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'मैं' में 'मां' को तो नहीं भूल रहे भाजपाई! - Sabguru News
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‘मैं’ में ‘मां’ को तो नहीं भूल रहे भाजपाई!

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‘मैं’ में ‘मां’ को तो नहीं भूल रहे भाजपाई!
advertisment war in top leaders of bjp

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सबगुरु न्यूज-सिरोही। सत्ता की लालसा में किस हद तक जा सकते हैं, इसकी बानगी सिरोही में देखने को मिल रही है। कुछ सत्ता लोलुप भाजपाई शायद भूल गए हों, लेकिन सामान्य भारतीय को याद होगा भाजपा को सत्ता सुख का अहसास करने वाले नरेन्द्र मोदी के वो आंसू, जो उन्होंने पार्टी के मार्गदर्शक मंडल के पितामह लालकृष्ण आडवाणी के दो शब्दों पर बहाए थे। और वो शब्द भी भूल गए होंगे जो उन्होंने आडवाणी के वाक्यों के प्रतिउत्तर मे कहे थे।
आज जिले में सांसद, मंत्री, विधायक और भाजपा के पदाधिकारियों ने पार्टी की जो दुर्गत की है, उस समय में नरेन्द्र मोदी के वो शब्द याद दिलाने जरूरी हो गया है। भाजपा के स्पष्ट बहुमत मिलने पर आडवाणी ने नरेन्द्र मोदी की तरफ मुखातिब होते हुए कहा था कि उन्होंने पार्टी पर अहसान किया है। इस पर नरेन्द्र मोदी ने अपनी डबडबाई आंखों से कहा था कि पार्टी उनकी मां है और मां पर कोई कैसे अहसान कर सकता है। लेकिन नरेन्द्र मोदी की यही पार्टी रूपी मां जिले में सिसक रही है।

पार्टी के जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए पार्टी को रेसलिंग रिंग बना दिया है। इस रिंग के गददे की हर सिलवट पार्टी के साधारण कार्यकर्ता के मन को सिहरा रही है। यह नेता मैं में मां का सिद्धांतमर्दन तो नहीं करने में लगे हुए हैं। इस जंग से पार्टी के साधारण कार्यकर्ता बड़े आहत हैं।

सिर्फ यह जनप्रतिनिधि ही क्यूं, पार्टी के कई पदाधिकारी भी बेशर्मी की हदें पार किए हुए हैं। दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांत पर आधारित इस पार्टी के पदाधिकारी यह कहते हुए किसी अपराध में लिप्त व्यक्ति का समर्थन करता हुआ दिखे कि वह पार्टी का कार्यकर्ता है उससे आर्थिक सहयोग ले लिया तो क्या हुआ, तो इससे ज्यादा दुर्गत किसी पार्टी की नहीं हो सकती है। कांग्रेस इसी तरह की बेशर्मी का परिणाम भुगत रही है।

controvercial ad which attracts attention in social media
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भाजपा की यह अंदरूनी जंग विज्ञापनों मे अपना कद बढ़ाकर दूसरे का कद घटाने की मानसिकता से भी स्पष्ट दृष्टि गोचर हो रही है। सरकार और पार्टी प्रोटोकॉल से परे जाकर इन लोगों ने विज्ञापन वार में एक दूसरे को नीचे दिखाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। विज्ञापनों में अपना कद बढ़ाने वाले यह जनप्रतिनिधि मतदाताओं और कार्यकर्ताओं में अपना कद बौना कर चुके हैं और यह तय है कि इसकी परिणिति इन जनप्रतिनिधियों को आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में देखने को मिल जाए।

एक बत्तीसा नाले को इन जनप्रतिनिधियों ने सिंहासन बत्तीसी मान लिया है। इन्हें यूं लगने लगा है कि इस पर सवार होकर वह जनता के साथ न्याय करने की छवि बनाकर अगले विधानसभा और लोकसभा चुनावों की वैतरणी को पार कर लेंगे, लेकिन यह लोग यह भूल चुके हैं इस वैतरणी की मतदाता रूपी नाव और कार्यकर्ता रूपी पतवार इन्हें कब और कहां डुबो देंगे यह खुद भी नहीं जान पाएंगे।

सोशल मीडिया पर चंद बंधुआ मजदूरों से अपना महिमा मंडन करवाकर भाजपा के यह जनप्रतिनिधि यह मुगालता पाले हुए हैं कि यह लोग मतदाताओं का प्रभावित कर लेंगे तो यह इनकी भूल है। कांग्रेस के हाल उनके सामने ही हैं। इसलिए इनके लिए बेहतर यह होगा कि एक दूसरे को नीचा दिखाने की बजाय जिले की चिकित्सा, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यटन और आधारभूत संरचना को अपने शासनकाल में बेहतरीन स्तर पर ले जाएं, वरना आने वाले चुनावों में जनता जो हालत करेगी उससे इन जातीय क्षत्रपों को इनकी पार्टियां भी नहीं बचा पाएगी।

पार्टी की दुर्गत करने वाले यह जनप्रतिनिधि यह नहीं भूलें की इनके नाम के साथ जुड़ा पार्टी का नाम के निकलते ही तमाम जातीय समीकरणों के बाद भी इनकी स्थिति एक ‘बिग जीरो’ से ज्यादा कुछ नहीं है। इसलिए मैं में मां को सिसकाने की नीति से बाज आएं तो राजनीतिक भविष्य सुरक्षित और संरक्षित रहेगा वरना ये यूनेस्को की ओर से संरक्षित करने वाली वस्तु होकर रह जाएंगे।