जगदलपुर। राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना के संवर्द्धन के प्रयासों में एक कदम और आगे बढ़ाते हुए कांघाराउ में करीब 50 लाख रूपए की लागत से वन विभाग विशाल पिंजरा बनाने की तैयारी में है। इस कार्य हेतु पार्क के अधिकारियों को प्रोजेक्ट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।
ज्ञात हो कि वन विभाग बीते 22 साल में मैना के संवर्द्धन में असफल रही है। बस्तर में पाई जाने वाली पहाड़ी मैना का जुलाजिकल नामगैकुला रिलीजिओसा पेनिनसुलारिस है। यह देश के विभिन्न हिस्सों में पाई जाने वाली मैना से अलग है। यह कांगेर घाटी गंगालूर बारसूर तथा बैलाडीला की पहाडियों के अलावा छग और ओडिसा की सीमा पर स्थित गुप्तेश्वर क्षेत्र में पाई जाती है। इसलिए इसे राजकीय पक्षी घोषित किया गया है।
परंतु मैना की अवैध निकासी के चलते इनकी संख्या में तेजी से कमी आई है। कुछ दिनों पहले वन ग्राम कोटमसर के कोटवारपारा में 30 मैना का झुंड देखा गया था इसलिए अधिकारियों का ध्यान तेजी से इस ओर गया है। लुप्त हो रही पहाड़ी मैना की प्रजाति को संवर्धित करने का प्रयास 1992 से किया जा रहा है। पहले 90 हजार रूपए खर्च कर वन विद्यालय में पिंजरा बनाया गया था।
मैना विशेषज्ञों की सलाह पर वर्ष 2005 में 17 लाख रूपए खर्च कर बड़ा पिंजरा बनाया गया और जंगल से लाई गई चार मैना को यहां रखा गया। प्रतिदिन इन्हें फल के अलावा इलेक्ट्राल पाउडर पिलाया जाता था लेकिन एक भी मैना ने अंडा नहीं दिया वहीं बीमारी और सर्प के हमले से चारों मैना मर गई। मुख्य वनसंरक्षक वन्य प्राणी व्ही रामाराव ने बताया कि 22 साल से वन विद्यालय के पिंजरे में मैना संवर्द्धन के प्रयास विफल रहे हैं पिछले दिनों थाईलेंड से बस्तर आए मैना विशेषज्ञों ने अपना अभिमत रखा था कि जीवों के प्रजनन के लिए एकांत और कोलाहल विहीन स्थल की दरकार होती है।
यह बातें मैना के लिए भी लागू होती है। किरंदुल वालटेयर रेलवे लाइन और एनएच 30 के मध्य वन विद्यालय में तैयार पिंजरा मैना संवर्द्धन के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि यहां दोनों और से शोर शराबा होता है। राव ने बताया कि वन विद्यालय के बदले कांघाराउ क्षेत्र के कोटमसर कांगेरधारा दंडक गुफा या नागलसर के पास स्थल चयन कर मैना के लिए विशाल पिंजरा तैयार किया जाएगा इसके लिए पार्क के अधिकारियों को प्रोजेक्ट तैयार करने का कहा गया है। इस कार्य में लगभग 50 लाख रूपए खर्च होंगे।