नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी ने भले ही बिहार में जनादेश न मिलने के बावजूद डेढ़ साल बाद पिछले दरवाजे से सत्ता पा ली हो और गुजरात में कांग्रेस से एक राज्यसभा सीट छीन ले, फिर भी यह पार्टी आने वाले कुछ समय तक राज्यसभा में विपक्ष से पीछे रहेगी।
भाजपा की रुचि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल की राज्यसभा सीट छीनने में बनी हुई है। कांग्रेस के छह विधायकों ने पहले ही पार्टी छोड़ दी है और इनमें से एक बलवंत सिंह राजपूत को अहमद पटेल के खिलाफ 8 अगस्त को होने वाले चुनाव में उतारा गया है। यदि ज्यादा विधायक टूटते हैं, तो पटेल की हार हो सकती है। इससे भाजपा को ऊपरी सदन में एक और सीट हासिल हो जाएगी।
भाजपा को पहले ही एक सीट गोवा में मिल चुकी है, जहां भाजपा के विनय तेंदुलकर ने कांग्रेस के शांताराम नाइक को राज्यसभा चुनाव में हराया।
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद केंद्र में भाजपा की सरकार पहली ऐसी सरकार है, जिसे बीते 30 सालों में अपने दम पर लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल है। इसके दम पर भाजपा ने अपनी पसंद का राष्ट्रपति बनाया और आगे व उपराष्ट्रपति भी अपनी पसंद का बनाएगी।
हालांकि, भाजपा को राज्यसभा में बहुमत के लिए ऊपरी सदन के लिए होने वाले अगले चरण के चुनावों तक इंतजार करना होगा।
ऊपरी सदन राज्यसभा के 245 सदस्यों में भाजपा के पास 57 सदस्य हैं। अपने सहयोगियों के साथ राजग की यह संख्या 101 सदस्यों की है। इसमें एआईएडीएमके के 13 सदस्य हैं।
विपक्ष में कांग्रेस के पास खुद के 57 सदस्य हैं। अन्य विपक्षी सदस्यों की संख्या 66 है। इस तरह से एकजुट विपक्षी सदस्यों की संख्या 123 हो जाती है।
इस आंकड़े में कम से कम एक जद (यू) के सांसद एम.पी. वीरेंद्र कुमार को जोड़ा जा सकता है। वीरेंद्र कुमार ने हालांकि भाजपा व अपनी पार्टी के गठजोड़ का विरोध किया है। उन्होंने घोषणा की है कि 5 अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार गोपालकृष्ण गांधी को वोट देंगे।
अटकले हैं कि जद (यू) के अन्य नौ सांसदों में वरिष्ठ नेता शरद यादव व दूसरे सांसद अली अनवर भी गांधी को वोट देंगे। वीरेंद्र कुमार की तरह अली अनवर ने भी बिहार में भाजपा के साथ पार्टी के गठजोड़ का विरोध किया है।
ऐसे 13 सदस्य हैं, जो किसी भी पक्ष में वोट देने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं। इसमें बीजद (8), टीआरएस (3), आईएनएलडी (1) व वाईएसआर (1) शामिल हैं। इन पार्टियों ने राष्ट्रपति चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी को वोट दिया था। हालांकि, बीजद ने उपराष्ट्रपति चुनाव में गांधी को वोट देने का निर्णय किया है।
राज्यसभा में छह निर्दलीय हैं, जिनमें से ज्यादातर सरकार के साथ हैं। ऊपरी सदन में दो सीटें रिक्त हैं, जिसमें एक सीट बसपा प्रमुख मायावती के इस्तीफे से खाली हुई है।
भाजपा को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के राज्यसभा में आने से मजबूती मिलेगी, जिनके गुजरात से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के साथ चुने जाने की पूरी उम्मीद है। भाजपा का केंद्रीय मंत्री अनिल माधव दवे के निधन से खाली हुई सीट के लिए मध्यप्रदेश से जीत हासिल करना भी तय है।
उपराष्ट्रपति चुनाव जद (यू) के बागी सदस्यों के लिए लिए ‘लिटमस टेस्ट’ जैसा होगा कि वह किसे वोट करते हैं। यह भी देखने योग्य होगा कि जद (यू) पूरी तरह से गांधी को वोट करता है या नहीं, जिसकी घोषणा जद (यू) ने बिहार में भाजपा से गठजोड़ के पहले की थी।
अब जद (यू) भाजपा का सहयोगी है, विश्लेषक आश्चर्य जता रहे हैं कि वह अब गांधी या नायडू में से किसे चुनेगा।
पश्चिम बंगाल से छह सीटों पर तृणमूल ने अपने लिए पांच सीटें सुरक्षित की हैं और एक सीट पर कांग्रेस के जीतने का भरोसा है। नुकसान माकपा को होगा, जिसके राज्यसभा में सदस्यों की संख्या 8 से 7 होने जा रही है।