अब अपने को इस्लाम का सबसे खासमखास प्रवक्ता बताने वाला डा. जाकिर नाईक का खेल खत्म होता नजर आ रहा है। डा. जाकिर नाईक सवालों के घेरे में हैं।
कहने वाले कह रहे हैं कि ढाका में आतंकी हमले में शामिल दो युवक नाईक के विचारों और भाषणों से प्रभावित थे। एक आतंकी ने सोशल साइट्स पर जाकिर नाईक का वो बयान शेयर किया था। जिसमें कहा गया था कि सभी मुसलमानों को आतंकी बनना चाहिए।
बेशक, उसकी गतिविधियां तो शुरू से ही संदिग्ध थी, पर उसका दिग्विजय सिंह जैसे रहनुमाओं के चलते कभी बाल भी बांका नहीं हो सका। वो लगातार इस्लाम के नाम पर जहर उगलता रहा और उसे मुस्लिम नवयुवकों में घोलता रहा। उसे रोज दुबई से रिले होने वाले पीस टीवी पर सुना जा सकता है। एक रट्टू तोता की तरह नाईक कुरआन, बाइबल और कुछ हिन्दू ग्रन्थों के पाठ सुनने वालों को अपने इस्लाम के ज्ञान के पाठ पिला रहा होता है।
अब बड़ा सवाल ये है कि जब भारत में पीस टीवी के प्रसारण पर रोक है तो उसे कुछ केबल ऑपरेटर प्रसारित कैसे कर देते हैं? उन्हें इस कम के लिए धन कौन दे रहा है? यानी साफ है कि कमजोर कानून के चलते ही वो अपना धंधा चला रहा है।
हमारे इधर अफसोस कि जब हालात बेहद संगीन हो जाते हैं तो सुरक्षा बलों की नींद खुलने लगती है। नाईक दावा करता है कि पीस टीवी के जरिये दुनिया भर में उसके 20 करोड़ दर्शक हैं। उसके जहरीले भाषणों के चलते उस पर कनाडा, ब्रिटेन और मलेशिया समेत पांच देशों में नाईक प्रतिबंधित हैं।
कुल मिलाकर नाईक के भाषणों का निचोड़ यह होता है कि इस्लाम ईश्वर का अंतिम धर्म और कुरआन उसका अंतिम ग्रन्थ है। यहां तक तो ठीक है। उसका दावा, उसे मुबारक। यह अच्छी बात है कि अब कोई नया धर्म और कोई नई आसमानी किताब जमीन पर नहीं आएगी।
वो कुरआन को बाइबल और हिन्दू ग्रंथों से बेहतर साबित करने की फिराक में लगा रहता है। उसके कार्यक्रमों में कुछ हिन्दू भी आते हैं और कुछ हिन्दू नौजवान उसकी कार्यक्रमों में उससे प्रभावित होकर वहां पर इस्लाम कबूल करने की घोषणा भी करते हैं।
हालांकि, कुछ जानकार कहते हैं कि उसके कार्यक्रमों में हिन्दुओं का मुसलमान बनने की बातें नाटक ही होती हैं। उसमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं होती। मुझे याद है कि एक दिन एक चीनी लड़की ने डा. ज़ाकिर नाइक को उसके पीस टीवी पर आने वाले शो में धो कर रख दिया था अपने अकाट्य तर्कों से।
नाईक सिर्फ अपनी भीङ में बोल सकता है? यानी जहां पूछने वाले को उत्तर पर बहस की इजाजत नहीं होती है।नाईक किसी बङी यूनिवर्सिटी में बहस के लिये नहीं गया।किसी विज्ञान के प्रोफेसर से सीधे डिबेट नहीं करता है। आपको उससे बड़ा तोता आज की तारीख में ढूंढने से नहीं मिलेगा।
बस सारी बात और सारा ज्ञान कुरान पर आकर ख़त्म हो जाता है उसका। ये आत्म मुग्ध विद्वान मुस्लिम समाज के अहंकार को येन केन प्रकारेण प्रतिस्थापित करने में लगा रहता हैं।कभी ये इतना साहस नहीं दिखा पाएगा कहने का कि ये बात कुरान में गलत है या मुहम्मद की ये बात गलत है। इसकी मुस्लिम समाज में वृहतर लोकप्रियता वैचारिक गुलामी का सूचक है।
सच्चाई ये है कि मेडिकल क्षेत्र का ये जहरीले भाषण देने वाला डाक्टर मुसलमानों को कुरआन का इंजेक्शन देता है। वो भोले-भाले लोगों को अपने मोह जाल में फंसाता है। उसका ताजा उदाहरण हमने ढाका के कत्लेआम में देखा। एक बात समझ लेनी चाहिए कि नाईक के ‘पीस टीवी’ के जितने समर्थक हैं, उससे कई गुना ज्यादा विरोधी है। मुसलमानों का भी एक वर्ग उससे नफरत करता है।
नाईक ने मुंबई के मझगांव के सेंट पीटर स्कूल, केसी कॉलेज में पढ़ाई करने के बाद डॉक्टरी की पढ़ाई टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज और बीवाईएल नायर चेरिटेबल हॉस्पिटल से की। 1991 में धार्मिक तकरीर देने का काम शुरू किया और इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना कर इसका प्रमुख बन गया।
दरअसल जाकिर आतंकी कनेक्शन को लेकर पहले भी चर्चा में रहा है। हालांकि तब उस पर लगे आरोपों को गंभीरता से नहीं लिया गया। आरोपों की गंभीरता से तफ्तीश भी नहीं हुई। ज्यादातर अंग्रेजी में ही बोलने वाला जाकिर नाईक अब सुरक्षा एजेंसियों के निशाने पर है। ढाका के आतंकी कनकेशन से उसके तार जुड़े हुए बताए जा रहे हैं। उसे अब सुरक्षा एजेंसियों के सामने सच का सामना करना होगा। वो भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के राडार पर हैं।
वेदों-पुराणों से तुलना
दरअसल जाकिर नाईक पर पहले भी कई देशों में जहर घोलने वाले विवादित सांप्रदायिक भाषण देने के आरोप लगते रहे हैं। उसकी इन्हीं हरकतों की वजह से ब्रिटिश सरकार सहित कई देशों की सरकारें अपने देश में उसके प्रवेश करने और विवादित धार्मिक भाषण देने पर प्रतिबंध लगा चुकी हैं।
नाईक हमेशा वेदों और पुराणों की कुरान से तुलना करके उसे या तो नीचा दिखाने की कोशिश करता है या फ़िर चालू तर्कों और मनमाने उद्धरणों से हिन्दुओं तथा मुसलमानों को ही भ्रमित करने की कोशिश करता है।
नाईक मंदिर और मूर्तियों का विरोध करते हुए अपनी लगभग सभी तकरीरों में कहता है कि इस संसार का मालिक निराकार है और मुस्लिम धर्म उसी निराकार ईश्वर को मानता है।
मंदिर में ईश्वर की साकार मूर्तिपूजा करने वाले लोग अज्ञानी हैं। अब उससे ये कौन पूछे कि यदि वो वास्तव में सच कह रहा है तो ये भी बताए कि निराकार ईश्वर को याद करने के लिए यदि मंदिर और मूर्ति की जरुरत नहीं है तो फिर मस्जिद की जरुरत क्यों है? आखिर मस्जिद बनाना भी तो साकार मूर्तिपूजा ही है।
मस्जिद बनाकर एक साकार बूत आप क्यों बना रहे हैं? निराकार खुदा को मानने वाले तो कहीं भी उसकी प्रार्थना कर सकते हैं, तो फिर मस्जिद बनाने की क्या जरुरत है? चार सौ साल पहले कबीर दस कह गए हैं कि “कंकर-पत्थर जोड़ के मस्जिद दिया बनाय। ता पर चढ़ि मुल्ला बांग दें, क्या बहरा हुआ खुदाय।‘
धर्म परिवर्तन और नाईक
जाकिर नाईक के धर्म परिवर्तनपर विचार बेहद विवादास्पद हैं। ज़ाकिर नाईक कहता है कि यदि कोई व्यक्ति मुस्लिम से गैर-मुस्लिम बन जाता है तो उसकी सज़ा मौत है। यहां तक कि इस्लाम में आने के बाद वापस जाने की सजा भी ’मौत’ है।
बकौल नाईक के शरीयत के मुताबिक नाबालिग हिन्दू लड़की भी भगाई जा सकती है, लेकिन पढ़ी-लिखी वयस्क मुस्लिम लड़की किसी हिन्दू लड़के से शादी नहीं कर सकती और यदि कोई ऐसा करे तो उसकी सजा भी मौत है।
एक बात और! ज़ाकिर नाईक ये भी कहता है कि मुस्लिम देशों में किसी अन्य धर्मांवलम्बी को किसी प्रकार के मानवाधिकार प्राप्त नहीं होने चाहिए। किसी अन्य धर्म के पूजा स्थल भी नहीं बनाए जा सकते। हालांकि, ज़ाकिर नाईक अपनी तकरीरों में दावा करता है कि मुसलमान किसी भी देश में मस्जिदें बना सकते हैं, लेकिन इस्लामिक देश में चर्च या मन्दिर नहीं चलेगा।
उनसे शायद ये सवाल किसी ने नहीं पूछा कि यदि यही बात सभी देश अपने यहां लागू कर दें तो क्या आप गैर मुस्लिम देशों में मस्जिद बना पाएंगे? बेशक उसके विचार तालिबानियों से भी बदतर है।
विरोध में मुसलमान
ये संतोष की बात है कि अब आम और खास मुसलमान उसके खिलाफ बोलने लगे हैं। सुपरस्टार आमिर खान ने भी जाकिर नाईक को आड़े हाथों लिया है। आमिर खान ने कहा कि जाकिर धर्म का गलत प्रचार करते हैं। कोई धर्म आतंकवाद नहीं सिखाता, प्यार की सीख देता है।
आतंकवाद फैलाने वालों का मजहब से कोई रिश्ता नहीं होता। उधर, रजा एकेडमी के समर्थकों ने मुंबई में नाइक के खिलाफ रैली निकालकर बैन लगाने की मांग की। फिलहाल जाकिर नाईक मक्का में है। उसके भारत वापस आते ही उसकी क्लास सुरक्षा एजेंसियां लेंगी।
सबसे पहले बांग्लादेश के अखबारों ने नाईक का सच दुनिया के सामने रखा। इस बात के लिये उनकी तारीफ की जानी चाहिये। जो कम भारत के धर्मनिरपेक्ष पत्रकार मंडली को करना चाहिए था, एक मुस्लिम देश के पत्रकारों ने किया। लानत है इस देश के मौजूदा सुविधाभोगी पत्रकरों पर!
ज़ाकिर की तकरीरों ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हमला करने वाले कुछ आतंकियों को इतना प्रभावित किया कि वो इसके अनुयायी बन गए और इन्हें फॉलो करने लगे। ये दोनों आतंकी थे रोहाना इब्ने इम्तियाज़ aऔर निबरस इस्लाम।
2009 में न्यूयॉर्क के सबवे में फिदायीन हमले की साजिश रखने के आरोप में गिरफ्तार नजीबुल्ला जाजी के दोस्तों ने बताया था कि वो काफी वक्त तक जाकिर नाईक की तकरीरों को टीवी पर देखता था। 2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में आरोपी राहिल शेख भी नाईक से प्रभावित था।
यानी साफ है कि जाकिर नाईक मुसलमानों के एक वर्ग को पिछले कई सालों से आतंक की तरफ लेकर जा रहा है। अब वक्त आ गया है कि जाकिर नाईक के पैसों के लेन-देन का भी पता लगाया जाए। उसके पास इतने पैसे कहां से आते हैं कि वह विदेश से एक टी वी चैनल चला रहा है? इसकी भी जांच होनी चाहिए।
: आर.के.सिन्हा
(लेखक राज्यसभा सांसद हैं)