बीजिंग। कोरियाई प्रायद्वीप तथा दक्षिण चीन सागर में व्याप्त तनाव के बीच चीन ने बुधवार को अपने पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत का जलावतरण किया।
डालियन बंदरगाह पर समुद्र में उतारा गया 50,000 टन वजनी विमानवाहक पोत साल 2020 से चीनी नौसेना के लिए काम करना शुरू कर देगा। इसके साथ ही चीन के पास विमानवाहक पोत की संख्या दो हो जाएगी।
फिलहाल चीन के पास एकमात्र विमानवाहक पोत लियाओनिंग है, जिसे पूर्व में सोवियत संघ से खरीदा गया था।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने यहां संवाददाताओं से कहा कि नया विमानवाहक पोत चीन के रणनीतिक हितों की सुरक्षा के लिए है और इसका हथियारों की दौड़ से कोई लेना-देना नहीं है।
पोत का जलावतरण ऐसे वक्त में किया गया है, जब अमेरिका ने प्योंगयांग के अगले परमाणु परीक्षण के मद्देनजर, कोरियाई प्रायद्वीप में अपने नेवल स्ट्राइक ग्रुप को तैनात किया है।
बीजिंग समुद्र में लगातार अपना प्रभुत्व बढ़ाने में लगा हुआ है और नौसेना को मजबूत कर रहा है। दक्षिण चीन सागर के अधिकांश हिस्से पर दावा करने के अलावा, वह धीरे-धीरे हिंद महासागर में भी अपने प्रभुत्व को बढ़ाने में लगा है।
सरकारी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने इस सप्ताह एक लेख में भारत की नौसेना महत्वाकांक्षा का मजाक उड़ाया।
समाचार पत्र ने सलाह देते हुए लिखा कि हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी को रोकने के लिए भारत को विमानवाहक युद्धपोत का निर्माण करने के बजाय अपनी अर्थव्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए।
लेख में लिखा गया कि चीन की नौसेना उसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था के हिसाब से मजबूत हो रही है। उसने कहा कि रणनीतिक समुद्री मार्गो की सुरक्षा के लिए बीजिंग एक मजबूत नौसेना का निर्माण करने में सक्षम है।
लेख के मुताबिक इसके विपरीत विमानवाहक पोत के निर्माण के लिए भारत को एक नकारात्मक उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है।
बीजिंग अतीत में भारत से यह भी कह चुका है कि वह हिंद महासागर को ‘अपना बैकयार्ड’ (आंगन) न समझे।
अमरीका के बाद दूसरे सबसे शक्तिशाली नौसेना रखने वाले चीन के पास 65 पनडुब्बियां हैं, जबकि भारत के पास 14 हैं। चीन के 48 फ्रिगेट की तुलना में भारत के पास 18 हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का युआन श्रेणी का डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी मॉडल अमरीका के परमाणु पनडुब्बी से ज्यादा बेहतर है। चीन की नौसेना क्षमता हालांकि अमरीका से बहुत पीछे है।