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क्यों आतंकियों की भाषा बोल रहे हैं मुफ्ती मोहम्मद सईद - Sabguru News
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क्यों आतंकियों की भाषा बोल रहे हैं मुफ्ती मोहम्मद सईद

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क्यों आतंकियों की भाषा बोल रहे हैं मुफ्ती मोहम्मद सईद
क्यों आतंकियों की भाषा बोल रहे हैं मुफ्ती मोहम्मद सईद
controversial comment of Jammu and Kashmir Chief Minister mufti mohammad sayeed
controversial comment of Jammu and Kashmir Chief Minister mufti mohammad sayeed

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के नाते हमारे नेताओं को इस बात का भी ध्यान रखना बेहद जरुरी है कि वह मन वचन और कर्म से जो कुछ करें बहुत सोच समझकर करें। इस दृष्टि से यदि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के ताजा बयान पर गौर किया जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी समझ और बुद्धि बेहद संकीर्ण और व्यापक सोच वाली नहीं है।

आगे बढऩे से पूर्व उस बयान का प्रस्तुतिकरण बेहद आवश्यक है। उन्होंने मुख्यमंत्री की शपथ लेने के तत्काल बाद कहा कि राज्य विधानसभा के शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय पाकिस्तान और अलगाववादी हुर्रियत को जाता है। अभी इस बयान पर मचा शोर शांत भी नहीं हुआ था कि उनकी अपनी पार्टी पीडीपी के विधायकों ने आतंकवादी और संसद पर हुए हमले के साजिशकर्ता अफजल के शव के अवशेषों की मांग कर डाली। बात यहीं समाप्त नहीं हुई, इस बयानबाजी का कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद मणिशंकर अय्यर ने यह कहते हुए समर्थन कर दिया कि अफजल के साथ नाइंसाफी हुई थी।

अब जरा विचार करिए इन भारतीय नेताओं के बयानों का। तरस आता है इनकी बुद्धि और मानसिकता पर जम्मू-कश्मीर के जो वास्तविक हालात हैं उसको देखते हुए यह बयान आखिर क्या संदेश देते हैं। इन्हें देख और सुनकर ऐसा भ्रम पैदा होता है कि वास्तव में यह नेता भारत और भारतीय लोकतंत्र पर विश्वास करते हैं या फिर इनकी मानसिकता पूरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है।
आखिर इस तरह के बयान क्या उन अलगाववादियों को मजबूती प्रदान नहीं करते जो कश्मीर को भारत से अलग करने का स्वप्न संजोए हुए हैं। जैसा कि हमने शुरुआत में ही लिखा था कि भारत दुनिया का विशाल लोकतंत्र है अत: यहां के नेताओं को जो भी बयान देते हैं उन्हें वह सोच-समझकर देना चाहिए कि कहीं इसके कोई अंतर्राष्ट्रीय मायने तो नहीं निकलते हैं? इससे कहीं उन ताकतों को चोट तो नहीं पहुंच रही जो दुनिया में व्याप्त आतंकवाद का दृढ़ता से मुकाबला करने में जुटे हैं।

इस दृष्टि से जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद उनकी पार्टी के तमाम विधायक और कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के बयानों की जितनी निंदा की जाए कम है। सर्वविदित है कि कश्मीर में सक्रिय पाक परस्त अलगाववादी ताकतें कभी नहीं चाहती थी कि वहां निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव हो और पूरी दुनिया में यह संदेश जाए कि कश्मीर की जनता भारत के साथ रहने की पक्षधर है। आखिर फिर कैसे यह कहा जा सकता है कि राज्य विधानसभा के शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय पाकिस्तान और अलगाववादी हुर्रियत को जाता है।

इसी प्रकार पूरी दुनिया के सामने यह बात उजागर हो चुकी थी कि पाकिस्तान ने भारत की संसद पर हमले का षड्यंत्र रचा था और इसके लिए अफजल गुरु का इस्तेमाल उसने किया था। ऐसी स्थिति में पीडीपी द्वारा अफजल के अवशेष मांगना भी कई सारे सवाल खड़े करता है। इन बयानों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी गलत संदेश गया है। जो प्रदेश आतंकवाद से जूझ रहा है वहां का मुख्यमंत्री और उसी के दल के विधायक अपरोक्ष रूप से आतंकी और अलगाववादी ताकतों के पक्ष में बयान दे रहा है यह बेहद निंदनीय है। देश की राष्ट्रवादी ताकतों को एकजुट होकर इसका मुखर विरोध करने की आवश्यकता है।

महत्वपूर्ण बात तो यह है कि इस सम्पूर्ण घटनाक्रम ने कई सारे सवाल खड़े कर दिए हैं। एक महत्वपूर्ण सवाल तो यह उठ खड़ा हुआ है कि जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील प्रदेश भाजपा ने पीडीपी जैसे राजनैतिक दल के साथ जो गठबंधन सरकार का गठन किया है क्या ये उचित निर्णय था? दूसरा सवाल यह है कि भले ही यह सरकार एक संयुक्त राजनीतिक एजेंडे के आधार पर संचालित होगी, जैसा कि स्वयं प्रधानमंत्री ने कहा है, तो क्या इसका अर्थ यह लगा लिया जाना चाहिए कि धारा 370 जैसे मामले पर अब कोई चर्चा नहीं होगी। क्या केवल देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के इतना कह देने भर से कि ‘‘हमारी सरकार और पार्टी (भाजपा) सईद के बयान से अपने आपको पूरी तरह से अलग करती है तथा हमारी सरकार और हमारे दल द्वारा इसे स्वीकार करने का प्रश्न ही नहीं उठता’’ से उसकी भरपाई हो जाएगी, जो मुफ्ती के बयान के बाद राष्ट्रवादी ताकतों को मानसिक पीढ़ा पहुंची है?

यह बयान संसद में पार्टी के बचाव के लिए तो उपयुक्त हो सकता है लेकिन इससे जो राष्ट्रघाती चेहरा सामने आया है उसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह इसलिए भी चिंतनीय है क्योंकि पीडीपी और उनके प्रमुख मुफ्ती सईद अटल सरकार के समय भी अपहरण कांड को लेकर संशय के घेरे में रहे हैं। राजनाथ सिंह और पूरी की पूरी भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनकी पार्टी में असंख्य ऐसे लोग हैं जो इस राष्ट्र के लिए जीते हैं और इस राष्ट्र के लिए मरते हैं। उनकी पार्टी का चाल चरित्र और चेहरा प्रबल राष्ट्रवाद के लिए जाना पहचाना जाता है। इतना ही नहीं, जिस कश्मीर में उनकी सरकार बनी है उसी कश्मीर की एकता और अखंडता को लेकर उनके शीर्ष पुरुष श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान दिया था। ऐसी स्थिति में पीडीपी ने जो कीचड़ उछाला है वह बेहद गंभीर है और उससे कश्मीर में भाजपा को कैसे अलग किया जाएगा इसका रास्ता भी तलाशना होगा।

अच्छा होता देश के गृहमंत्री होने के नाते राजनाथ सिंह मुफ्ती और अय्यर जैसे नेताओं की इस राष्ट्रविरोधी बयानबाजी पर कोई ऐसा कड़ा सरकारी निर्णय लेते जिससे एक बड़ा संदेश जाता, ताकि इस तरह की शक्तियां पुन: मुंह न खोल सकें। सरकारें तो आती-जाती रहेंगी। कश्मीर की जनता ने भाजपा को जो इतनी सारी सीटें दी हैं वह इस बात का प्रमाण है कि कश्मीर का एक बहुत बड़ा वर्ग अलगाववादी और आतंकवाद के खिलाफ है। अत: अब जरुरत इस बात की है कि इस दिशा में कड़े कदम उठाए जाएं और अलगाववाद को जड़ से कुचलने के प्रयास हों।
 

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