नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच अधिकारों की लड़ाई पर केजरीवाल सरकार के खिलाफ अपना फैसला सुनाया है।
न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के संवैधानिक प्रमुख है और उन्हें सभी फैसले करने का अधिकार हैं।
उच्च न्यायालय के मुताबिक उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासक हैं और दिल्ली सरकार उनकी मर्जी के बिना कानून नहीं बना सकती। 239 एए दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश का स्पेशल स्टेटस देता है।
फैसले में साफ है कि उपराज्यपाल दिल्ली सरकार की सलाह मानने को बाध्य नहीं हैं। केंद्र के नोटिफिकेशन सही हैं। दिल्ली सरकार के कमेटी बनाने संबंधी फैसले अवैध हैं।
दिल्ली सरकार को कोई भी नोटिफिकेशन जारी करने से पहले उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी। एसीबी केंद्रीय कर्मचारियों पर कारवाई नहीं कर सकता। अदालत ने साफ किया कि दिल्ली सरकार के दोनों मामलों में कमेटी बनाने के फैसले अवैध हैं।
दसअसल पिछले एक साल से केन्द्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर जंग चल रही थी। इस मामले को केजरीवाल सरकार ही अदालत तक लेकर गई थी।
उच्च न्यायालय ने 24 मई को दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायालय में सरकार की ओर से 10 याचिकाएं दाखिल की गई थी।
ये याचिकाएं दिल्ली,केन्द्र व उप राज्यपाल के अधिकारों को स्पष्ट करने को लेकर दायर की गई थी। सीएनजी फिटनेस घोटाले,एसीबी मुकेश मीणा की नियुक्ति के अलावा कई याचिकाएं हैं।
दूसरी ओर दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायलय के इस फैसले के खिलाफ शुक्रवार को सर्वोच्च न्यायालय जाने का फैसला किया है।