नई दिल्ली। भारत में न्यायपालिका पर काम के बोझ और न्यायाधीशों की कमी की तकलीफ ने देश के प्रधान न्यायाधीश को भावुक कर दिया।
राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में रविवार को न्यायाधीशों और मुख्यमंत्रियों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि देश में न्यायपालिका पर काम का बहुत बोझ है। जजों की कमी और लाखों मामले लंबित होने के चलते न्यायापलिका पर काम का बोझ बढ़ गया है। मुुख्य न्यायाधीश ने कहा कि जब तक यह बोझ कम नहीं होता तब तक मेक इन इंडिया योजना कारगर नहीं हो सकती।
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे।
अपने भाषण के दौरान भावुक हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने कहा कि मेक इन इंडिया और विदेशी निवेश बढ़ाना सरकार की कोशिश है लेकिन देश का विकास न्यायपालिका की क्षमता से जुड़ा है। जब तक न्यायपालिका पर काम का बोझ हल्का नहीं किया जाता तब तक ये सब कारगार नहीं होगा। उन्होंने कहा कि आप सारा बोझ न्यायपालिका पर नही डाल सकते। सरकार सारा दोष न्यायपालिका के मत्थे नहीं मढ़ सकती। मुकदमे बढ रहे हैं और जजों की संख्या बहुत कम है। इसके बावजूद लोगों को न्यायपालिका पर भरोसा है क्योंकि हम ऐसे हालातों में भी अपना बेहतर दे रहे हैं।
उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पांचवी- छठी क्लास में अर्थमैटिक में सवाल आता था कि अगर एक सड़क को पांच आदमी 10 दिन में बनाते हैं तो एक दिन में सड़क बनाने के लिए कितने आदमी चाहिए। जवाब होगा 50 आदमी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अमेरिका में नौ जज पूरे साल में 81 मुकदमे सुनते हैं जबकि भारत में छोटे से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक-एक जज 2600 केस सुनता है। विदेशों से न्यायाधीश जब भारत आते हैं तो वह आश्चर्यचकित रह जाते है कि ऐसे हालात में कैसे काम करते हैं।
केंद्र कहता है कि हम मदद को तैयार हैं लेकिन यह काम राज्यों का है। राज्य कहते हैं कि फंड केंद्र को देना होता है। केंद्र और राज्य एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि देश की निचली अदालतों में 3 करोड मुकदमे लंबित हैं। कोई यह नहीं कहता कि हर साल 20 हजार जज 2 करोड केस की सुनवाई पूरी करते हैं। लाखों लोग जेल में हैं, उनके मुकदमे नहीं सुन पा रहे हैं तो हम न्यायाधीशों को दोष मत दीजिए। देश के उच्च न्यायालयों में 38 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। उच्च न्यायालयों में 434 जजों की वेकेंसी है। अकेले इलाहाबाद हाईकोर्ट में 10 लाख मामले लंबित है।
जस्टिस ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जब 1950 में बना तो आठ जज थे और 1000 केस थे। 1960 में जज 14 हुए और केस 2247। 1977 में जजों की संख्या 18 हुई तो केस 14501 हुए। जबकि 2009 में जज 31 हुए तो केस बढकर 77 हजार 151 हो गए। 2014 में जजों की संख्या नहीं बढ़ी पर केस 81 हजार 553 हो गए। उन्होंने कहा कि इस साल चार महीने में ही 17 हजार 482 केस दाखिल हो गए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 15 हजार 472 केसों का निपटारा कर दिया।