पहुंच रहे हैं। स्थिति यह बन गई है कि विधानसभा चुनाव के पूर्व ही जदयू महामारी का शिकार न बन जाए। पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्होंने जदयू पार्टी को सींचकर फलदार बनाया, लेकिन आज वही फलदार वृक्ष की टहनियों को तोड़ने के लिए उनकी पार्टी के लोग लगे हुए हैं।
जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाकार नीतीश कुमार ने बिहार को एक नई दिशा देने का प्रयास किया। लेकिन मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने उनके इस प्रयास को अपने भाषणों के दौरान मुंह से निकाले गए वाणों से पार्टी के नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक को आहत कर दिया है। इसके जवाब में पार्टी कई बड़े नेताओं ने भी मांझी को अपने बयानों पर लगाम लगाने की नसीहत दी। लेकिन उन लोगों का प्रयास विफल होता जा रहा है।
मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने रविवार को साफ शब्दों में कहा है कि उनकी पार्टी के बडे नेताओं को नसीहत देने का कोई हक नहीं है। न ही वे उनकी नसीहत को मानेंगे। इसके ठीक उलट उन्होंने यह कहकर सबकों चौंका दिया कि वे इत्तिफाक से मुख्यमंत्री बन गए हैं। कभी भी उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी छिनी जा सकती है। उन्होंने इसकों और स्पष्ट करते हुए कहा कि नवंबर तक ही वे मुख्यमंत्री रह सकते हैं। उनका कहना है कि वे किसी के दबाव में आकर कोई फैसला या काम या मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र नहीं देंगे। बिहार की जनता के हित में और दलितों के उत्थान के लिए जीते जी प्रयास कर रहेंगे, चाहे इसका परिणाम जो भी हो।
जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी और प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह समेत उनके मंत्रीमंडल के अधिकांश सदस्य मुख्यमंत्री मांझी के बयानों से निकले तीर से इस कदर परेशान हैं कि उन्हें जदयू के राजनीति में अवसाद नजर आने लगे हैं। ऐसी स्थिति में पार्टी विधानसभा चुनाव किस मुद्दे को लेकर लड़ेगी, इसपर भी प्रश्नचिह्न लगने लगा है। इन लोगों की निगाह अब पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संपर्क यात्रा से लौटने के बाद मिले परिणाम पर लटकी हुई है। दूसरी ओर बिहार के राज्यपाल के रुप में केसरीनाथ त्रिपाठी को कार्यकारी राज्यपाल नियुक्त करना जदयू के लिए गले की हड्डी साबित हो रही है।