नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुलंदशहर गैंगरेप मामले पर सुनवाई करते हुए कई संवैधानिक सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा कि क्या महिलाओं से रेप के मामले में ओहदे पर बैठे लोगों के बयान पीड़ित महिला के फ्री एंड फेयर ट्रायल का हनन तो नहीं है? मामले की अगली सुनवाई 20 अप्रेल को होगी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि संविधान में महिलाओं को समान अधिकार और पहचान के साथ गरिमापूर्ण जीने का अधिकार दिया गया है। ऐसे में किसी रेप पीड़ित महिला के खिलाफ पद पर बैठा कोई व्यक्ति अगर बयानबाजी करता है तो उसके गरिमापूर्ण जीवन को ठेस पहुंचती है।
कोर्ट ने कहा कि यहां मामला सिर्फ किसी की बोलने की आजादी का अधिकार का नहीं बल्कि पीड़िता के फ्री एंड फेयर ट्रायल के अधिकार का भी है। अगर आरोपी ये कहता है कि उसे साजिश के तहत फंसाया गया तो बात दूसरी है लेकिन कोई डीजीपी कहता है कि पीड़िता झूठी है तो पुलिस मामले की क्या जांच करेगी?
आपको बता दें कि पिछले 27 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार तक के लिए सुनवाई टाल दी थी। पिछले 15 दिसंबर को बुलंदशहर गैंगरेप मामले में यूपी के मंत्री आजम खान के पछतावे वाले माफीनामे को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। माफीनामे में रिमोर्स यानि पछतावा शब्द का इस्तेमाल किया गया था।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये बिना शर्त माफीनामा से भी ऊपर का माफीनामा है। उसके पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामा को सुप्रीम कोर्ट ने बिना शर्त माफीनामा स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने आजम खान को निर्देश दिया था कि वे नया हलफनामा दायर करें।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद आजम खान सुप्रीम कोर्ट में अपने बयान को लेकर बिना शर्त माफी मांगने को तैयार हुए थे। इस मामले में एमिकस क्युरी फाली एस नरीमन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को उन मंत्रियों के व्यवहार और कर्तव्यों पर एक दिशानिर्देश जारी करना चाहिए जो किसी भी तरह का सार्वजनिक बयान दे देते हैं।
यूपी के बुलंदशहर में मां- बेटी से गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की गई है। इस गैंग रेप के मामले में यूपी के मंत्री आजम खान ने कथित रूप से ये बयान दिया था कि ये एक राजनीतिक साजिश थी। जब आजम खान को सुप्रीम कोर्ट ने तलब किया था तो आजम खान ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उन्होंने यह बयान नहीं दिया था कि गैंगरेप के पीछे राजनीतिक साजिश है।