बचपन से ही हमारी तुलना दूसरों से होने लगती है। कभी मम्मी-पापा दूसरे भाई-बहन, पडोसी या किसी क्लासमेट से आपकी तुलना करते हैं । जब आप प्रोफेशनल वल्र्ड में कदम रखते हैं तो आॅफिस में अपने से ज्यादा प्रिय व सफल आदमी से खुद की तुलना करना बेहद आम है। कभी-कभी तुलना आपके लिए हानिकारक भी साबित होती है। जब छोटे बच्चों की किसी दूसरे बच्चे से तुलना की जाती है तो कहीं न कहीं इससे बच्चे का खुद पर से विश्वास कमजोर होता है। बार-बार तुलना किए जाने पर बच्चा खुद को दूसरों बच्चों से अलग रखता है। ऐसे बच्चे में आत्मविश्वास की कमी होती है। वहीं जब आप बडे होते हैं और अपने से सफल व्यक्ति को देखते हैं, तो इससे व्यक्ति में कुंठा पैदा होती है और ऐसा व्यक्ति खुद को व अपने भाग्य को दोष देता है। साथ ही उसके स्वभाव में एक अजीब सा चिडचिडापन आ जाता है। जब आप एक चीज को पा लेंगे तो फिर अपने से अधिक सफल व्यक्ति से अपनी तुलना करेंगे। इस प्रकार आपकी प्यास कभी नहीं बुझेगी।
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