जीतन राम मांझी के इस्तीफे के बाद नितिश कुमार एक दिलचस्प ब्यान दिया है। उन्होंने कहा कि वे भावना में बहकर मुख्यमंत्री पद छोड़ गए थे। लेकिन आगे इस तरह की गलती नहीं करूंगा। हालांकि नितिश कुमार के नजदीकी अच्छी तरह से जानते है कि नितिश कुमार भावना में बहने वाले नहीं है। वो राजनीति के हर कुटील चाल को चलते है।
दरअसल 2014 के लोकसभा चुनावों में हुई भारी हार के बाद उन्होंने अपनी खोई जमीन बचाने के लिए महादलित कार्ड खेला था और मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था। क्योंकि जिस तरह से अगड़े और अति पिछड़ों ने लोकसभा चुनावों में नितिश के खिलाफ मतदान किया था उससे नितिश घबरा गए थे। जबकि यादवों और मुसलमानों ने नितिश के बजाए लालू यादव को ही अपना पसंद बनाया था। उन्हें विश्वास था कि जीतन मांझी उनके हाथों में ही रहेंगे और उनका महादलित वोट पक्का हो जाएगा। लेकिन उनका चालाकी भरा यह कदम उल्टा पड़ गया।
नितिश 22 फरवरी को मुख्यमंत्री बन जाएंगे। लेकिन अब उनकी समस्या और बढ़ेगी। भाजपा के साथ गठबंधन वाली सरकार को नितिश कुमार ने निरंकुश अंदाज में चलाया था। भाजपा के नेता उनके सामने भिग्गी बिल्ली होते थे। लेकिन अब नितिश की सरकार लालू यादव के हाथ में है। लालू जब चाहेंगे नितिश को गिरा देंगे। लालू यादव ने नितिश से अपनी दुश्मनी निकाल ली। उन्हें पूरी तरह से बैशाखी पर वे ले आए। वे अपनी गेम में कामयाब हो गए है।
लालू यादव को बिहार की राजनीति से उखाड़ने में नितिश ने अहम भूमिका निभायी थी। लालू यादव को इन्हीं दिनों का इंतजार था। न तो लालू आज तक नितिश से अपनी दुश्मनी भूला पाए है न ही लालू समर्थक नितिश के राज में अपने उपर चले डंडों को भूले है। लालू यह जानते है कि नितिश के समर्थन में जीतन मांझी के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले वाले दो प्रमुख नेता ललन सिंह और पीके शाही है, जिन्होंने चारा घोटाले में उन्हें घेरा था।
विधायकों के संख्या बल में नितिश मजबूत थे। जीतन मांझी का इस्तीफा मजबूरी था। लेकिन विधानसभा चुनाव में नितिश की मुसीबत बढेगी। इस स्थिति से अंदर ही अंदर लालू यादव काफी खुश है। नितिश ने लालू यादव और भाजपा दोनों के आधार को खत्म करने के लिए अति पिछड़ा और महादलित कार्ड खेला था। नितिश बिहार में एकछत्र राज करने की योजना बना रहे थे।
लेकिन यही महदलित कार्ड उन्हें उल्टा पड़ गया। बिहार की राजनीति में अब जनता दल यूनाइटेड के हिस्से से दलित वोट पूरी तरह से निकल चुका है। दलितों की मजबूत बिरादरी दुसाध पहले से ही नितिश और लालू दोनों के खिलाफ है। लेकिन अब मूसहर जाति के बाहर जाने से नितिश कुमार को मैदान में भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा। एक तरफ महादलित वोट जहां नितिश के हाथ से निकला है, वहीं दूसरी तरफ उनका विकास पुरूष का चेहरा धूमिल होने लगा है।
उन्होंने उसी जंगलराज से समझौता किया जिसके विरोध में नारे देकर 2005 में उन्होंने बिहार की सत्ता सम्हाली थी। पिछले 9 सालों से लगातार वो दावा कर रहे है कि उन्होंने लालू यादव के जंगल राज को खत्म कर बिहार को विकास के रास्ते पर ला दिया। हालांकि विकास का का क्रेडिट सहयोगी भाजपा को कभी नहीं दिया, जिसके सहयोग से उन्होंने बिहार में आठ साल से ज्यादा सत्ता चलायी। आज लालू यादव के साथ मजबूरी का समझौता नितिश को करना पड़ा है। लालू विरोधी बिहार का मध्यवर्ग और ऊंची जाति अब पूरी तरह से नितिश और लालू के खिलाफ खेमेबंदी करेगी।
जीतनराम मांझी के पास अब दो विकल्प है। या तो वो भाजपा में शामिल हो जाए, या अलग पार्टी बना ले। भाजपा में शामिल होने के बाद उनकी स्थिति क्या होगी यह समय बताएगा। दिल्ली चुनाव के बाद भाजपा की अंदर की स्थिति बदली है। जीतन मांझी को भाजपा में शामिल करवा सीएम का उम्मीदवार घोषित किया जाएगा, इसकी संभावना कम है। अगर दिल्ली में किरण बेदी की ताजपोशी हो जाती तो बिहार में जीतन मांझी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भाजपा घोषित कर सकती थी। लेकिन अब परिस्थिति उलट गई है।
भाजपा के नेता जीतन मांझी को भाजपा में शामिल कर उनका वोट हासिल करने के पक्ष में है, लेकिन उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाए जाने के खिलाफ है। भाजपा के कई बड़े नेता जिसमें सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव, शहनवाज हुसैन और रविशंकर प्रसाद जीतन मांझी को सीएम उम्मीदवार घोषित किए जाने के खिलाफ है। क्योंकि ये सारे नेता मुख्यमंत्री बनने का सपना देखते है। लेकिन जीतन मांझी इस समय महादलितों के अविवादित नेता बन गए है। यह सरदर्दी अकेले नितिश ही नहीं, बल्कि भाजपा और लालू सारों के लिए है। वो 10 प्रतिशत वोट का निर्विवादित नेता बन चुके है, यह पूरा बिहार समझ रहा है।
एक उम्मीद है कि जीतन मांझी भी एक अलग पार्टी बनाकर चुनाव मैदान में उतरेंगे। उनके साथ राजपूत नरेंद्र सिंह, भूमिहार महाचंद्र सिंह और ब्राहमण नितिश मिश्रा खड़े है। मांझी दवारा अलग पार्टी बनाए जाने के बाद दो संभावनाएं बनेंगी। उनके पास भाजपा और राजद दोनों दलों के समझौते का विकल्प अंतिम समय तक होगा। समझौते में जहां ज्यादा सीटें मिलेगी, वहां वो चले जाएंगे। लालू यादव महादलित जीतन मांझी के दस प्रतिशत वोट के ताक में है। वे नितिश को बहुत ज्यादा दिन तक मुख्यमंत्री बरदाश्त नहीं करेंगे। वो जल्द ही पलटी मार नितिश कुमार को नुकसान करने की कोशिश करेंगे।
सफलतापूर्वक उन्होंने नितिश कुमार की पार्टी में फूट तो डलवा ही दी। एक रणनीति के तहत लालू यादव ने जीतन मांझी से भाजपा खेमे में नहीं जाने की भी अपील की है। ताकि भविष्य में जीतन मांझी के साथ समझौते का रास्ता खुला रहे। वहीं जीतन मांझी अलग पार्टी बनाएंगे तो वे भाजपा से भी गठबंधन कर सकते है। भाजपा उन्हें गठबंधन में ज्यादा सीटें दे सकती है। बिहार में एनडीए के दो सहयोगी नेता रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा भी चाहते है कि जीतन मांझी अलग दल बनाए। जीतन मांझी का अलग दल पासवान और कुशवाहा के महत्व को बढ़ाएगा। दोनों नेता मांझी के साथ मिलकर भविष्य में भाजपा पर दबाव की राजनीति करना चाहता है, ताकि भाजपा गठबंधन में उनके लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें बढ़े।
संजीव पांडेय