जयपुर। दीनदयाल वाहिनी के प्रदेश सचिव अखिलेश तिवाड़ी के नेतृत्व में कार्यकर्ताओं ने राजस्थान लोकायुक्त को ज्ञापन सौंपा। इस दौरान जयपुर शहर अध्यक्ष विमल अग्रवाल, मंत्री घनश्याम, रामस्वरूप खंडेलवाल, सांगानेर मंडल अध्यक्ष राजेश अजमेरा, विष्णु जायसवाल, गिरधारी लाल कुमावत, अंकित शर्मा भी मौजूद थे।
ज्ञापन में राजस्थान मंत्री वेतन (संशोधन) विधेयक 2017 के तहत पूर्व-मुख्यमंत्रियों को शेष जीवनकाल के लिए जागीरदारों जैसी सुविधाएं प्रदान कर वर्तमान मुख्यमंत्री द्वारा 13, सिविल लाइंस के सरकारी बंगले पर आजीवन कब्जे के प्रयास को रुकवाने का आग्रह किया गया है।
लोकायुक्त को संबोधित करते हुए ज्ञापन के माध्यम से कहा गया कि राजस्थान सरकार द्वारा 13, सिविल लाइंस, जहाँ वर्तमान मुख्यमंत्री रह रही हैं उसे विधि-पूर्वक मुख्यमंत्री आवास घोषित किए जाने अथवा मुख्यमंत्री के द्वारा इसे ख़ाली कर 8, सिविल लाइंस जाने (जो मुख्यमंत्री के लिए चिन्हित सरकारी निवास है) के लिए आदेशित करने की कार्यवाही करें।
जयपुर में सिविल लाइंस में 13 सिविल लाइंस का एक सरकारी बंगला है। राजस्थान की जनता की इस सम्पदा का बाज़ार मूल्य कम से कम 2000 करोड़ रुपए आता है। इस बंगले को पिछले 8-9 वर्षों में सरकार के ही करोड़ों रुपए ख़र्च कर एक आलीशान महल में परिवर्तित कर दिया गया है। चारों तरफ से लगभग 15 फुट ऊंची दीवार खींचकर इसकी किलेबंदी सी कर दी गई है। इस सरकारी बंगले का नाम भी किसी के निजी आवास की तरह अनंतविजय लिख दिया गया है, जो कि नियमों के विरुद्ध है।
वर्तमान मुख्यमंत्री की इस सरकारी बंगले पर आजीवन कब्जे की मंशा है। यह इस बात से स्पष्ट हो जाती है कि वर्ष 2008 में हुई चुनावों में पराजय के पहले मुख्यमंत्री द्वारा नई सरकार के गठन के पूर्व ही स्वयं को 13 सिविल लाइंस का सरकारी बंगला आवंटित कर दिया गया था। 2008 से 2017 तक इस बंगले को आलीशान महल का रूप देने के लिए जनता का अनाप-शनाप पैसा भी ख़र्च किया गया।
इस बंगले पर इन्होंने नेता-प्रतिपक्ष पद से इस्तीफे के बाद भी अपना कब्जा क़ायम रखा। अब पुनः मुख्यमंत्री बनने के बाद भी 8 सिविल लाइंस के होते हुए 13 नम्बर सिविल लाइंस में ये ही रह रहीं हैं जिससे कि यह किसी और को आवंटित न हो जाए। क्योंकि 8 सिविल लाइंस मुख्यमंत्री निवास के रूप में चिन्हित है इसलिए वह किसी और को आवंटित नहीं किया जा सकता। इस प्रकार वर्तमान मुख्यमंत्री के द्वारा एक साथ दो सरकारी बंगलों को प्रयोग में लाया जा रहा है। यह सरकारी सम्पदा का मनमाना दुरुपयोग तथा राजकोष का अपव्यय है।
यहां यह प्रश्न पूछा जाना प्रासंगिक है कि जब 8 सिविल लाइंस का सरकारी आवास मुख्यमंत्री आवास के रूप में कानूनी रूप से ईयर-मार्क्ड था, तब 13 सिविल लाइंस को ईयर-मार्क्ड किए अथवा कैबिनेट से मंज़ूरी कराए बिना एक अघोषित मुख्यमंत्री निवास के रूप में उपयोग लेने का क्या औचित्य है?
अगर 13 सिविल लाइंस अघोषित मुख्यमंत्री आवास के रूप में उपयोग में लिया जा रहा है तो क्यों नही कैबिनेट की बैठक में इसे विधिवत मुख्यमंत्री आवास ही घोषित कर दिया जाए? दोनों बंगले मुख्यमंत्री के काम आ रहे हैं। एक मुख्यमंत्री एक साथ दो मुख्यमंत्रियों के बराबर राज्य की सम्पदा का उपयोग कर रही हैं।
इस बंगले पर अपने कब्जे को कानूनी आधार प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री द्वारा गत 26 अप्रेल 2017 को राज्य विधानसभा में राजस्थान मंत्री वेतन (संशोधन) विधेयक, 2017 पारित किया गया। मुख्यमंत्री द्वारा आगामी चुनाव मे हारने की आशंका के कारण सभी नियमों को ताक पर रख कर आनन-फ़ानन में यह विधेयक पास किया गया हैं ताकि चुनावों में पराजय के बाद भी ये जनता की इस अरबों रुपयों की संपत्ति पर आजीवन काबिज रहें।
इस विधेयक के द्वारा जनता की लगभग 2000 करोड़ की सम्पत्ति को एक व्यक्ति की निजी जागीर बना दिया गया है। 13 सिविल लाइंस के सरकारी बंगले पर कब्जे के प्रयास के अलावा इस विधेयक के तहत पूर्व मुख्यमंत्रियों को अनेक असामान्य सुविधाएं भी प्रदान की गई हैं।
इन सुविधाओं के अलावा इस विधेयक की विभिन्न धाराओं में नियम बनाने का प्रावधान भी है जिनके अंतर्गत बिना विधानसभा में नए विधेयक के लाए ही ये सुविधायें किसी भी सीमा तक बढाई जा सकती हैं।
इस विधेयक में यह भी प्रावधान है कि पूर्व-मुख्यमंत्री चाहे किसी भी पद पर चला जाए मकान को छोड़ कर बाक़ी सुविधाओं में तो बदलाव हो सकता है लेकिन मकान उसके पास बना रहेगा।
विधेयक की धारा 7 खख में लाया गया संशोधन पूर्व-मुख्यमंत्रियों को उसके पूरे जीवनकाल के लिए जिस प्रकार की सुविधाएं प्रदान कर रहा है वह राजस्थान में जागीरदारी प्रथा को पुनः लागू किए जाने का प्रयास है।
इस विधेयक के माध्यम से जनता की सम्पदा पर कब्जे किए जाने को कानूनी आधार प्रदान किया जाना जनता के द्वारा दी गई सत्ता का मनमाना दुरूपयोग है। मुख्यमंत्री का यह प्रयास राजस्थान की जनसंपदा पर कानूनी रूप से डाला गया डाका है। राजस्थान की आम जनता के मन में यह व्यवस्था के प्रति आक्रोश को जन्म दे रहा है।
जिस समय विधानसभा में यह विधेयक पारित किया गया उस समय सांगानेर के विधायक श्री घनश्याम तिवाड़ी जी द्वारा विधानसभा में कहा गया था कि यह राजस्थान में जागीरदारी की पुनः स्थापना है।
अपनी प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा राजस्थान देश का पहला राज्य है जिसमें भू-सुधार क़ानून लाकर जागीरदारी उन्मूलन किया गया था। उसी राज्य में पुनः इस प्रकार का क़ानून लाया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह एक तरह से प्रिवी-पर्स की भी वापसी है। माननीय तिवाड़ीजी नें इस पर हस्ताक्षर न करने के लिए राजस्थान के माननीय राज्यपाल को पत्र भी लिखा था।
यहाँ यह बात भी आपके ध्यान में लायी जानी आवश्यक है कि पिछले कुछ समय में कुछ उच्च न्यायालयों और माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसे आदेश किए हैं जिनमें सरकारी बंगलों-सम्पत्तियों पर राजनेताओं के कब्जों पर सख्ती बरतने की हिदायत दी गई है।
पिछले वर्ष अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी बंगला खाली करने का निर्देश दिया। देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री जीवनभर सरकारी बंगलों में नहीं रह सकते। अगर बंगले में इस प्रकार कोई रह रहा है, तो उसे दो माह में बंगला खाली करना होगा।
जब सुप्रीम कोर्ट तक सरकारी बंगलों पर पूर्वमुख्यमंत्रियों का निवास अनुचित ठहरा रहा है, तब राजस्थान की मुख्यमंत्री कानूनी रूप से इस प्रकार की व्यवस्था कर रही है कि चुनावों में हार जाने के बाद भी वे जनता की सम्पत्ति और धन का आजीवन दुरुपयोग करती रहें। देश की शीर्ष अदालत के आदेशों को चोर-दरवाज़े से ख़ारिज करने के लिए यह बिल पारित किया गया है।
इस पत्र में वर्णित तमाम तथ्यों और हालात के मद्देनजर आपसे ऐसा निवेदन है कि राजस्थान की सम्पदा की रक्षा और अपने ऐशो-आराम के लिए वर्तमान मुख्यमंत्री के द्वारा राजकोष के घोर दुरुपयोग को रोकने के लिए आप आदेश प्रदान करें।
विधिक रूप से 13 सिविल लाइंस को मुख्यमंत्री निवास घोषित करवाएं अथवा मुख्यमंत्री को निर्देश दें कि वह 13 सिविल लाइंस के सरकारी बंगले को ख़ाली कर 8 सिविल लाइंस के चिन्हित मुख्यमंत्री निवास में जाएं।