रांची। आस्था का महापर्व छठ 24 अक्टूबर को नहाय-खाय से शुरू हो रहा है। इसकी तैयारियां शुरू हो गई है। लोगों ने छठ पर अर्घ्य देने के लिए छठ घाटों पर अपने-अपने स्थान चिन्हित कर उसकी सफाई कर दी है। रांची नगर निगम ने भी छठ पर्व के लिए शहर के तालाबों की सफाई शुरू करा दी है।
दीपावली के बाद लोग छठ की खरी शुरू कर दी है। 24 अक्टूबर को नहाय खाय, 25 को खरना, 26 को पहला अर्घ्य और 27 को दूसरा अर्घ्य छठव्रती देंगे।
गौरतलब है कि पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। इस कारण हिन्दू शास्त्रों में सूर्य को लोग भगवान मानते हैं। इनका जीवन के लिए इनका रोज उदित होना जरूरी है। कुछ इसी तरह की परिकल्पना के साथ पूर्वात्तर भारत के लोग छठ महोत्सव के रूप में इनकी आराधना करते हैं। माना जाता है कि छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती रही है।
छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। यह भी कहा जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
छठ की पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अत्यंत लोकप्रिय है। छठ पूजा दीपावली पर्व के छठे एवं सातवें दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी एवं सप्तमी को की जाती है। छठ, सूर्य की उपासना का पर्व है। वैसे भारत में सूर्य पूजा की परम्परा वैदिक काल से ही रही है।
लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की और सप्तमी को सूर्याेदय के समय अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया। इसी के उपलक्ष्य में छठ पूजा की जाती है। छठ पर्व की परंपरा में बहुत ही वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व भी छिपा हुआ है।
षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है, जिस समय धरती के दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य रहता है और दक्षिणायन के सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें धरती पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं क्योकि इस दौरान सूर्य अपनी नीच राशि तुला में होता है। इन दूषित किरणों का सीधा प्रभाव जनसाधारण की आंखों, पेट, स्किन आदि पर पड़ता है।
इस पर्व के पालन से सूर्य प्रकाश की इन पराबैंगनी किरणों से जनसाधारण को हानि न पहुंचे, इस अभिप्राय से सूर्य पूजा का गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है। इसके साथ ही घर-परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता से भी छठ पूजा का व्रत जुड़ा हुआ है। इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पति, पत्नी, पुत्र, पौत्र सहित सभी परिजनों के लिए मंगल कामना से भी जुड़ा हुआ है।
सुहागिन स्त्रियां अपने लोक गीतों में छठ मैया से अपने ललना और लल्ला की खैरियत की ख्वाहिश जाहिर करती हैं। छठ पर्व की सांस्कृतिक परंपरा में चार दिन का व्रत रखा जाता है। यह व्रत भैया दूज के तीसरे दिन यानि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से आरंभ हो जाते है।
24 अक्टूबर को व्रत के पहले दिन को नहाय-खा कहते हैं। जिसका शाब्दिक अर्थ है स्नान के बाद खाना। दूसरा दिन खरना कहलाता है, जो पंचमी के दिन पड़ता है। इस दिन भी घर की महिलाएं और पुरुष पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को चावल और गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
कहा जाता है कि गुड़ की खीर खाने से जीवन और काया में सुख-समृद्धि के अंश जुड़ जाते हैं। इसके बाद अगले 36 घंटों तक निर्जल रहना पड़ता है। तीसरे दिन छठ पूजा होती हैं। जब सायंकाल के समय डूबते सूरज को चलते पानी में अर्घ्य दिया जाता है।
इस पूजा के दौरान व्रती महिलाएं और पुरुष सिर में पूजा की सामग्री, दीपक, गन्ना और धूप-अगरबत्ती सहित फूल-फल आदि एक टोकरी में लेकर छठ मैया के गीत गाते हुए पूजा के घाटों पर पहुंचती हैं। वहां पर मंत्रोच्चार के बाद सूर्य भगवान को विदाई के वक्त अर्घ्य दिया जाता है।
डूबते सूरज को पूजने से ही श्रद्धालुओं की मान्यता है कि उनके सारे कष्ट दूर हो गए।
इस दिन गन्ने का प्रसाद बांटना विशेष पुण्यदायक होता है। चौथे दिन को परना यानी विहान अर्घ्य कहते हैं। इस दिन प्रातः काल उगते सूरज को अर्घ्य देने के लिए पुनः नदी तट पर एकत्रित होते हैं। सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के बाद लोग अपने परिजनों और इष्ट मित्रों से मिलते हैं और एक दूसरे को प्रसाद देते हैं।
वैसे तो प्रत्येक पर्व में ही स्वच्छता एवं शुद्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता है, पर इस पर्व के संबंध में ऐसी धारणा है कि किसी ने यदि भूल से या अनजाने में भी कोई त्रुटि की तो उसका कठिन दंड भुगतना होगा। इसलिए पूरी सतर्कता बरती जाती है कि पूजा के निमित्त लाए गए फल- फूल किसी भी कारण अशुद्ध न होने पाएं। इस पर्व के नियम बड़े कठोर हैं।
अगले दिन तड़के पुनः तट पर पहुंचकर पानी में खड़े रहकर सूर्यादय का इंतजार करते हैं। सूर्यादय होते ही सूर्य दर्शन के साथ उनका अनुष्ठान पूरा हो जाता है। पूरे 24 घंटे व्रतधारियों का निर्जला बीतता है।
इस पर्व के संबंध में कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कथा यह है कि लंका विजय के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे तो दीपावली मनाई गई। जब राम का राज्याभिषेक हुआ, तो राम और सीता ने सूर्य षष्ठी के दिन तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए सूर्य की उपासना की थी। इसके अलावा एक कथा यह भी है कि सूर्य षष्ठी को ही गायत्री माता का जन्म हुआ था।
इसी दिन ऋषि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र फूटा था। पुत्र की प्राप्ति के लिए गायत्री माता की भी उपासना की जाती है। दीपावली के बाद शहर के गली मोहल्लों में छठी मइया के गीत गुंजामयान है। चार दिवसीय छठमहापर्व हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह पूजा उत्तर भारत एवं नेपाल में बड़े पैमाने पर की जाती है।
यही नहीं, मॉरिशस, त्रिनिडाड, सुमात्रा, जावा समेत कई अन्य विदेशी द्वीपों में भी भारतीय मूल के प्रवासी छठ पर्व को बड़ी आस्था और धूमधाम से मनाते हैं। डूबते सूर्य की विशेष पूजा ही छठ का पर्व है। चढ़ते सूरज को सभी प्रणाम करते हैं।