वाशिंगटन। बिल्लियां पालना कुछ लोगों के लिए मन बहलाने का साधन हो सकता है, लेकिन एक नए शोध में यह बात सामने आई है कि बिल्लियों के साथ रहने से शिजोफ्रेनिया बीमारी होने का खतरा रहता है।
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शोधकर्ताओं ने कहा है कि परजीवी टॉक्सोप्लास्मा गोंडी (टी. गोंडी), जो कि बिल्लियों से मनुष्यों में संक्रमित हो सकता है और इस कारण उनमें शिजोफ्रेनिया पनप सकता है।
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स्टेनले मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के एडविन टोरे ने कहा कि टी. गोंडी दिमाग में जाता है और सूक्ष्म अल्सर का निर्माण करता है। हमारे विचार से यह बाद में किशोरावस्था में सक्रिय होता है और बीमारी का कारण बनता है। बीमारी संभवत: न्यूट्रांसमीटर को प्रभावित करने से होती है।
शोधकर्ताओं ने लिखा कि अभी तक तीन शोधों में यह बात सामने आ चुकी है कि बचपन में बिल्लियों के साथ रहने वाले बच्चे वयस्क होने तक शिजोफ्रेनिया और अन्य गंभीर मानसिक बीमारी के शिकार हो जाते हैं।
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उन्होंने 1982 में कुछ परिवारों को बांटी गई प्रश्नावली का अध्ययन किया। इस प्रश्नावली के उत्तरों का अभी तक वैज्ञानिकों ने विश्लेषण नहीं किया था।
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इस शोध में 2,125 परिवारों का आंकड़ा शामिल है। ये परिवार नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल इलनेश (नामी) से ताल्लुक रखते हैं। इस शोध में पाया गया है कि शिजोफ्रेनिया के शिकार 50.6 फीसदी लोगों के पास बचपन एक बिल्ली थी।
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इस अध्ययन के परिणाम 1990 में किए गए दोनों अध्ययनों के समान है। इन दोनों अध्ययनों के परिणामों में क्रमश: 50.9 और 51.9 फीसद लोग शिजोफ्रेनिया के शिकार हैं और वे बिल्लियों के साथ रहते बड़े हुए हैं।
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