प्रशान्त झा
भारत ने गत माह 28 जून को नियंत्रण रेखा पार कर सर्जिकल स्ट्राईक को अंजाम दिया व पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कई आतंकी कैम्पों को नष्ट कर 40 से अधिक अंतकियों का सफाया कर दिया।
इस बडी कार्रवाई के लिए सेना, भारत सरकार के साथ साथ मीडिया में कार्टोसैट नामक उपग्रह को श्रेय दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस उपग्रह ने ही भारत को सर्जिकल स्ट्राईक किए जा सकने लायक जरूरी सूचना उपलब्ध कराई।
इस उपग्रह को भारतीय अंतरिक्ष संगठन इसरो ने 22 जून, 2016 को प्रक्षेपित किया था। इसका तात्पर्य है कि भारत को यह क्षमता 22 जून, 2016 को ही प्राप्त हुई और इसी कारण भारत सर्जिकल स्ट्राईक को अंजाम दे पाया। अब सवाल उठना लाजमी है कि क्या इससे पहले भारत को दुश्मनों की कोई खोज—खबर थी ही नहीं?
भारत ने 22 जून 2016 को कार्टोसैट श्रेणी के जिस उपग्रह का प्रक्षेपण कर अंतरिक्ष में स्थापित किया वह कार्टोसैट 2 सी है जो कार्टोसैट 2 सीरीज का तीसरा उपग्रह है जो धरती के अवलोकन व निरीक्षण के लिए बनाया गया रिमोट सैंसिंग श्रेणी का उपग्रह है।
690 किलो ग्राम वजनी इस उपग्रह में उच्च गुणवत्ता वाले कैमरे लगे हैं जो अंतरिक्ष से 0.6 मीटर तक की हाई रेज्योल्यूशन फोटो लेने की क्षमता रखते हैं। यह किसी क्षेत्र विशेष या स्थान के मिनट भर के वीडियो भी धरती पर भेज सकता है जो सैन्य अभियानों में भी उपयोगी हो सकते हैं।
भारत ने कार्टोसैट श्रेणी का पहला उपग्रह 1560 किलोग्राम वजनी कार्टोसैट 1 ए या आई.आर.एस. पी 5 को 5 मई 2005 को पी.ए.एल.वी. सी 6 राकेट के जरिये अंतरिक्ष में छोडा था जिसके दो पैंक्रोमैटिक कैमरे 2.5 मीटर रेज्योल्यूशन के चित्र लेने में सक्षम थे।
कार्टोसैट 2 ए भारत का पहला एैसा उपग्रह था जो सैन्य उपयोग के लिए समर्पित था जिसे वर्ष 2007 में छोडा गया था जो पडोस में से छोडे जाने वाले मिसाईलों पर नजर रखने की क्षमता से लैस था।
पर क्या इन अत्याधुनिक उपग्रहों से पहले हमें दुश्मनों की इस प्रकार की जानकारी मिल पाती थी? जी हां भारत के पास इन उपग्रहों से पहले भी इस प्रकार की सैन्य निगरानी क्षमता वाले रूसी विमान मिग 25 मौजूद थे जो 1981 में सोवियत संघ से हासिल किए गए थे।
ये विमान सैन्य निगरानी और जासूसी मिशन में इस्तेमाल होने वाले विश्व के सर्वश्रेष्ठ विमान थे जिन्हे पकड पाना या खोज् पाना नामुमकिन था क्योंकि ये विमान मैक 3 की उच्चतम गति से 74000 फीट की उंचाई तक उड सकता था जबकि पाकिस्तानी वायू सैना के पास मौजूद उस समय का श्रेष्ठतम माना जाने वाला लडाकू विमान एफ—16 मात्र 55000 फीट की उंचाई तक अधिकतम मैक 2 की गति से उडान भरता था।
इसलिए भारत के ये मिग 25 विमान जो अत्यंत गोपनीय 102 स्क्वाड्रन का हिस्सा थे बरेली वायू सैनिक अड्डे से बेरोकटोक उडान भर कर चीन और पाकिस्तान की वायू सीमा में 25 वर्ष तक अपने मिशन को अंजाम देते रहे और देश के लिए महत्वपूर्ण सैन्य जानकारी जुटाते रहे।
खासबात यह है कि इन मिग 25 की भारत में मौजूदगी केवल 2006 में उनके सैन्य सेवा समाप्ति के समय ही दुनिया के सामने जाहिर हो पाई जब ये विमान अपनी बेदाग गौरवशाली सेवाओं की समाप्ति के बाद वायू सैना के बेडे से विदा हुए। भारतीय वायू सैना में इसे गरूण नाम से जाना जाता था जबकि नाटो देशों में इस विमान को फाक्सबैट नाम दिया गया था।
भारत ने कारगिल युद्ध और आपरेशन पराक्रम के दौरान इस विमान का दुश्मन की सैन्य हरकतों एवं तैयारीयों की निगरानी के लिए बखूबी उपयोग किया जिसकी भनक तक दुश्मन को नहीं लगी।
इसलिए यह कहना गलत होगा कि भारत को दुश्मन की जानकारी जुटाने और टोह लेने की क्षमता 22 जून 2016 को कार्टोसेट नामक उपग्रह को छोडने से हासिल हुई भारत को यह सुविधा तो 1981 में मिग 25 विमान को वायू सैना में शामिल किए जाने से ही उपलब्ध हो गई थी।
भारत की ये क्षमता इस क्षेत्र में बेजोड है जहां मिग 25 की 25 साल की गौरवशाली गाथा है वहीं कार्टोसैट श्रेणी के उपग्रह विशेषकर कार्टोसैट 2 सी ने भारत को अमरीका, चीन और इज्राईल जैसे देशों की श्रेणी में ला खडा किया है जिनके पास अत्याधुनिक सैन्य जासूसी उपग्रह तकनीक मौजूद है।
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