मुंबई। सबूतों की कमी के चलते बॉम्बे उच्च न्यायालय ने जर्मन बेकरी बम धामका मामले में निचली अदालत के फैसले में बदल करते हुए हिमायत बेग की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।
न्यायाधीश एनएच पाटिल और न्यायाधीश एसबी शुकरे की पीठ ने कहा कि बेग को गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) के सभी आरोपों और भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120बी (आपराधिक साजिश), 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) तथा विस्फोटक सामग्री कानून की कुछ धाराओं से बरी किया जाता है।
दूसरी ओर उच्च न्यायालय ने विस्फोटक सामग्री कानून की धारा 5 (बी) के तहत उसे आरडीएक्स रखने का दोषी माना और उसकी मौत की सज़ा को उम्रकैद की सजा में बदल दिया। न्यायालय ने उसे फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल कर सिम कार्ड खरीदने का भी दोषी माना और यह आईपीसी की धारा 474 के तहत अपराध है।
वहीं बेग के उच्च न्यायालय में जाने के बाद मामले के दो गवाहों ने भी याचिका दायर कर अपनी गवाही दोबारा दर्ज कराये जाने का अनुरोध किया था। उनका कहना था कि बयान लेते समय उनपर दबाव डाला गया था। हालांकि न्यायालय ने उनकी गवाही को अनुपयोगी मानते हुये उनकी याचिका पर सुनवाई से इंकार कर दिया।
पुणे की सत्र अदालत ने इंडियन मुजाहिदीन (आईएम) के आतंकी बेग को धमाकों का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ बेग ने अपील की थी।
उल्लेखनीय है कि पुणे के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित प्रसिद्ध जर्मन बेकरी में 13 फरवरी 2010 को शाम करीब 7:15 बजे जोरदार बम धमाका हुआ था। इसमें 17 लोगों की मौत हो गई थी और 58 लोग घायल हुए थे। इसमें कई विदेशी नागरिक भी शामिल थे।
आईएम से जुड़े शेख लालबाबा मोहम्मद हुसैन उर्फ बिलाल बेग को सितंबर 2010 में महाराष्ट्र के लातूर से गिरफ्तार किया गया था। उसके अलावा 6 अन्य लोगों को भी जर्मन बेकरी बम बलास्ट में आरोपी बनाया गया था।
जांच एजेंसियों के मुताबिक इंडियन मुजाहिदीन ने धमाके को अंजाम दिया था। धमाके की साजिश बेग ने यासीन भटकल के साथ मिलकर रची थी। धमाके में आरडीएक्स, अमोनियम नाइट्रेट, पेट्रोलियम हाईड्रोकार्बन ऑयल, बाल बेयरिंग और आईईडी का इस्तेमाल किया गया था।