पटना। केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर प्रहार करते हुए कहा कि उनको पहले अपने महागठबंधन के डीएनए की जांच करवानी चाहिए । महागठबंधन की यात्रा विलय से शुरु हुई और आज हाल यह है कि कोई इनके साथ रहना नहीं चाहता ।
सपा का अलग होना बताता है कि महागठबंधन अब डूबता जहाज है और सबसे पहले उसके प्रमुख ने ही उसका साथ छोड़ दिया है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने मुलायम पर ही सवाल उठा दिया ।
उन्होंने कह दिया कि इसके पीछे भाजपा लगी है, अर्थात उन्होंने मुलायम पर भाजपा से मिले होने का ही आरोप लगा दिया है । मुलायम का इससे बड़ा अपमान क्या होगा ?
रविवार को प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में रविशंकर प्रसाद ने कहा कि नरेन्द्र मोदी के पैकेज पर सवाल उठाने के पहले नीतीश अपने दिनों को याद करें । सोनिया-मनमोहन सिंह के सामने भी उन्होंने पैकेज के लिए गुहार लगायी लेकिन मिला क्या ? सिर्फ 12 हजार करोड़ लेकिन नीतीश कुमार की जुबान से उफ तक नहीं निकला।
आज सवा लाख करोड़ रुपए पर सवाल उठा रहे हैं। वे भी 2.70 लाख करोड़ का पैकेज लेकर आ गए। इतनी बड़ी राशि जुटाने की उनकी क्षमता नहीं। ऐस में कह रहे हैं एशियाई विकास बैंक (एडीबी) से ऋण ले लेंगे ।
चुनाव के दो माह पहले उनका विकास विजन जागा । यदि इतनी राशि की व्यवस्था कर सकते हैं तो फिर 1.25 लाख करोड़ के पैकेज का विरोध क्यों ? यदि जरुरत है तो फिर तय है कि पैकेज के बिना नहीं चल सकते। तो फिर सिर्फ लुभाने के लिए अपना पैकेज दिखा रहे हैं।
अपनी करनी से टूटा महागठबंनः नंदकिशोर यादव
विधानसभा में विपक्ष के नेता नंदकिशोर यादव ने कहा है कि समाजवादी पार्टी के गठबंधन से अलग होने को लेकर भाजपा पर आरोप लगाना हास्यास्पद है। पहले खुद जदयू में और अब इसके तथाकथित गठबंधन में बिखराव अहंकार और स्वार्थ की राजनीति का नतीजा है।
भाजपा को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि उसके खिलाफ कौन दल गठबंधन कर रहा है और कौन नहीं? सच्चाई ये है कि इस अवसरवादी गठबंधन की हार तय है और जब इसका कोई भविष्य ही नहीं है तो बिखराव तो होना ही है।
यादव ने कहा कि इस गठबंधन में शामिल जदयू-राजद और कांग्रेस जैसी पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है। ये व्यक्तिवादी पार्टियां हैं, जिनके फैसले ऊपर से सीधे थोप दिए जाते हैं।
स्वार्थ की राजनीति में इन्होंने एनसीपी और समाजवादी पार्टी दोनों का अपमान किया और जब दोनों ने अलग होने की घोषणा कर दी तो मान-मनौव्वल का दिखावा कर रहे हैं। जदयू और राजद ने अपनी राजनीति के लिए मुलायम सिंह यादव जैसे वरिष्ठ नेता को मोहरे की तरह इस्तेमाल किया।
गठबंधन पर फैसले के लिए मुलायम सिंह के नाम की घोषणा की थी और अपने नाम पर मुहर लगवाने जदयू सुप्रीमो राहुल गांधी के दरबार में पहुंच गए थे। इसी तरह, सीटों के बंटवारे पर न तो उनकी सहमति ली गई, न सीटें दी गईं।
अब वो अपने स्वाभिमान को देखकर अकेले बिहार में चुनाव लड़ने की घोषणा कर रहे हैं तो इन दलों के पसीने छूट रहे हैं। इसी तरह एनसीपी के नेता कह रहे हैं कि जदयू सुप्रीमो और राजद प्रमुख अहंकारी हैं। हो सकता है कल को ये लोग बताने लगें कि एनसीपी से ये बयान भाजपा वाले दिला रहे हैं।