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कोर्ट ने कहा, पत्नी की देखभाल पति की जिम्मेदारी

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बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि पत्नी को सीआरपीसी की धारा 125(1) के तहत दिए गए भरण-पोषण के आदेश को एक्जीक्यूशन में चुनौती नहीं दी जा सकती और आदेश रद्द भी नहीं किया जा सकता।…

हाईकोर्ट ने पत्नी की क्रिमिनल रिवीजन को मंजूर करते हुए पति को दो माह के भीतर एरियर की पूरी राशि जमा करने का आदेश दिया है। कोर्ट के मुताबिक, पति कहीं भी रहे, पत्नी की देख-भाल करना उसकी जिम्मेदारी है।

न्यायाधीश संजय के. अग्रवाल की एकल पीठ ने मनुस्मृति का हवाला देते हुए कहा है कि पति नौकरी या व्यवसाय के सिलसिले में शहर से बाहर रहे या विदेश जाए, पत्नी की देखभाल उसकी जिम्मेदारी होती है।

रायगढ़ में रहने वाली संतोषी जायसवाल ने हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन पेटीशन दायर कर फैमिली कोर्ट द्वारा उसके बच्चों के पक्ष में हर माह एक हजार रूपए भरण-पोषण के आदेश को रद्द करने को चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने उसके पक्ष में 17 जनवरी 2006 को आदेश दिया था।

पति राकेश जायसवाल ने इसके खिलाफ फैमिली कोर्ट में ही अर्जी लगाकर कहा कि कोर्ट ने पत्नी को साथ रहने का आदेश दिया था। उसने इसका पालन नहीं किया, लिहाजा वह भरण-पोषण की पात्र नहीं है। फैमिली कोर्ट ने इस पर सुनवाई करते हुए 30 नवंबर 2007 को अपने ही आदेश को रद्द कर दिया।

पत्नी ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में क्रिमिनल रिवीजन पेटीशन दायर किया। इसमें आदेश के बाद से भरण-पोषण के तौर पर एक हजार रूपए और एरियर के रूप में 40 हजार रूपए की मांग की गई।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125(1) के तहत जारी आदेश को क्रियान्वयन कार्रवाई में चुनौती नहीं दी जा सकती, रद्द किया जा सकता है। पति को दो माह के भीतर भरण-पोषण की पूरी राशि जमा करवाने का आदेश दिया है।

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