राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाना कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के लिए गुड़ भरा हंसिया साबित हो रहा है जिसे न तो वे निगल पा रहे हैं न उगल।
उन्होंने भिवांडी की स्थानीय अदालत में अपने खिलाफ दाखिल वाद को रद्द करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय तक में अर्जी लगाई। एक सुनवाई में न्यायालय ने उन्हें अपने आरोप के लिए माफी मांगने का सुझाव दिया और कहा कि यदि वे ऐसा करें तो वाद समाप्त किया जा सकता है।
राहुल गांधी ने माफी मांगने से इंकार कर दिया लेकिन अगली पेशी पर उनके वकील कपिल सिब्बल ने एक हलफनामा पेश किया जिसमें घुमा फिराकर यह साबित करने का प्रयास किया गया था कि राहुल गांधी ने संघ पर ऐसा आरोप नहीं लगाया था बल्कि यह कहा था कि हत्या करने वाला संघ से सम्बन्धित था।
अदालत ने वादी के वकील से प्रतिक्रिया जानने के बाद कहा कि राहुल गांधी स्वयं उपस्थित होकर इस हलफनामे की पुष्टि करें। सर्वोच्च न्यायालय में उपस्थित होने के बजाय राहुल गांधी ने अपने वकील के माध्यम से हलफनामा वापिस ले लिया और अब इस संवाद की सुनवाई भिवाड़ी की अदालत में होगी, जिसमें प्रत्येक सुनवाई पर राहुल गांधी के लिए हाजिर रहना अनिवार्य होगा।
लोकसभा के पिछले निर्वाचन में मुस्लिम बहुल भिवाड़ी की एक सभा में राहुल गांधी ने कहा था-जो टीवी चैनलों द्वारा प्रसारित की गई-कि आरएसएस वालों ने गांधी की हत्या की और उसे उन्हीं के नाम की दुहाई दे रहे हैं। अदालत में उनकी ओर से दायर हलफनामा में इस कथन को संशोधित कर यह कहने का प्रयास किया गया कि जिसने हत्या की उसका संघ से सम्बन्ध था।
महात्मा गांधी की हत्या होने के बाद से संघ पर यह आरोप बराबर लगाया जाता रहा है जिसके लिए कतिपय नामी गिरामी लोगों को माफी मांगनी पड़ी तथा कुछ समाचार पत्रों ने भी खेद व्यक्त किया। संघ ने प्रारंभ में इन आरोपों की उपेक्षा किया लेकिन जब पानी सिर से ऊपर निकलने लगा तब स्थान-स्थान पर समय-समय पर संघ में स्वयंसेवकों ने अदालत का सहारा लिया।
भिवाड़ी में भी संघ के एक स्थानीय स्वयंसेवक ने राहुल गांधी की अभिव्यक्ति के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है। सर्वोच्च न्यायालय से राहत पाने में असफल राहुल गांधी की ओर अब यह कहा गया है कि वे ‘संघ को बनेकाब’ करने के अभियान से पीछे नहीं हटेंगे।
संघ पर महात्मा गांधी की हत्या में दूर-दूर से भी शामिल होने का कोई आरोप वैधानिक अर्थात अदालती कार्यवाही में नहीं लगाया गया। उनकी हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे और उनके भाई पर जो मुकदमा चला उसमें किसी स्तर पर कहीं भी एक बार भी संघ का उल्लेख नहीं आया है।
तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने संघ द्वारा ‘उत्पन्न माहौल’ पर खिन्नता व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को जो पत्र लिखा उसमें भी कहा गया कि हत्या में संघ के लिप्त होने का कोई सबूत नहीं है। तत्कालीन गृह सचिव ने यहां तक लिखा कि संघ को अनावश्यक तरीके से इस वाद में घसीटा गया जिस समय गांधी जी की हत्या हुई, मैं ग्यारह वर्ष का था और अपने गांव की शाखा में जाता था।
मुझे अच्छी तरह याद है कि हत्या के दूसरे दिन जब मैं संघ स्थान पर पहुंचा तो पता चला कि शाखा में तेरह दिन तक शोक मनाया जाएगा इसलिए न ध्वज लगेगा न खेलकूद होगा। मंडल में बैठकर भजन या देशभक्ति के गीत गाए जाएंगे। यहां यह बताना उचित होगा कि यह विद्यार्थी शाखा थी और उस समय 12वीं कक्षा के आगे फैजाबाद में पढ़ने की सुविधा नहीं थी।
मुख्य शिक्षक 12वीं के छात्र थे, जो आगे चलकर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष और फैजाबाद के विधायक भी हुए थे। दो दिन तक भजन और गीत कार्यक्रम के बाद शाखा लगाना बंद कर दिया गया बताया गया कि ऐसा करने के लिए सरसंघचालक श्री गुरूजी का आदेश आया है। लेकिन उस समय जब नाथूराम गोडसे को संघी बताकर संघ को बदनाम करने का अभियान चलाया गया, वहीं यह भी प्रचार किया गया कि हत्या की खुशी में संघ की शाखाओं में मिठाई बांटी गई।
इस असत्य निराधार और निंदनीय प्रचार से उत्पन्न हिंसा के बहुत से स्वयंसेवक शिकार हुए। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान द्वितीय विश्व युद्ध के समय 1942 में कांग्रेसियों को पकड़वाने में मुखबिर बनने के लिए कम्युनिस्ट के महामंत्री पीसी जोशी ने तत्कालीन वाइसराय को पत्र लिखकर पार्टी की सेवा में अर्पित किए जाने के प्रस्ताव के कारण बदनाम साम्यवादी तथा उनके हमसफर लोगों को गांधी की हत्या अपने उद्धार के लिए संघ को बदनाम करने का उपयुक्त मौका लगा।
ऐसे में हत्प्रभ कांग्रेस उस साजिश में शामिल हो गई जिसमें सरदार पटेल, पुरूषोत्तम दास टंडन, सेठ गोविन्ददास आदि की प्रधानमंत्री जवाहरलाल से नीतिगत मतभेद के कारण खींचतान चल रही थी। राष्ट्रवादी भावना वालों की संघ के प्रति अनुकूलता थी, संघ ने देश के विभाजन से विस्थापित हुए लोगों को पाकिस्तान से सुरक्षित लाने और उनके पुनर्वास के लिए जो कार्य किया गया था, उसके कारण उसके कार्य की व्यापकता बढ़ गई थी।
गांव-गांव संघ शाखा शुरू हो जाने के कारण साम्यवादी अवधारणा के लोगों को भयभीत कर दिया था। महात्मा गांधी की हत्या के आरोप के रूप में उन्हें एक हथियार मिल गया जिसका भरपूर उपयोग किया गया। कांग्रेस में चल रहे अंतकर्लह एक वर्ग ने साम्यवादियों को प्रेत्साहित कर इस आरोप की भुनाने का जो सिलसिला शुरू हुआ वह अभी तक जारी है। राहुल गांधी उसी सिलसिले के वशीभूत होकर अब अदालत में हाजिर होंगे के लिए बाध्य हो गए हैं।
कुछ ‘उदारवादी’ या तटस्थ समे जाने वाले लेाग इस देश में थे और हैं भी जो यह तो नहीं मानते कि गांधीजी की हत्या में संघ का हाथ था, लेकिन नाथूराम का संघ के सम्बन्ध था, और संघ का हिन्दुत्व का माहौल उनकी हत्या का कारण बना। दोनों ही आरोप या धारणा तथ्यहीन है।
गांधीजी की हत्या के आरोप की सुनवाई में अदालत ने नाथूराम को ‘उग्र हिन्दु महासभाई’ कहा है। स्वयं नाथूराम गोडसे संघ के लोकतांत्रिक आचरण से इतना खिन्न था उसने संघ को ‘नपुंसकों का संस्था’ कह डाला था। उसने दामोदर विनायक सावरकर के साथ कुछ दिन काम जरूर किया था, लेकिन अदालत ने यह पाया कि इस हत्याकांड से सावरकर का कोई लेना देना नहीं था। उनको वाइज्जत बरी कर दिया गया था।
संघ का संघ के किसी स्वयंसेवक को इस मुकदमें में वादी नहीं बनाया गया था। अब संघ द्वारा उत्पन्न हिन्दुत्ववादी माहौल का आरोप। अदालत ने तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा-लेकिन ‘उदारवादी’ इस अवधारणा वाले आज भी बने हैं। इसमें कितना सच है।
यदि हम मूर्धन्य नेता श्रीप्रकाश के इस लिखित दावे को नजरंदाज भी कर दें कि देष के विभाजन से महात्मा गांधी के प्रति रोष के कारण ‘मंत्री कालोनी’ (अब वाल्मीकिनगर) में उनकी सुरक्षा के लिए संघ के स्वयंसेवक दिनरात पहरा देते थे, तो भी और अनेक साक्ष्य ऐसे हैं जो इस बात के सबूत हैं कि संघ हिन्दू राष्ट्रवादी संस्था होते हुए उग्रता के खिलाफ अहिंसावादी संस्था थी, है और रहेगी।
प्रथम प्रतिबंध काल में संघ स्वयंसेवकों को जिंदा तक जलाया गया लेकिन उसकी कहीं प्रतिक्रिया नहीं हुई क्योंकि प्रतिबंध हटने के बाद अपने रात दिन के देशव्यापी प्रवास के समय सरसंघचालक गुरूजी का एक ही संदेश था ‘जिस प्रकार जीभ के दांत के नीचे आ जाने पर कितनी ही पीड़ा के बावजूद कोई दांत नहीं तोछ़ देता, उसी प्रकार हमें अपने ही बंधुओं द्वारा भ्रम वस किए गये अत्याचारों को नजरंदाज कर देना चाहिए।’
देशभर में उस समय अनेकानेक दिग्गज नेता थे। गुरूजी उनके मुकाबले आयु और अनुभव में बहुत कम थे, लेकिन देशहित में जो समझदारी उन्होंने दिखाई वह अदभुत संयम और भविष्य के लिए संकल्पबद्ध होकर किसी परिस्थिति से विचलित हुए बिना देश को परमवैभव के शिखर पर ले जाने के संकल्प के अनुरूप संगठन को संचालित करने की अद्वितीय प्रतिभा का प्रतीक है।
माहौल के संदर्भ में यदि उस समय के माहौल का जिसमें गांधीजी की हत्या हुई जिक्र न किया जाय तो संभवतः समीक्षा अधूरी होगी। कांग्रेस ने मुसिलम लीग के देश विभाजन का पुरजोर विरोध किया था महात्मा गांधी ने तो यहां तक कहा था कि मेरी लाश के दो टुकड़े हो सकते हैं देष के नहीं। लेकिन देश का विभाजन हुआ।
करोड़ लोग विस्थापित होकर भारत आए… लाखों लोग मारे गए, सम्पत्ति लूटी गई, माताओं-बहनों की अस्मत लूटी गई, लाखों लोगों को बलपूर्वक धर्मान्तरण कराया गया, इसके कारण कांग्रेस और गांधीजी के प्रति आक्रोश था इससे इनकार करना तथ्य से मुंह मोड़ना होगा। गांधीजी को संघ ने इस आक्रोश के कारण सुरक्षा दिया था नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या करने के पूर्व भी गांधी जी पर हमले हुए थे वे बिडला भवन में आए थे लेकिन उन्हें कोई सुरक्षा नहीं प्रदान की गई थी।
इस माहौल् के बीच ही भारत से पाकिस्तान को पचपन करोड़ रूपए दिलवाने के लिए गांधी ने अनशन करने की धमकी दी। भारत सरकार ने पचपन करोड़ पाकिस्तान को दिया जिसकी चारों ओर निंदा हुई और नाथूराम गोडसे जैसे विक्षिप्त व्यक्ति को उनकी हत्या तक के लिए उत्तेजित किया। ‘माहौल’ के संदर्भ में इस तथ्य की उपेक्षा बराबर किया गया। यदि यह कहा जाए कि इस पक्ष को छिपाया गया तो अधिक उपयुक्त होगा।
संघ के संस्थापक डाक्टर हेडगेवार ने कहा था कि संघ का कार्य परिस्थिति निरपेक्ष है। इस अवधारणा को लेकर संघ निरंतर आगे बढ़ता गया और आज विश्वभर में उसकी शाखाएं हैं जहां संस्थानाएं बनाकर धन हड़पने, देशी विदेशी चंदे पर मौज करने सम्पत्ति के लिए सत्तावान बनने की होड़ है वही संघ से स्वयंसेवक समाज के सहयोग से एक लाख से भी अधिक प्रकल्प चला रहे हैं।
संघ जिस हिन्दुत्व या भारतीय अवधारणा से कृणवंतो विश्वधर्म के वैदिक उद्देश्य को पूरा करना चाहता है, उसकी विश्व में अनुकूलता बढ़ती जा रही है। जो निहित स्वार्थ से प्रेरित है वे समय-समय पर तथ्यहीन आरोपों की हवाबाजी से इस प्रयास पर पानी फेरने की अपनी असफलता से बौखलाकर आचरण कर रहे हैं।
वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत इस परिस्थिति देश-विदेश में कार्यरत संघ के स्वयंसेवकों को परिस्थिति निरपेक्ष होकर दांत के नीचे जीभ आने पर दांत न तोड़ देने की भावना के अनुरूप सतत प्रयत्शील रहने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। संघ की प्रार्थना में ईश्वर से दो वरदान मांगा गया है, एक हमारा राष्ट्र अजेय हो और दूसरा हमें वह शील प्रदान करो जिसके सामने विश्व नतमस्तक हो जाए।
संघ इसी साधना में रहत है। भोजन के बाद दांत फंसे कणों को निकालने के लिए हम मुंह में पानीभर कुल्ला करते हैं। राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मुकदमा संघ के लिए इसी प्रकार का उपक्रम मात्र हैं और कुछ नहीं।
– राजनाथ सिंह ‘सूर्य’
लेखकः- राज्यसभा के पूर्व सांसद और वरिष्ठ स्तम्भकार हैं।