मिलान। हर दिन 5700 से अधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में लेने वाले एचआईवी के कोशिका में छिपने का ठिकाना तलाशने में वैज्ञानिकों को आखिरकार सफलता मिल गई है। वैज्ञानिकों को मिली यह सफलता लाखों लोगों की मौत का कारण बनने वाली एड्स की बीमारी का बेहतर इलाज ढूंढने में एक महत्वपूर्ण कामयाबी है।
इटली के उत्तरी शहर त्रीस्ते में इंटरनेशनल सेंटर फार इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलाजी(आईसीजीईबी) के वैज्ञानिकों के दल को यह सफलता मिली है। कुछ दिनों से यह तो पता चल गया था कि एड्स की बीमारी लाइलाज इसलिए हो जाती है क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार वायरस कोशिका में अपने ही जेनेटिक मैटीरियल (डीएनए) में छिपने में कामयाब हो जाता है लेकिन जीनों के भीतर यह वायरस दवाइयों से किस तरह से बेअसर रहता है यह सवाल अभी तक एक पहेली बना हुआ है।
आईसीजीईबी के महानिदेशक माउरो गियाक्का ने कहा कि वर्ष 2000 से हमारे पास हजारों इंसानी डीएनए सिक्वेंस का आंकड़ा है जिनसे एचआईवी जुड़े होते हैं लेकिन 15 वर्षों से कोई भी यह नहीं जान पाया कि इनमें समानता क्या है। अब हमें इनकी यह समानता जानने में सफलता मिल गई है। यह वायरस कोशिका के केंद्रक (न्यूक्लियस)की सबसे बाहरी परत के छिद्र वाले हिस्सों में छिपा रहता है।
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इस क्षे्त्र में कोशिकीय जीनों की ऎसी कई श्रृंखलाएं हैं जो एचआईवी को छिपाए रखती हैं या छिपने में मदद करती हैं। .. डा गियक्का ने बताया कि नयी खोज बताती है कि कोशिका के केंद्र की रचना ही कुछ इस तरह की है जो एचआईवी के लिए सुरक्षित पनाहगार साबित होती है।
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यह वायरस कोशिका के केंद्र के लेमिन के प्रभाव वाले इलाकों और इसके मध्यवर्ती भाग में छिपने से गुरेज करता है। विज्ञाना पत्रिका नेचर की वेबसाइट पर इसी सप्ताह वैज्ञानिकों को मिली इस बड़ी सफलता का खुलासा किया गया जिससे एडस के इलाज के लिए एक नई और प्रभावी दवा तैयार करने में बड़ी मदद मिल सकती है।