सिरोही। क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसाइटियों के संबंध में माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों के बाद सिर्फ वहीं क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसाइटियां अस्तित्व में रह पायेगी जो नियम एवं कानूनों की पूर्णतः पालना करती है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत सरकार के कृषि एवं सहकारिता विभाग के अन्तर्गत कृषि मंत्रालय के अधीन को-आॅपरेटिव सोसाइटीज़ के सेन्ट्रल रजिस्ट्रार द्वारा मल्टीस्टेट को-आॅपरेटिव सोसाइटियों को पंजीकृत किया जाता है। मल्टीस्टेट को-आॅपरेटिव सोसाइटीज़ एक्ट, 2002 के सेक्शन 10 के तहत उपनियमानुसार कोई भी संस्था जो इस एक्ट में रजिस्टर्ड हो अपने सदस्यों के मध्य वित्तीय लेन-देन कर सकती है।
सोसायटी संचायको का कह्ना है कि अपने सदस्यों के मध्य वित्तीय लेन-देन करने के लिए रिजर्व बैंक से लाईसेंस लिये जाने की बाध्यता नहीं है। उन्होने बताया कि सोलापुर की एडवोकेट जहीर सागरी द्वारा चाहे गए सूचना के अधिकार के अन्तर्गत केन्द्रीय सहकारिता विभाग ने स्पष्ट किया है कि क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसाइटियों को रिजर्व बैंक के लाईसेंस की कोई बाध्यता नहीं है। यही नहीं भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय ने 22 फरवरी, 2013 को वित्त मंत्रालय के हवाले से जारी प्रेस नोट में कहा है कि को-आॅपरेटिव क्रेडिट सोसाइटियों को भारतीय रिजर्व बैंक से लाईसेंस लिये जाने की आवश्यकता नहीं है।
डाॅ. संजीव गणेश के प्रश्न के उत्तर में वित्त विभाग में तत्कालीन राज्य मंत्री नमो नारायण मीणा ने यह लिखित जानकारी दी है कि क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसाइटियों को रिजर्व बैंक के लाईसेंस की आवश्यकता नहीं है तथा वे अपने सदस्यों से जमा प्राप्त कर सकती है और उन्हें ऋण प्रदान कर सकती है। बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 के सेक्शन 5 (सी) बी में बैंकिंग को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि ऋण देने एवं निवेश के लिए आम जनता से जमाएं स्वीकार करना एवं मांग पर पुर्न भुगतान करना तथा चैक एवं ड्राफ्ट आदि की सुविधाएं प्रदान करना बैंकिंग है। यदि कोई क्रेडिट को-आॅपरेटिव सोसाइटी इस प्रकार के कार्यों में संलग्न है तो हाईकोर्ट के आदेशों के बाद उनके अस्तित्व पर संकट गहरा सकता है।