चीनी सैनिकों द्वारा 19 जुलाई को उत्तराखंड के चमोली जिले में घुसपैठ किए जाने से स्पष्ट है कि भारत के इस बेहद शातिर पड़ोसी देश के भारत के प्रति नकारात्मक इरादों में जरा सा भी बदलाव नहीं आया है।
यह पड़ोसी देश कभी आतंकवाद को भारत के खिलाफ अघोषित समर्थन देकर तो कभी भारतीय भूभागों पर अपनी गिद्धदृष्टि इनायत करके भारत के लिए मुश्किलें पैदा करने का आदी बन गया है।
विभिन्न कूटनीतिक मोर्चों पर चीन द्वारा भारत को नीचा दिखाने की हरकतों को तो अंजाम दिया ही जाता रहता है साथ ही उसकी यह भी सोच है कि वह किसी भी तरह से भारतीय सरजमीं के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर सके।
अपनी चालाकी एवं बेवकूफाना हरकतों से दुनियाभर में आलोचनाओं का शिकार हो रहे चीन को इस बात की अक्ल नहीं आ रही कि किसी भी देश के लिए उसकी एकता-अखंडता एवं अस्मिता सर्वोपरि होती है तथा राष्ट्रीयत्व से जुड़े इन पहलुओं को हरगिज नजर अंदाज नहीं किया जा सकता, फिर भारत देश एवं भारतवासी चीन द्वारा भारतीय भूभागों को हड़पने की कोशिशों को कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं?
भारत की सरकारों ने कालांतर में खासकर पड़ोसी देशों के मुद्दे पर भारी गलतियां की हैं, जिसका खामियाजा देश को आज भी भुगतना पड़ रहा है। साथ ही देश की सरकारों द्वारा पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत बनाने के नाम पर उनके सामने नतमस्तक होने और उन्हें देश का सब कुछ समर्पित करने जैसी कवायदें तो की ही जाती रहती हैं। भारतीय सरकारों के इन्हीं अविवेकपूर्ण फैसलों का नतीजा है कि आज लगभग पूरे भारतीय बाजार पर भी चीन का कब्जा हो गया है।
चीनी सामग्रियों की भारतीय बाजारों में भरमार, भारतीय कारोबारी कर रहे हाहाकार की स्थिति यह साबित करने के लिये काफी है कि भारतीय बाजारों से मुनाफा कमाकर जहां चीन एक ओर मालामाल हो रहा है वहीं उसकी कोशिश यह भी है कि वह भारत के हर कदम पर मुश्किलें खड़ी करता रहे तथा भारत के अधिकांश भूभागों पर उसका कब्जा हो जाए।
ऐसे में चीन के प्रति बहुत हुआ उपकार अब जरा पराक्रम दिखाना चाहिये। हिम्मत, जुर्रत और जज्बे के साथ चीन को सबक सिखाना चाहिए, की अवधारणा पर अमल सुनिश्चित करना होगा। भारतीय समाज में एक कहावत है कि लातों के भूत कभी बातों की भाषा नहीं समझा करते तो यह कहावत चीन पर पूरी तरह लागू होती है तथा चीन अपनी विभिन्न हरकतों से इस कहावत को पूरी तरह चरितार्थ भी कर रहा है।
बस आवश्यकता इस बात की है कि भारत के सत्ताधीशों का रवैया चीन के प्रति थोड़ा साहसिक और आक्रामक हो जाए। वरना चीन के साथ संबंध मजबूत बनाने के नाम पर भारतीय सत्ताधीशों की चीन यात्रा या चीन के शासकों को भारत आमंत्रित करके उनके स्वागत-सम्मान में पलक-पावड़े बिछाने का कोई नतीजा सामने नहीं आने वाला है, उल्टे देश को चीन के सामने इसी तरह बेवश ही बने रहना पड़ेगा। चीन को तो भारत-चीन युद्ध के दौरान ही सबक सिखाया जाना चाहिए था लेकिन मौका अभी भी हाथ से निकला नहीं है।
भारत सरकार को चाहिये कि चीन द्वारा भारतीय भूभागों को हड़पने की कोशिशों का जवाब चीन के खिलाफ हड़प नीत अपनाकर दे तथा भारत की ओर से भी चीनी भूभागों को हड़पने की कोशिशों को अंजाम दिया जाना चाहिए।
चीन कभी भारत पर युद्ध थोपने की गीदड़-भभकी दिखाए तो कभी कालांतर में हुए भारत चीन युद्ध के परिणामों का हवाला दे तो फिर भारत की सामरिक सामग्रियां यथा परमाणु बम व मिसाइलों का निर्माण भंडारों की शोभा बढ़ाने के लिए तो किया नहीं गया है, उनका कुछ हद तक इस्तेमाल तो चीन के खिलाफ किया ही जाना चाहिए।
भारत के सत्ताधीशों का चीन के प्रति अनावश्यक उदारतापूर्ण रुख ही चीन के द्वारा आए दिन पैदा की जाने वाली समस्याओं का सबसे बड़ा करण है तथा इस उदारता को अब आक्रमकता में तब्दील किया ही जाना चाहिए। वरना कभी उत्तराखंड तो कभी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों भू भागों पर चीन की घुसपैठ यूं ही चलती रहेगी।
: सुधांशु द्विवेदी