सिरोही। सूत्रों के अनुसार सिरोही में भाजपा के चार डेलीगेट बाडेबंदी से बाहर हैं। आखिर गए कहां और हैं किसके साथ। जो हैं वो भी इस इंतजार मे हैं कि किसे जिला प्रमुख का दावेदार बनाया जाता है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो रेवदर पंचायत समिति ने पिछले पंचायत चुनावों में गददारी करने का खामियाजा इस बार भाजपा के जिला परिषद के एक दावेदार को भुगतना पड सकता है। रेवदर में पिछले चुनावों में भी कांग्रेस को दो ही सीटें मिली थी, भाजपा बहुमत में थी, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार जिला परिषद की दावेदार महिला के राजनीतिक करीबियों में भाजपा के साथ ही धोखा करके निर्दलीय के रूप में पदमा कंवर को समर्थन देकर उन्हें प्रधान बना दिया।
उस समय इन लोगों ने जिन्हें नीचा दिखाकर पार्टी के साथ दगाबाजी की थी, वहीं धोखा खाये भाजपा के प्रमुख झंडाबरदार इनके जिला प्रमुख बनने की राह में रोडा अटका सकते हैं। शहरी चुनावों के विपरीत भाजपा को ग्रामीण सेंधमारी को रोकने में पसीने बहाने पडेंगे क्योंकि ग्रामीण मतदाता पार्टी से ज्यादा व्यक्तियों पर पडे हैं, अपनी जाति और गांवों में पकड बनाये ये वो लोग हैं जिनके इर्द-गिर्द पार्टियां चलती हैं न कि ये पार्टियों के इर्द-गिर्द।
रेवदर मे प्रधान को लेकर खींचतान
रेवदर में प्रधान के पद को लेकर भी खींचतान है। पार्टी सूत्रों की मानें तो विधायक जगसीराम कोली की खिलाफत करते हुए दूसरा गुट अपने केंडीडेट को प्रधान बनाने की फिराक में है। यहां सेंधमारी भले ही नहीं हो, लेकिन टूट पिछली बार की तरह टूट की स्थिति बनी हुई है। माना यह जा रहा है कि इसी के चलते गुरुवार को मतगणना के बाद कुछ पंचायत समिति सदस्यों को शपथ, दिलवाने के दौरान रेवदर विधायक जगसीराम कोली रिटर्निंग अधिकारी के समाने मौजूद थे।
सिरोही में जातिवाद पर प्रधान
पार्टी सूत्रों की मानें तो सिरोही में भी पार्टी जातिवाद के आधार पर प्रधान के पन की दावेदारी को लेकर भाजपा अंदरूनी फूट की स्थिति से जूझ रही है। वैसे रेवदर और सिरोही दोनों में ही कांग्रेस अपना प्रधान बनाने की स्थिति में नहीं है, लेकिन भाजपा के ही किसी धडे की महत्वाकांक्षा को ईंधन देकर भाजपा की बजाय निर्दलीय के रूप में भाजपा के किसी बागी को भी एक दो डेलीगेट का समर्थन देकर प्रधान बनवा सकती है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो सिरोही पंचायत समिति में भगवा का गढ बन चुके क्षेत्र से जीती एक महिला डेलीगेट के परिजन पंचायत समिति के पांच डेलीगेट को अपनी पकड में रखे हुए हैं, यदि उन्हें भाजपा अपना उम्मीदवार घोषित नहीं करती तो कांग्रेस के तीन डेलीगेट के साथ नौ डेलीगेट से यहां भी भाजपा का बागी निर्दलीय के रूप में प्रधान बन सकता है। यदि इन्हें प्रधान का अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया जाता है तो राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाली दूसरी जाति के डेलीगेट मुसीबत खडा कर सकते हैं।
जो लाएगा वो बनेगा
इधर, जिला परिषद और तीन पंचायत समितियों में चारों खाने चित्त हो चुकी कांग्रेस पुरानी रणनीति पर ही चल रही है। उसने अपनी पार्टी में जिला प्रमुख के दावेदारों को यह कहकर छोड दिया है कि जो अतिरिक्त डेलीगेट ले आएगा वो जिला प्रमुख बनेगा। वैसे कांग्रेस की तरफ से दो नाम जिला प्रमुख के लिए प्रमुख माने जा रहे हैं, एक रंजू रामावत दूसरी आबूरोड यूआईटी के निवर्तमान चेयरमैन हरीश चैधरी की पत्नी नीलकमल। जानकारी के अनुसार अपनी फितरक के अनुसार कांग्रेस यह कवायद कर सकती है कि जिला प्रमुख या प्रधान भाजपा का कोई बागी बन जाए, लेकिन भाजपा का अधिकृत प्रत्याशी नहीं बने।
खुन्नस निकालने का बेहतरीन समय
जैसा कि पहले ही जिले में चर्चा है कि भाजपा में बडके और छुटके नेता के बीच राजनीतिक वर्चस्व और महत्वाकांक्षा का शीत युद्ध शुरू हो चुका है। इस बार पंचायत चुनाव का पूरा दारोमदार छुटके नेता पर है, ऐसे में बडके के पास उन्हें पटखनी देने का पूरा मौका है। पार्टी सूत्रों की मानें तो यह शुरू भी हो चुका है।
वैसे भी छुटके पहले ही अपनी जाति के वर्चस्व वाले इलाकों मंे भाजपा को जिता नहीं पाने का दर्द सह रहे हैं। इस पर यदि बडके के दाव चल जाते हैं तो फिर उनकी बडके नेता की जगह कब्जाने की मंशा विफल हो जाएगी। वैसे इस चूहे-बिल्ली के खेल की शुरुआत छुटके नेता ने ही बडके के क्षेत्र में दखलंदाजी करके की थी, अब मौका आने पर बडके छुटके के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने से नहीं चूक रहे।
वैसे छुटके के पिछलग्गुओं में यह चर्चा भी सनाई दे रही है कि छुटके ने बडके को अपने क्षेत्र में ही अपनी राजनीति करने की नसीहत दे डाली है, लेकिन छुटके नेता की अब तक की डल परफोर्मेंस को देखकर ऐसा प्रतीत तो नहीं होता कि वह ऐसी हिमाकत कर सकते हैं।