नई दिल्ली। जैश-ए-मोहम्मद के सरगना खूंखार आतंकी मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा रोक लगाने के प्रस्ताव पर चीन के रवैये से पड़ोसी देश हैरान हैं। यह माना जा रहा है कि चीन का यह रवैया एक जिम्मेदार ताकत की तरह नहीं हैं। खासकर ऐसे समय पर जब पेरिस और ब्रसेल्स में हुए हमले के बाद पूरी दुनिया का रुख बदला हुआ है।
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार चीन का आतंकी मसूद अजहर के प्रति नरम रवैये को लेकर प्रशांत महासागर से लेकर हिंद महासागर तक में पड़ोसियों को चौकन्ना कर दिया है।
चीन का यह दावा कि अजहर आतंकी होने की शर्तें पूरी नहीं करता, इस तरह का बयान ऐसे वक्त में आया है जब पाकिस्तान से लगातार आतंकवाद बढ़ रहा है।
अजहर के खिलाफ प्रतिबंध की कोशिशों को नाकाम करने का कदम भले ही भारत को निराश करता है लेकिन चीन को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।
सूत्रों के अनुसार संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की लड़ाई लड़ना चीन की रणनीति का पुराना हिस्सा रहा है। इसका मकसद अपने पुराने दोस्त की मदद करने के साथ-साथ भारत को साधना भी है। चीन का मसूद अजहर को आतंकी न मानने से अब हालात बदलते हुए दिख रहे हैं।
जानकारी हो कि आतंकी मसूद अजहर पर यूएन द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के प्रस्ताव पर चीन की ओर से वीटो लगाए जाने पर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी।
भारत ने कहा था कि प्रतिबंध समिति ने इस मामले और आतंकवद से निपटने को लेकर ‘सिलेक्टिव अप्रोच’ के तहत काम किया।
पेइचिंग में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हॉन्ग लेई ने चीन के फैसले का बचाव करता हुए कहा था कि उसने तथ्यों और नियमों के तहत यह कदम उठाया है।
हॉन्ग लेई ने कहा कि हम हमेशा आतंकी संगठनों और उनके सरगनाओं पर प्रतिबंध को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1267 के तहत तथ्यों और प्रासंगिक नियमों के तहत ही फैसले लेते हैं।
यह पहला मौका नहीं है, जब चीन ने पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन और उसके सरगना पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के प्रस्ताव का विरोध किया है।
यूएन ने 2001 में जैश-ए-मोहम्मद पर बैन लगाया था, लेकिन भारत की ओर से 2008 के मुंबई हमलों के बाद अजहर पर प्रतिबंध लगवाने की कोशिशों का चीन ने विरोध किया था।