मानवीय शरीर की जटिलताओं को सुलझाने के लिए जहां एक ओर वैज्ञानिक रोज नई खोजकर, नई-नई तकनीक ला रहे हैं, वही कॉपर्स म्युजियम में आने वाले पर्यटकन सिर्फ शारीरिक जटिलताओं की जानकारी लेते हैं बल्कि उसे महसूस भी कर सकते हैं।
म्युजियम, हिन्दी में कहें तो संग्रहालय, ऐसी जगह जहाँ इतिहास से जुड़ी उन चीजों को संजोया जाता हैं, जिनका मानवीयअस्तित्व से गहरा संबंध हो। आज के बदलते परिवेश में संग्रहालयों के अर्थ में भी परिवर्तन आया है। आज इंसान से जुड़ी हर छोटी से छोटी चीजों के संग्रहालय बन रहे हैं।
इन्हें बनाने के लिए तथ्यों के साथ-साथ रोचकता पर भी पूरा ध्यान दिया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर सुलभ इंटरनेशनल म्युजियम, नूडल्स म्युजियम, हेयर म्युजियम, यहां तक कि वायर म्युजियम, जहां तारों के इतिहास को समेटा गया है।
ठीक इसी तरह मानवीय शरीर की संरचना समझने के लिए ओइगस्टगीस्ट का कॉर्पस संग्रहालय रोचकता से भरपूर हैं। हम सांस लेते और छोड़ते हैं तो फेफड़े पंप की तरह काम करते हैं। हम जो भी काम करते हैं, सबसे पहले उसकी सूचना शरीर में फैली तंत्रिकाओं के जरिए दिमाग तक पहुंचती हैं। अबतक यह सभी जानकारी हमने किताबें, रिसर्च और साइंस डायग्राम में ही समझी थी।लेकिन कॉर्पस म्यूजियम में हम शरीर की संरचना की गुत्थियों को आसानी से समझने के साथ ही उसे महसूस भी कर सकते हैं।
यह दुनिया का इकलौता ऐसा म्यूजियम है, जिसकी इमारती शक्ल भी हू-ब-हूइंसानी शरीर की तरह हैं। यहां आने वाले पर्यटकों को पूर्ण जानकारी मिले इसके लिए ऑडियो-विडियो विजुअल और थ्रीडी तकनीक भी है। इसे बनाने वाले हेनरीरेको इसके जरिए शरीर की हर बारीकी को समझाने के साथ ही हैल्दी लिविंग की ओर अग्रसर करना चाहते हैं।
साल 2001 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट को पूरा होने में ही सात साल का समय लगा। 2008 में इसका उद्घाटन नीदरलैंड की क्वीन बीटरिक्स ने किया था। यहां बच्चों के एजुकेशनल टूर्स के साथ ही विजिटर्स के लिए आठ अलग-अलग भाषाओं में पूर्ण जानकारी दी जाती है।
हर सवाल का जवाब
हम सोते हैं तो दिमाग में क्या उथल-पुथल चलती है? पसंद नापसंद पर क्या हलचल होती हैं? इत्यादि सवालों का जवाब कॉर्पस म्यूजियम में थ्योरी के साथ थ्रीडी तकनीक की सहायता से प्रेक्टिल में भी दर्शायाजाता हैं। म्युजियम के पूरे 55 मिनट का ट्यूर पैर से शुरू होकर दिमाग तक पहुंचता हैं। साथ ही 5 डी हार्ट थिएटर में दिल से जुड़ी हर चीज को अच्छे से जाँच परख कर सकते है। जैसे की रैड ब्लड सेल्स कैसेकाम करती है, शारीरिक हलचल होने पर इंसानी दिमाग कैसे सभी कामों का संचालन करता है, कैसे कोई भी चीज खाने पर जीभ उसमें समाहित सभी स्वादों की पहचान कैसे करती है।
हैल्दी लिविंग की ओर अग्रसर
कॉपर्स म्यूजियम न केवल विजिटर्स को मानवीय शरीर की जानकारी देता है, बल्कि उनके मनोरंजन का भी ख्याल रखता है। इसे बाहर से देखने पर ऐसा एहसास होता है, जैसे की कलपूर्जो का बना इंसान दीवार पर बैठा हो। इमारत का यह हिस्सा हू-ब-हू इंसानी शरीर जैसा लगता है। इसके अंदर के हिस्से में सभी मानवीय अंग फाइबर ग्लास से बने है।
इन सभी हिस्सों को छूने पर बिलकुल असली प्रतीत होते है। इंसानी शक्ल वाला हिस्सा 35 मीटर लम्बा और सात भागों में बंटा हैं। यहाँ पैर से लेकर सिर तक की पूरी सैर में ऑडियो-विडियो विजुअल लगाया गया है। म्युजियम प्रशासन की ओरसे समय-समय पर एजुकेशनल ट्यूर के साथ-साथ ऑनलाइन गेम्स भी चलाए जाते हैं।
एम्सटर्डम और हेज के बीच ए44 हाईवेपर बने इस म्युजियम को बनाने का श्रेय जाता है हेनरी रेको को, जिन्होनें इसे बनाने के लिए विभिन्न समारोहों के दौरान 31 मिलियन डॉलर एकत्रित किए। कानूनी समस्याओं से बचने के लिए डच हैल्थ मिनिस्ट्री से परमिशन भी ली। इसे बनाने की खास वजह यह थी कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी मिले और लोग हैल्दी लिविंग की ओर अग्रसर हो सके।