मुंबई। मुंबई हाईकोर्ट ने जन्माष्टमी पर्व के दौरान दही हांडी की ऊंचाई पर कोई सीमा लगाने से सोमवार को मना कर दिया। अदालत ने कहा कि कोई भी दुर्घटनाओं को रोक नहीं सकता है, यह शौचालय तक में हो सकती है।
हालांकि, न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश एमएस कार्निक की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार के अदालत के समक्ष दिए इस बयान को स्वीकार किया कि दही हांडी तोड़ने के लिए बनाए जाने वाले पिरामिड में 14 साल से कम के बच्चों को भाग लेने की इजाजत नहीं दी जाए।
कानून बनाने के क्षेत्र में दखल देने से इनकार करते हुए अदालत ने कहा कि यह राज्य पर निर्भर है कि वह दही हांडी की ऊंचाई और इसमें भाग लेने वालों की आयु के सिलसिले में उपयुक्त कानून बनाए।
पीठ दो गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा दायर जनहित याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी जिसमें दही हांडी समारोहों में हांडी तोड़ने में बच्चों के शामिल होने पर उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई थी।
तीन साल पहले अगस्त 2014 में उच्च न्यायालय ने सरकार को दही हांडी की ऊंचाई 20 फीट और गोविंदाओं की उम्र 18 साल सुनिश्चित करने का आदेश दिया था। साथ ही प्रतिभागियों के लिए कुछ कड़ी सुरक्षा शर्ते लगाईं थीं।
राज्य सरकार ने इन शर्तो से राहत के लिए सर्वोच्च न्यायालय की शरण ली थी। लेकिन, अगस्त 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश का समर्थन किया और कोई राहत देने से इनकार कर दिया।
बीते हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश कुरियन जोसफ और न्यायाधीश आर. भानुमति ने मामले को फिर से मुंबई उच्च न्यायालय को भेज दिया और इस पर सात अगस्त को सुनवाई का आदेश दिया।
2016 में कई संगठनों ने दही हांडी समारोहों पर लगाई गई सीमाओं के खिलाफ प्रदर्शन किया था, कुछ ने तो इन सीमाओं को तोड़ा भी था।