सबगुरु न्यूज-सिरोही। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की पुलिस। यानि राजस्थान की पुलिस। इसे गृहमंत्री जी की पुलिस इसलिए भी नहीं कह सकते कि इस पुलिस को हिलाने डुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री जी के पास सुरक्षित है। इस बात कि बेचारगी कई बार कई मंत्री मीडिया के समक्ष जता चुके हैं।
हाँ, तो बात जूते मारने वाली पुलिस की। मामला सिरोही कोतवाली का है। गत मंगलवार को हितेश की मौत के बाद नगर परिषद् सभापति, आयुक्त और जर्जर मकान के मालिक के खिलाफ मामला दर्ज करवाने के लिए हितेश के रिश्तेदार पहुंचे। पुलिस ने उन्हें रवाना कर दिया। फिर समाज बंधू पहुंचे पुलिस को मामले की गंभीरता समझ में नहीं आयी।
उन्हें भी पुलिसगिरी दिखाने की कोशिश की। पुलिस ने मौका दे दिया, फिर क्या था। मामला शिवगंज के प्रधान जीवाराम आर्य ने अपने हाथों में ले लिया। वे हैं कांग्रेस के लेकिन प्रजापत समाज के होने के कारण सिरोही की जातिवाद की राजनीती के दौर में इसे उठाना उनका नैतिक दायित्व भी था।
ठीक वैसे है जैसे संसद के लिए जसवंतपुरा तहसील का एक का मामला और देवासी नेता के लिए सारणेश्वर के निकट बालिका की एक्सीडेंट में मौत के मामले में। वैसे ये मामले नशे के व्यापार में लिप्त जाती बंधुओं की पैरवी करने पहुँचने वाले नेताओं से ठीक हैं इसलिए इसे हजम किया जा सकता है।
तो बात कोतवाली की थी। जीवाराम आर्य के साथ प्रजापत समाज की महिला पुरुष भी बैठ गए। थानेदार ने ये कहते हुए बहस की कि गाड़ी निकालनी है हटो। सभी रिपोर्ट दर्ज करवाने पर अड़ गए। थानेदार ने एक फोन लगाया। दूसरी तरफ बात करने वाले व्यक्ति को सर से संबोधित किया तो कोई बड़े अधिकारी ही होंगे।
बात करते हुए थानेदार बोले ‘वो सर….जूत तो सर….(कुछ हकबकाये, शायद उन्हें अपने अधिकारी से कुछ ऐसे निर्देशों की उम्मीद नहीं थी)…वो तो सर…अंतिम ऑप्शन है ही सर। उनकी घबराहट और बातों के पॉस से यही लग रहा था कि शायद दूसरी तरफ मौजूद पुलिस अधिकारी ने ही जूते मारने को कहा था।
जनता में ये ‘जूत’ वाला वीडियो वायरल हुआ तो आक्रोश फैला। अब तक ते पुलिस ‘डंडों’ की बात करती थी, लेकिन ये ‘जूते’ तले रौंदने की बात करेगी क्या। इस ‘जूत’ वाले लहजे ने भाजपा के इस प्रमुख वोट बैंक और पीड़ित पक्ष समेत सामान्य व्यक्ति को भी आहत किया। खैर बाद में पुलिस ने सभापति , नगर परिषद आयुक्त और जर्जर मकान के मालिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, लेकिन विवाद के काफी बढ़ने के बाद।
वैसे सिरोही में सरकारी मशीनरी में जिस तरह के पार्ट वर्तमान सरकार भी लगा रही है उससे लोग पूर्व विधायक के ‘डस्टबिन’ वाले कथन को धीरे धीरे सत्य मानने लगी है। सिरोही को डस्टबिन बनाने के लिए कांग्रेस को जाना पड़ा। यही हाल रहा तो, 2018 में क्या होगा लोगों ने कयास लागना शुरू कर दिया है।
वैसे एक बात और कि जो अधिकारी इस घटना में कोई मामला नहीं बनने की बात करते दिखे, उनके वर्तमान कार्यकाल में ही इसी कोतवाली में आईटी एक्ट के मामले को शांतिभंग में दर्ज किया गया, फिर उपखंड अधिकारी के साथ मिलकर 7 दिन तक जमानत नही होने देने की करामात भी देख और शायद कर भी चुके हैं। फिर ऐसी बात करना तो मामला बिगाड़कर भाजपा की चुनाव से पूर्व बैंड बजाने की तैयारियों से ज्यादा कुछ नही लगता।
सिरोही पुलिस के टेलीफोन के पीछे के अधिकारी के लहजे, मिडिया रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं किये जा सकने की बात कहने वाले अधिकारी और जो भी लोग शामिल थे, वो इन बार बार के विवादों से सरकार की छवि बर्बाद करने में ज्यादा लगे हैं।
ऐसे में इनकी कमान संभाल रही मुख्यमंत्री को डोडुआ में दर सूची नही लगाने वाले ई-मित्र संचालक से पहले ऐसे पुलिस अधिकारियों को भी टांगने की जरुरत है जो जनता को जूतों से खदेड़ने के प्रोत्साहन में ज्यादा विश्वास रखते हैं। बाकी ढाई साल बाद जनता के पास सरकार को खदेड़ने का एक मौका तो आने वाला ही है।
वैसे आजकल भाजपा ने नैतिकता, मानवाधिकार समेत जितने भी मानवाधिकार और जनता के लिए पुलिस के कर्त्तव्य होते हैं वो उत्तर प्रदेश पुलिस को सिखाने के लिए बचा कर रख लिए हैं। उन्हें ये नहीं पता कि इस ज्ञान के अभाव में राजस्थान पुलिस कि शब्दावली में ‘डंडे’ की जगह ‘जूता’ घुस गया है जो उनकी कुर्सी खिसका कर उनकी पार्टी का नाम सत्ता की जगह प्रतिपक्ष से जोड देगा।
-परीक्षित मिश्रा