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अदालतें कमाई का जरिया नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट - Sabguru News
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अदालतें कमाई का जरिया नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

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अदालतें कमाई का जरिया नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट
courts not for earning says Allahabad High Court
 courts not for earning says Allahabad High Court
courts not for earning says Allahabad High Court

इलाहाबाद। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि राज्य न्यायालयों को कमाई का जरिया नहीं बना सकते। राज्य का संवैधानिक दायित्व है कि वह हाईकोर्ट व निचली अदालतों के कामकाज के लिए जरूरी धन मुहैया कराए।

राज्य सरकार, राजकोष पर आर्थिक बोझ बढ़ने का हवाल देकर कर्मचारियों के वेतनवृद्धि नियमावली का अनुमोदन देने से इंकार नहीं कर सकती।

कोर्ट ने कहा कि पिछले पांच वर्ष के आंकड़े बताते हैं कि सरकार अदालतों पर जितना खर्च करती है कोर्ट फीस व स्टाम्प शुल्क के रूप में उससे दोगुनी से अधिक धनराशि प्राप्त कर रही है।

सरकार को प्रतिवर्ष न्यायिक कार्यवाही से मिलने वाली राशि में मुकदमों में लगने वाले हर्जाने या जुर्माने एवं कोर्ट परिसर के दुकानों की नीलामी राशि शामिल नहीं है।

कोर्ट ने राज्य सरकार को हाईकोर्ट अधिकारी कर्मचारी आचरण एवं सेवा शर्त संशोधन नियमावली 2005 को छह हफ्ते के भीतर अनुमोदित करने का निर्देश दिया है साथ ही कहा कि चतुर्थ श्रेणी कर्मी याची वेतन वृद्धि पाने के हकदार हैं इसलिए छह माह में बढ़े वेतन के साथ नियमावली 2005 की मंजूरी न देने के राज्य सरकार के आदेश (26-7-12) को रद्द कर दिया।

यह आदेश न्यायाधीश पीकेएस बघेल ने उच्च न्यायालय चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी संघ के महामंत्री मनबोध यादव की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि वेतनवृद्धि को लेकर 18 वर्षाें से मुकदमेबाजी चल रही है।

चीफ जस्टिस ने 2005 में नियमावली ड्राफ्ट सरकार को भेजा है। राजकोष पर बोझ के आधार पर सरकार वेतनवृद्धि नियमावली की मंजूरी से इंकार कर रही है। सरकार के कोर्ट के समक्ष आय व्यय का ब्यौरा रखा।

बताया कि बीते पांच वर्षाें मेें कोर्ट फीस व स्टाम्प से 13472.37 करोड़ की आय हुई। अदालती खर्च में 7668.94 करोड़ दिए गए हैं। इस प्रकार 5803.43 करोड़ की बचत हुई है।

कोर्ट ने कहा कि अदालतों से आय के बावजूद आधी शदी बीत जाने के बाद भी अदालतों की दशा में सुधार नहीं किया जा सका है।