नई दिल्ली। कांग्रेस की जिस स्थिति के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पार्टी के और अहंकारी नेता दंभ भरते और व्यंग्य करते थे, वह स्थिति दिल्ली के मतदाताओं ने भाजपा की कर दी। यहां के मतदाताओं ने भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों केा इस स्थिति में भी नहीं छोडा की वह विपक्ष में बैठ सके।
पूरी विधानसभा पर आम आदमी पार्टी का कब्जा हो गया है, ऐसे में लोकपाल, राइट टू रिकाॅल, राइट को रिजेक्ट, स्वराज जैसे अपने वादों को मूर्त रूप देने में अब उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है। संविधान के अनुसार नेता विपक्ष की सीट के लिए विधानसभा की कुल सीटों का दस प्रतिशत सीट आना जरूरी है, दिल्ली के लिहाज से बात करें तो यहां पर नेता विपक्ष का पद तभी सृजित हो सकता है जब कोई पार्टी सात सीटें लेकर आए, लेकिन दिल्ली की जनता ने भाजपा को तीन सीटों पर सिमटा दिया तो कांग्रेस को जड से उखाडते हुए एक भी सीट नहीं दी। ऐसे में दिल्ली में नेता प्रतिपक्ष का पद तक नहीं रहा है। भारत के इतिहास में ऐसी स्थिति कभी नहीं बनी होगी। विपक्ष में बोलने के लिए मात्र तीन विधायक छोडे हैं।