राजस्थान के कोटा में एक और छात्र बिहार के हाजीपुर निवासी अमन गुप्ता ने 14 अक्टूबर की देर रात चंबल नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली।
इससे पहले उसने दोस्तों से बात की फिर चंबल नदी के किनारे जाकर सेल्फी वीडियो बनाया। इसमें डॉक्टर बनने का सपना पूरा नहीं कर पाने पर माता-पिता से माफी मांगी, वहीं भाई को अच्छे से पढ़ाई करने की सीख दी है।
कोचिंग हब बन चुके कोटा में इसी साल 14 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं, इसमें ज्यादातर छात्र बिहार के रहने वाले थे। इसके पहले पिछले साल 31 छात्रों ने आत्महत्या की थी। कोटा शहर में सन 2000 से लेकर अब तक कोचिंग करने वाले 283 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं।
कोचिंग की मंडी बन चुका राजस्थान का कोटा शहर अब आत्महत्याओं का गढ़ बनता जा रहा है। यहां शिक्षा के बजाय मौत का कारोबार हो रहा है। कोटा एक तरफ जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में बेहतर परिणाम देने के लिए जाना जाता है।
वहीं इन दिनों छात्रों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामलों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, साल 2015 में यहां 31 छात्रों ने मौत को गले लगा लिया था।
वर्ष 2014 में कोटा में 45 छात्रों ने आत्महत्या की जो 2013 की अपेक्षा लगभग 61.3 प्रतिशत ज्यादा थी। 2016 में अब तक 14 छात्र खुदुकुशी कर चुके हैं।
राजस्थान का कोटा शहर आइआइटी-जेईई में दाखिले की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों का एक केंद्र बन चुका है। आज की तारीख में कोटा देश में कोचिंग का सुपरमार्केट है। पिछले जे ई ई के परीक्षा परिणाम में टॉप रैंक में 100 में 30 छात्र कोटा के इन कोचिंग सेन्टरों से ही निकले हैं।
एक अनुमान के हिसाब से एक हजार तीन सौ करोड़ का सालाना टर्नओवर कोटा में कोचिंग के इस मार्केट में है। कोचिंग सेन्टरों द्वारा सरकार को अनुमानत: सालाना 130 करोड रूपया टैक्स के तौर पर दिया जाता है।
देश के तमाम नामी गिरामी संस्थानों से लेकर छोटे मोटे 150 कोचिंग संस्थान यहां चल रहे हैं, जो प्रवेश परीक्षा का प्रशिक्षण दे रहे है। आज की तारीख में यहां लगभग डेढ लाख छात्र इन संस्थानों से कोचिंग ले रहे हैं और इस कामयाबी का स्याह पक्ष यह है कि देश भर में कोचिंग के लिए बढ़ती इस शहर की शोहरत के साथ यहां कोचिंग के लिए पहुंच रहे छात्रों द्वारा आत्महत्या की खबरें अधिक आने लगी हैं।
शिक्षा नगरी के रूप में प्रसिद्ध कोटा में कोचिंग संस्थानों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ आत्महत्याओं के ग्राफ में भी वृद्धि हो रही है। कुछ महीने पहले पांचवी मंजिल से कूद कर आत्महत्या करने वाली कोचिंग छात्रा कीर्ति त्रिपाठी के सुसाइड नोट में कुछ और बातें सामने आई हैं।
सूत्रों के मुताबिक उसने लिखा था कि मैं जेईई-मेंस में कम नम्बर होने के कारण जान नहीं दे रही हूं, मुझे तो इससे भी खराब रिजल्ट की आशंका थी बल्कि मैं तो खुद से ही ऊब गई हूं इसलिए जान दे रही हूं।
कीर्ति के जेईई-मेंस में 144 अंक आए थे, जो जनरल के कट ऑफ से 44 अंक अधिक थे। उसने गत 28 अप्रैल को पांच मंजिला इमारत से कूदकर जान दे दी थी। परिवार और मित्रों को सम्बोधित सुसाइड नोट में उसने अपने तनाव और दिक्कतों के बारे में लिखा है। इस नोट के मुताबिक वह अपने आस-पास के माहौल से तनाव में थी।
इस सुसाइड नोट में कीर्ति ने लिखा है कि भारत सरकार और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को जल्द से जल्द इन कोचिंग संस्थानों को बंद कर देना चाहिए, क्योंकि यहां बच्चों को तनाव मिल रहा है।
उसने लिखा है कि मैंने कई लोगों को तनाव से बाहर आने में मदद की, लेकिन कितना हास्यास्पद है कि मैं खुद को इससे नहीं बचा पाई। कीर्ति ने सुसाइड नोट में मां को संबोधित करते हुए लिखा है कि मैं साइंस नहीं पढना चाहती थी। मेरा इंट्रेस्ट तो फिजिक्स में था। मैं बीएससी करना चाहती थी।
कोचिंग संस्थान भले ही बच्चों पर दबाव न डालने की बात कह रहे हों लेकिन कोटा के प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में तैयारी करने वाले बच्चे दबाव महसूस न करें ऐसा संभव नहीं। कोचिंग में प्रतिदिन डेढ़-डेढ़ घंटे की तीन क्लास लगती हैं।
पांच घंटे कोचिंग में ही चले जाते हैं। कभी-कभी तो सुबह पांच बजे कोचिंग पहुंचना होता है तो कभी कोचिंग वाले अपनी सुविधानुसार दोपहर या शाम को क्लास के लिए बुलाते हैं। एक तय समय नहीं होता जिस कारण एक छात्र के लिए अपनी दिनचर्या के साथ तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता है।
वह अपने लिए पढ़ाई और मनोरंजन की गतिविधियों के लिए एक निश्चित समय निर्धारित ही नहीं कर पाता, जिससे उस पर तनाव हावी होता है। ऊपर से 500-600 बच्चों का एक बैच होता है, जिसमें शिक्षक और छात्र का तो इंटरैक्शन हो ही नहीं पाता।
अगर एक छात्र को कुछ समझ न भी आए तो वह इतनी भीड़ में पूछने में भी संकोच करता है। विषय को लेकर उसकी जिज्ञासाएं शांत नहीं हो पातीं। तब धीरे-धीरे उस पर दबाव बढ़ता जाता है। ऐसे ही अधिकांश छात्र आत्महत्या करते हैं।
कुछ माह पूर्व कोटा के जिला कलेक्टर ने पांच पृष्ठों का एक पत्र शहर के कोचिंग संस्थानों को भेजा है जिसे हिंदी एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित करवा के छात्रों के माता पिता को भेजा गया है।
युवा छात्रों की खुदकुशी की घटनाओं का हवाला देते हुए जिला कलेक्टर ने लिखा कि इन बच्चों के माता पिता की उनसे जो कुछ भी उम्मीदें थीं उनकी बनावटी दुविधा में जीने के बजाय उन्होंने मौत को गले लगाना आसान समझा।
उन्होंने लिखा, उन्हें बेहतर प्रदर्शन के लिए डराने धमकाने की बजाय आपके सांत्वना के बोल और नतीजों को भूलकर बेहतर करने के लिए प्रेरित करना, उनकी कीमती जानें बच सकता है।
अपने पत्र में भावुक अपील करते हुए उन्होने इन छात्रों के माता पिता से कहा, अपनी अपेक्षाओं और सपनों को जबरन अपने बच्चों पर नहीं थोपें, बल्कि वे जो करना चाहते हैं, जिसे करने के वे काबिल हैं उन्हें वही करने दें।
इसके अलावा जिला प्रशासन ने विभिन्न संस्थानों में पढ़ रहे छात्रों के तनाव के स्तर को जानने और छात्रों की परेशानी के संकेत मिलने पर ऐसे संस्थानों से उसकी जांच पड़ताल करने को कहा।
उन्होंने हाल में खुदकुशी करने वाली एक युवा छात्रा कीर्ति के पत्र का भी उल्लेख किया। उन्होने अपने पत्र में छात्रों से कहा कि उन्हें इंजीनियरिंग और मेडिसीन को अपना करियर बनाने के अलावा अन्य विकल्पों की ओर भी ध्यान देना चाहिए।
राजस्थान हाईकोर्ट ने कोटा में कोचिंग करने वाले छात्रों के लगातार आत्महत्या करने की घटनाओं पर स्व:प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेकर जनहित याचिका दर्ज की थी। कोर्ट ने छात्रों में आत्महत्या करने की बढ़ती घटनाओं को बेहद गंभीर मानते हुए कहा था कि कोचिंग हब के रुप में जाना जाने वाला कोटा शहर छात्रों की लगातार बढ़ती आत्महत्याओं के कारण सुसाईड हब होता जा रहा है।
कोर्ट ने कहा था कि बच्चों की असामयिक मृत्यु होने से उसके माता-पिता का कभी पूरा नही होने वाला नुकसान होता है। इसके कारणों का पता लगाकर इस प्रवृत्ति पर रोक लगाना जरुरी है।
कोटा शहर के हर चौक-चौराहे पर छात्रों की सफलता से अटे पड़े बड़े-बड़े होर्डिंग्स बताते हैं कि कोटा में कोचिंग हीं सबकुछ है। ये हकीकत है कि कोटा में सफलता का स्ट्राईक तीस परसेंट से उपर रहता है और देश के इंजीनियरिंग और मेडिकल के प्रतियोगी परीक्षाओंमें टाप टेन में कम से पांच छात्र कोटा के ही रहते हैं।
लेकिन कोटा का और सच भी है जो भयावह है। एक बड़ी संख्या उन छात्रों की भी है जो असफल हो जाते हैं और उनमें से कुछ ऐसे होते हैं जो अपनी असफलता बर्दाश्त नहीं कर पाते।
कोटा में छोटे-बड़े मिलाकर डेढ़ सौ के करीबन कोचिंग सेन्टर हैं। यहां तक कि दिल्ली, मुंबई के साथ ही कई विदेशी कोचिंग संस्थाएं भी कोटा में अपना सेंटर खोल रही हैं। सफलता की बड़ी वजह यहां के शिक्षक हैं।
आईआईटी और एम्स जैसे इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजों में पढऩेवाले छात्र बड़ी-बड़ी कम्पनियों और अस्पतालों की नौकरियां छोडक़र यहां कोचिंग संस्थाओं में पढ़ाने आ रहे हैं क्योंकि यहां तनख्वाह कहीं ज्यादा है।
अकेले कोटा शहर में 70 से ज्यादा आईआईटी स्टूडेंट छात्रों को पढ़ा रहे हैं। कोटा के एलन कोचिंग का नाम तो लिमका बुक आफ रिकार्ड में है। इसमें अकेले एक लाख छात्र पढ़ते हैं इतने छात्र तो किसी यूनिवर्सिटी में भी नहीं पढ़ते हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एक मोबाइल पोर्टल और ऐप लाने का इरादा जताया है, ताकि इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए कोचिंग की मजबूरी खत्म की जा सके।
चूंकि इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम, आयु, अवसर और परीक्षा का ढांचा कुछ ऐसा है कि विद्यार्थियों के सामने कम अवधि में कामयाब होने की कोशिश एक बाध्यता होती है इसलिए वे सीधे-सीधे कोचिंग संस्थानों का सहारा लेते हैं।
अगर मोबाइल पोर्टल और ऐप की सुविधा उपलब्ध होती है, तो इससे इंजीनियरिंग में दाखिले की तैयारी के लिए विद्यार्थियों के सामने कोचिंग के मुकाबले बेहतर विकल्प खुलेंगे।
उम्मीद की जानी चाहिए कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल इंजीयिरिंग के क्षेत्र में भविष्य बनाने के प्रति बढ़ते आकर्षण को देखते हुए इसकी तैयारी को पूरी तरह बाजार आधारित बना देने वाले कोचिंग संस्थानों के वर्चस्व को तोडऩे में सहायक साबित होगी।
कोटा की पूरी अर्थव्यवस्था कोचिंग पर ही टिकी है। इस शहर की एक तिहाई आबादी कोचिंग से जुड़ी हैं। ऐसे में कोचिंग सिटी के सुसाइड सिटी में बदलने से यहां के लोगों में घबराहट है, कि कहीं छात्र कोटा से मुंह न मोड़ लें।
इसे देखते हुए प्रशासन, कोचिंग संस्थाएं और आम शहरी इस कोशिश में लग गए हैं कि आखिर छात्रों की आत्महत्याओं को कैसे रोका जाए। यदि शीघ्र ही कोटा में पढऩे वाले छात्रों द्वारा आत्महत्या करने की घटनाओं पर रोक नहीं लग पाएगी तो यहां का एक बार फिर वही हाल होगा जो कुछ साल पहले यहां के कल-कारखानों में तालाबन्दी होने के चलते व्याप्त हुए आर्थिक संकट के कारण हुआ था।
इसके लिए जहां प्रशासन ने नियम कायदे कानून बनाना शुरु किया है वहीं कोचिंग संस्थाएं भी अपने यहां छात्रों के लिए मनोरंजन के साधन की व्यवस्था के अलावा हेल्प लाइन भी शुरु कर रहे हैं।
रमेश सर्राफ धमोरा
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं