कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायाधीश सी.एस.कर्णन ने उनकी मानसिक जांच कराने के सुप्रीमकोर्ट के आदेश को ‘हास्यास्पद’ करार देते हुए दिल्ली पुलिस को शीर्ष न्यायालय के सात न्यायाधीशों को एक मनोचिकित्सा समिति के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है।
न्यायाधीश कर्णन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यह आदेश हास्यास्पद है, क्योंकि आवश्यकता के अनुसार उपयुक्त प्रक्रियाओं के पालन में सही ढंग से दिमाग भी नहीं लगाया गया। सातों आरोपी न्यायाधीशों ने अनुसूचित जाति तथा जनजाति (रोकथाम) अत्याचार अधिनियम के तहत दंड से बचने के लिए जल्दबाजी में यह हास्यास्पद आदेश जारी कर दिया।
उन्होंने कहा कि उनके इस विचित्र व्यवहार के कारण, इन सातों न्यायाधीशों को ही वस्तुत: चिकित्सकीय जांच की जरूरत है।
इससे पहले दिन में प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय की सात न्यायाधीशों की एक पीठ ने चार मई को न्यायमूर्ति कर्णन की मानसिक हालत की जांच के लिए एक चिकित्सकीय समिति का गठन करने और आठ मई को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया था।
न्यायाधीश कर्णन ने दावा किया कि इस तरह का आदेश उनके जैसे एक दलित न्यायाधीश का ‘अतिरिक्त अपमान’ है, जो शारीरिक व मानसिक तौर पर बिल्कुल स्वस्थ है।
उन्होंने कहा कि मेरे विवेक के खिलाफ इस तरह का आदेश एक बेकसूर दलित न्यायाधीश का अतिरिक्त अपमान है, जो शारीरिक व मानसिक तौर पर बिल्कुल स्वस्थ है।
उन्होंने दिल्ली पुलिस को सातों आरोपी न्यायाधीशों को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के अधीन एक मनोरोग चिकित्सा समिति के समक्ष पेश करने और पर्याप्त चिकित्सा जांच के बाद सात मई तक या उससे पहले इसकी रिपोर्ट सौंपने’ का निर्देश दिया।
न्यायाधीश कर्णन ने कहा कि मैं नई दिल्ली के पुलिस महानिदेशक को निर्देश देता हूं कि वह आरोपी सातों न्यायाधीशों को नई दिल्ली के एम्स के अधीन एक मानसिक चिकित्सा समिति के समक्ष पेश करें और उनकी पर्याप्त चिकित्सकीय जांच के बाद सात मई को या उससे पहले इसकी रिपोर्ट पेश करें।
न्यायाधीश कर्णन न्यायपालिका का अपमान करने तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के लिए अवमानना की कार्यवाही का सामना कर रहे हैं।
बीते 13 अप्रेल को न्यायाधीा कर्णन ने अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम के तहत प्रधान न्यायाधीश खेहर सहित सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायाधीशों के खिलाफ एक ‘न्यायिक आदेश’ पारित किया था और 28 अप्रैल को उन्हें अपने समक्ष ‘पेश होने’ का निर्देश दिया था।
कर्णन ने जनवरी महीने में 20 न्यायाधीशों को ‘भ्रष्ट’ बताया था और भारतीय न्याय व्यवस्था में व्याप्त ‘व्यापक भ्रष्टाचार’ का दमन करने के लिए उनके खिलाफ जांच की मांग की थी, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायाधीशों ने स्वत: संज्ञान लेते हुए कर्णन के खिलाफ फरवरी महीने में अवमानना का आदेश जारी किया था।